धर्मों की बुनियाद…अर्पण, अहिंसा और आनंद

BHASKAR MISHRA
4 Min Read

sonmanivorah 2बिलासपुर— आध्यात्म की दुनिया ही अनूठी है…आपकी थोड़ी सी उदारता…कई गुना…उसी भाव के साथ..आपको वापस मिल जाती है..। अध्यात्म में सेवा और त्याग का स्थान सर्वोपरि है। जितना अर्पित करते हैं…उससे कई गुना अधिक आपको हासिल हो जाता है। इतना मिलता है कि…जिसकी कल्पना भी हम नहीं कर सकते। ये बातें संभागायुक्त सोनमणि वोरा ने सीजी वाल से कही।

Join Our WhatsApp Group Join Now

                 हिन्दू ही नहीं..बल्कि सभी धर्म…त्याग, सेवा और समर्पण की भावनाओं पर टिका हुआ है। बस.. समझने का फेर है। सभी धर्मों के पर्व और परम्पराओं में…मानव सेवा का संदेश कूट-कूट कर भरा है। सेवा और त्याग का नाम विभिन्न धर्मों में अलग-अलग हो सकते हैं…लेकिन उसके केन्द्र में सिर्फ एक ही भावना होती है…दीन हीन की सेवा।

                       भाग्यशाली हूं कि.. मैं..ऐसे देश में जन्म लिया..जहां विविध धर्मों..ने कमजोर और जरुरतमंदों की सेवा को…ईश्वर की सेवा माना है। भारतीय संस्कृति की इन्ही विशेषताओं ने भारत, भारतीय और भारतीयता को नया आयाम दिया है।

                                                हिन्दू धर्म में पितृमोक्ष…त्याग और सेवा की परम्पराओं का सच्चा संवाहक है। इसमें तपस्या के साथ सर्वस्व अर्पण का भाव छिपा है। मेरा अनुभव है कि तर्पण के समय ईष्ट और पितरों के प्रति ही नहीं…बल्कि समाज के सभी जरूरतमंदो के लिए हमारा दिल…आदर के विनम्र भाव से भर जाता है। जब इस प्रकार की भावनाएं उमड़ती हैं तो..जरूरतमंद किस धर्म का है…ऐसे विचार फिर आस-पास तक नहीं फटकते । कहां गयाब हो जाते हैं…पता ही नहीं चलता…। निश्चित रूप से इन भावों ने ही सीवीआरयू और खासतौर पर कुलसचिव शैलेश पाण्डेय जी को अन्दर तक मथा होगा…स्वभाविक है…कि फिर उन्होंने तर्पण के बहाने अर्पण का बीड़ा उठाया होगा। मानव समाज को यह बहुत बड़ा संदेश भी है।

                 संभागायुक्त सोनमणि वोरा ने कहा कि…सभी धर्मों की बुनियाद में मानव सेवा…बीज मंत्र की तरह है। धर्म और उससे जुड़ी परंपराएं….मानव ही नहीं….बल्कि समस्त जीव जगत को ध्यान में रखकर बनाई गयीं हैं। वेदों में सर्वजन हिताय…सर्वजन सुखाय की बातें कहीं गयीं हैं। इसे साकार रूप देने के लिए…हर इंसान को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जरूरतमंदों की सेवा में खुद को लगाना होगा। फिर समाज की खुशहाली देखने लायक होगी।

                        मेरा मानना है कि पितरों को दिया गया तर्पण..तभी सार्थक होगा…जब हम जरूरत मंदों को यथाशक्ति मदद भी करें। जिस दिन देश का हर सक्षम व्यक्ति शैलेश पाण्डेय की तरह सोचने और समझने लगेगा…उसी दिन देश से भय, भूख, गरीबी, अज्ञानता, निरक्षरता, कुपोषण, विकलाकता का अंत हो जाएगा।

           हमारे संभाग में लाखों की संख्या में विकलांग भाई बहन हैं। अभी भी सुदूर अंचल में रहने वाले आदिवासी भाइयों तक..विकास की रोशनी पूरी तरह से नहीं पहुंची है। सरकार इस दिशा में लगातार प्रयासरत है। अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। इस अभियान में मिलजुलकर काम करने की जरूरत है। जिले के 365 व्यक्ति साल के अलग-अलग दिन की जिम्मेदारी उठा लें…तो हमारा जिला ही नहीं बल्कि संभाग स्वर्ग हो जाएगा। ऐसा तभी संभव होगा..जब लोग कुलसचिव शैलेश पाण्डेय की तरह अर्पण में तर्पण का आनंद महसूस करने लगेंगे। क्योंकि धर्मों की बुनियाद..अर्पण,अहिंसा और आनंद ही है।

close