गायब डॉक्टर की सुसाइड नोट…24 घंटे बाद भी नहीं चला पता..राजस्व प्रशासन पर लगा दाग…गृहमंत्री से हुई थी भू माफियों की शिकायत

BHASKAR MISHRA
6 Min Read
  बिलसापुर–24 घंटे से अधिक समय बीत जाने के बाद भी गायब डॉक्टर की कोई खबर पुलिस को नहीं है। परिजन पुलिस लाइन पहुंचकर लगातार भाई की जानकारी मांग रहे हैं। लेकिन पुलिस के पास कोई जवाब नहीं है। गायब डॉक्टर के भाई ने बताया कि जमीन माफियों ने मेरे भाई ही नहीं बल्कि शहर के आम आदमियों का जीना मुश्किल कर दिया है। इसमें पुलिस से लेकर सफेदपोश रसूखदार समेत राजस्व महकमा के लोग शामिल है। फिलहाल हमें अपने भाई की चिंता है। 24 घंटे बीत जाने के बाद भी किसी प्रकार की जानकारी नहीं मिली है।
                   बताते चलें कि एक दिन पहले गौरेला निवासी पेशे से चिकित्सक के घर वालों को देर शाम जानकारी मिली की डॉ. प्रकाश सुलतानिया गायब हो गए हैं। काफी खोज खबर के बाद भी पता नहीं चलने पर घर वालों ने सिविल लाइन थाना पहुंचकर मामले की जानकारी दी। परिवार वालों ने बताया कि डॉ.सुलतानिया परिवार के साथ शुभम विहार मंगला में रहते हैं। घर से रोजाना की तरह प्रैक्टिस करने मगरपारा स्थित अस्पताल निकले..लेकिन देर शाम तक घर नहीं लौटे। पुलिस ने गुमशुदगी  की रिपोर्ट की। पता साजी के दौरान घर वालों को मंगला स्थित उसके दोस्त के पास से बैग मिला। गाड़ी मार्क अस्पताल के सामने मिली।
                                       पुलिस को गायब डॉक्टर के बैग से सुसाइड नोट के अलावा कुल सात पत्र मिले। एक पत्र पत्नी के नाम भी है। पत्र में लिखा गया है कि बहुत कुछ बेचकर मोपका में जमीन खरीदा। कुछ रसूखदार लोग गुण्डो के दम से जमीन ह़ड़पना चाहते हैं। इसमें राजस्व महकमा भी शामिल है। थक चुका हूं..पेशी जाते जाते…जब तक तुम्हारे हाथ में पत्र लगेगा … तब तक शायद ही जिन्दा रहूंं।
कुछ नहीं बता रही पुलिस
                      डॉ.प्रकाश सुलतानिया के गायब होने के 24 घंटे बाद भी पुलिस कुछ नहीं जानकारी दे रही है। डॉ.प्रकाश सुलतानिया के बड़े भाई ने बताया कि शायद पुलिस की जांच पड़ताल का तरीका हो। लेकिन हम लोगों की परेशानी कम होने का नाम नहीं ले रही है। पुलिस केवल यह बता रही है कि डॉ.प्रकाश का अंतिम लोकेशन मसानगंज में सुबह 11 बजे की मिली है। इसके बाद मोबाइल बंद है। आगे की जानकारी जुटाने का प्रयास किया जा रहा है।
                                            प्रकाश के बड़े भाई के अनुसार बैग से कुल सात पत्र बरामद हुए हैं। पत्र पुलिस प्रशासन के अलावा सीएम और सीएस के नाम संबोधित है। पत्र में बताया गया है कि निलंबित पुलिस जवान मथुरा कश्यप के अलावा प्रमोद यादव्र, सदानन्द पटेल, राजेश अग्रवाल,संगीता अग्रवाल किसी रसूखदार के इशारे पर जमीन को हड़पना चाहते हैं। तहसील प्रशासन भी शामिल है। पेशी पर पेशी हो रही है। लेकिन कुछ फायदा होता दिखाई नहीं दे रहा है। थक चुका हूं। अब मर जाना बेहतर है। क्योंकि अब नौकरी भी छूट गयी है।
जमीन माफियों का आतंक
                    बताते चलें कि बिलासपुर में जमीन माफियों का आतंक है। राज्य बनने के बाद से ही जमीन माफिया खाली जमीन हथियाने का खतरनाक खेल खेल रहे हैं। जमीन को बैठाने के खेल में माफियों को राजस्व प्रशासन का भी सहयोग मिल रहा है। देखते ही देखते पीछे की जमीन उड़कर सामने आ जाती है। इसके बाद थका देने वाली सरकारी प्रक्रियां की शुरू होती है। इस बीच जमीन माफियों को जमीन मालिक को लगातार धमकी मिलती है। अंत में जमीन मालिक को हालात से समझौता करना पड़ता है। या फिर उसकी हालत डॉ. प्रकाश जैसी होती है।
गृहमंत्री से हुई थी माफियों की शिकायत
                    जानकारी हो कि सीजी वाल ने जमीन माफियों की कारस्तानी का मामला गृहमंत्री और राजस्व मंत्री के सामने भी उठाया था। गृहमंत्री को बताया गया कि किस तरह जमीन माफियों न एसबीआर कालेज की बेशकीमती चैरीटी की जमीन को कूट रचना कर कब्जा करने का प्रयास किया है। मामले में राजस्व प्रशासन ने भी हाथ उठा दिय़ा है। इसी तरह राजकिशोर नगर मोपका स्थित एक पत्रकार की पुस्तैनी जमीन को फर्जी शिकायत कर्ता खड़ा कर हड़पने का प्रयास किया गया है। जबकि जिला सत्र  न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि जमीेन पत्रकार के परिवार का है। बावजूद इसके जमीन माफिया ने नई चाल चलते हुए सीमांकन का दावा कर जमीन को एक बार विवादास्पद बना दिया है।
                                           सवाल पर गृहमंत्री ने पत्रकारों को बताया था कि दोनों ही मामलों की जांच होगी। किसी भी भूमाफिया को नहीं छोडा जाएगा। लेकिन हुआ ऐसा कुछ नहीं। उल्टा पत्रकार की जमीन को भूमाफिया ने नए सिरे से विवादास्पद बना दिया। एसबीआर की जमीन को हड़पने के पहले ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। जानकारी के अनुसार जिला प्रशासन के कुछ आलाधिकारी भूमाफियों को लाभ पहुंचाने का प्रयास अभी भी कर रहे हैं। सवाल उठना लाजिम है कि यदि गृहमंत्री ने तात्कालीन समय पत्रकारों के सवाल को गंभीरता से लिया होता तो शायद आज भू माफियों के डर से डॉ.प्रकाश को सुसाइड नोट लिखने की जरूरत नहीं पड़ती।
close