परहित सबसे पड़ा धर्म

BHASKAR MISHRA
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IMG-20151007-WA0006बिलासपुर—गोस्वामी तुलसी दास कहते हैं कि परहित सरिस धर्म नहीं भाई। पर- हित में किया जाने वाला ही काम सच्चे मायनों में धर्म है। मतलब जिस धर्म में परहित के लिए स्थान नहीं। वह …और कुछ हो सकता है कि लेकिन धर्म नहीं हो सकता है। सुधीर खण्डेलवाल ने बताया कि यदि धर्म में पर हित की भावना नहीं होती तो देश की एकता और अखण्डता तार तार हो चुकी होती। यह अलग बात है कि धर्म ने अब व्यवसाय का रूप ले लिया है। नजीतन परहित की मूल भावना धीरे धीरे कम हुई है। बावजूद इसके धर्माथियों की कमी नहीं है। जो सच्चे धर्माथि होते हैं उनके लिए मजहब से कहीं ज्यादा महत्व.. पर हित ही होता है। सीवीआरयू कुल सचिव शैलेश पाण्डेय का तर्पण के बहाने अर्पण का भाव परहित नही तो और क्या है।

             
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सुधीर खण्डेलवाल कहते हैं कि सहायता जरूरत को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। आजकल लोग दान दक्षिणा की उम्मीद में निशक्त बनकर दिखावा करने वाले लोग मंदिरों के सामने दिखायी देते हैं। होता फिर यह है कि जिन्हें सहयोग की जरूरत होती है वे लोग पीछे रह जाते हैं। इसलिए ग्रन्थों में कहा गया है कि सहयोग पात्र को करो। अन्यथा सारे प्रयास निरर्थक साबित हो जाते हैं।

खण्डेलवाल ने बताया कि नए प्रयोग में लोग अपनी जड़ को ना भूलें शास्त्र भी यही कहता है। कुलसचिव शैलेन्द्र पाण्डेय यदि तर्पण के बहाने किसी पात्र जरूरत मंद के लिए हाथ फैला रहे हैं तो इसके लिए उन्हें साधुवाद। उन्हें इस बात के लिए सतर्क रहना होगा कि कहीं अपात्र लोग लाभ उठाकर पात्रों के अधिकार को तो नहीं हड़प रहे हैं। दान दक्षिणा,अर्पण.तर्पण मन शांति पहुंचाने की क्रिया है। इससे ना केवल मन प्रसन्नचित्त रहता है बल्कि वातावरण भी सुखमय हो जाता है।

साहित्यकार भगवती प्रसाद दुबे कहते हैं गरीबों के चेहरे पर कुछ पल के लिए ही सही यदि शैलेश पाण्डेय के प्रयास से किसी को खुशी मिल जाती है तो तो समझो इश्वर का सबसे बड़ा आशीर्वाद है। बल्लू दुबे ने बताया कि सब कुछ खत्म रह जाता है। यदि रह जाता है तो केवल नाम। यदि यश परमार्थ से हासिल हो…तो क्या कहने। शैलेश पाण्डेय तर्पण के बहाने खुद को समर्पित करने को जो अभियान चलाया है…उसकी मैं मुक्त कण्ठ से सराहना करता हूं। उम्मीद है कि समर्पण का यह भाव उनके जीवन में हमेशा काबिज रहेगा।

बल्लु दुबे ने बताया कि आजकल लोगों की मेरा जीवन लोगों की खुशी के लिए लड़ते लड़ते बीत गया। मुझे पहली बार खुशी मिली है कि कोई तो ऐसा कुछ कर रहा है…बंदिशों को तोड़कर…तर्पण के बहाने लोगों में खुसी बांटने निकला है। मेरा दावा है कि भूखे का पेट भरने के बाद..सबसे ज्यादा खुशी शैलेश पाण्डेय को मिलेगी।

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