साहित्याकाश के ध्रुव तारा हैं डॉ.मिश्र…साहित्यकारों ने किया याद..कहा..अपनी रचनाओं से हिन्दी साहित्य को बनाया धनी

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर— मानस मर्मज्ञ डाॅ. बलदेव प्रसाद मिश्र  आधुनिक युग के राम काव्य परम्परा के कवि थे। डाॅ. मिश्र हिन्दी साहित्य के एकमात्र ऐसे विराटपुरूष है जिन्होंने तीन -तीन महाकाव्यों की रचना का गौरव प्राप्त किया है। उन्होने ‘‘कौशलकिशोर‘‘, ‘‘ साकेत संत‘‘ और‘‘रामराज्य‘‘ की रचना कर हि्न्दी  साहित्य धनी बनाया है। यह बातें जिले के मूर्धन्य साहित्यकार पंडित गंगा प्रसाद वाजपेयी ने एक कार्यक्रम के दौरान कही।

                               मानस मर्मज्ञ डाॅ. बलदेव प्रसाद मिश्र की 44 वीं पुण्य तिथि पर 27 खोली बाजपेयी निवास में गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य साहित्यकार के जीवन पर प्रकाश डाला गया। पंडित गंगा प्रसाद बाजपेयी ने बताया कि पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र 20वीं सदी के लब्ध प्रतिष्ठित कवि, रचनाकार और साहित्यकार थे। बहुूमुंखी प्रतिभा के धनी बलदेव मिश्र ने साहित्य की प्रायः सभी विधाओ पर लेखनी चलाई।
                दरअसल डाॅ.मिश्र आधुनिक युग के राम काव्य परंपरा के कवि है। उनके समीक्षात्मक ग्रंथो में ‘‘तुलसीदर्शन‘‘ सर्वोपरि है। इसी ग्रंथ पर उन्हें 1939 में नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा शिक्षा विषयक सर्वोच्च उपाधि डी.लिट् प्रदान की गई है।
            कवि और साहित्यकार, डॉ.अजय पाठक ने कहा कि डाॅ. मिश्र का जन्म 12 सितम्बर 1898 को  राजनांदगाॅव में हुआ। उनकी स्कूली शिक्षा स्थानीय शासकीय बहु उद्देशीय माध्यमिक शाला राजनांदगाॅव से सन् 1914 में हुई। 1918 में बी.ए.की शिक्षा हिस्लाप काॅलेज नागपुर से हुई । 1920 में एम.ए. मनोविज्ञान, 1921 में एल.एल.बी. और 1937 में डी.लिट् शोध प्रबंधन ‘‘तुलसीदर्शन‘ पूरा किया। हिन्दी साहित्य जगत के जाज्वल्यमान नक्षत्र स्व. डाॅ.बलदेव प्रसाद मिश्र का कर्मक्षेत्र काफी वृहद और गौरवशाली है।
                           रामप्रसाद शुक्ला ने बताया कि डॉ. मिश्र ने 1922 में रायपुर में वकालत प्रारंभ की लेकिन यह काम उन्हें रास नहीं आया। इसके बाद डॉ. मिश्र 1923 में वे रायगढ़ चले गये। 1940 तक रायगढ़ रियासत को अपनी सेवाॅए दी। इस दौरान सात वर्ष तक नायब दीवान, दस वर्ष तक रियासत के दीवान और एक वर्ष न्यायाधीश के पद पर काम किया।
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             डाॅ. मिश्र भारत के ऐसे प्रथम शोधकर्ता थे जिन्होंने अंग्रेजी शासनकाल मे भी अंग्रेजी के स्थान पर हिन्दी में शोध कार्य किया। नागपुर विद्यापीठ में 10 वर्षो तक हिन्दी विभाग के मानसेवी विभागाध्यक्ष रहे। अरविंद दीक्षित ने बताया कि डॉ. मिश्र एस.बी.आर. काॅलेज बिलासपुर, दुर्गा महाविद्यालय रायपुर, कल्याण महाविद्यालय भिलाई, कमला देवी महिला महाविद्यालय राजनांदगाॅव के संस्थापक, प्रथम प्राचार्य के पदों पर भी काम किया।
               हैदराबाद और बड़ौदा विश्वविद्यालय को विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में सेवाएं दी। प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें भारत सेवक समाज नामक सर्वोच्च संस्था की केन्द्रीय समिति में मनोनित किया। प्रयाग लखनऊ, आगरा, दिल्ली पंजाब, वाराण्सी, पटना, कलकत्ता, जबलपुर, सागर, नागपुर, हैदराबाद और बड़ौदा समेत कई विश्वविद्यालयों में डी.लिट् तक शोध छात्रों के परीक्षक के रूप में कार्य किया। बिलासपुर में संभागीय सतर्कता अधिकारी विजिलेंस और खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय के उप कुलपति रहें। म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन की उन्होंने तीन बार अध्यक्षता की। अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन के तुलसी जयंती समारोह में भी अध्यक्ष रहे। बंगीय हिन्दी परिषद कलकत्ता के अध्यक्ष रहे। मैसूर राज्य में हिन्दी विशिष्ट व्याख्याता के रूप में काम किया।
                          पूर्व विधायक चन्द्र प्रकाश बाजपेयी ने जानकारी दी कि  डाॅ. बलदेव प्रसाद मिश्र ने साहित्य के साथ राजनैतिक क्षेत्र में भी उल्लेखनीय भूमिका का निर्वहन किया। रायगढ़ खरसिया और राजनांदगाॅव की नगर पालिका के अध्यक्ष रहे। रायपुर नगर पालिका के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रहे। 1972 में राजनांदगांव जिले के खुज्जी विधानसभा क्षेत्र से पाॅचवी विधानसभा के सदस्य चुने गये। 4 सितम्बर 1975 में डॉ. मिश्र का देहांत हुआ। छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय विद्यालय की शुरुआत डॉ. मिश्र ने ही की।
                                       स्मरण गोष्ठी में आनन्द गुप्ता, मानस बाजपेयी,सौमित्र मिश्रा,प्रभात मिश्रा,अखिलेश बाजपेयी, चन्द्र प्रभा,डॉक्टर उषा किरण बाजपेयी,मनोज शुक्ला,महरण पुरी गोस्वामी समेत कई गणमान्य लोग मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन चन्द्र प्रकाश बाजपेयी और आभार प्रदर्शन डॉ. उषा किरण बाजपेयी ने किया।
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