कोष लेखा पेंशन विभाग में कुर्सी दौड़…संयुक्त संचालक ने की हाईकोर्ट आदेश की अनदेखी…दरवाजे पर जड़ दिया ताला

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर– कोषालय संभागीय संयुक्त संचालक कोष लेखा एवं पेंशन विभाग में कुर्सी दौड़ प्रतियोगिता चल रही है। हाईकोर्ट से स्टे आदेश की अधिकारी हाईकोर्ट के आदेश की धज्जियां भी उडाने से बाज नहीं आ रहे हैं। आदेश की अनदेखी कर भावेश दुबे कुर्सी से चिपक गए हैं। यद्यपि आन लाइन व्यवस्था से उन्हें भी जानकारी है कि मामले में स्थाजूद नांतरण के खिलाफ हाईकोर्ट ने स्टे देकर पहली की स्थिति बनाए रखने को कहा है। बावजूद इसके स्थानांतरण के बाद आए भावेश दुबे कुर्सी का मोंह छोड़ नहीं पा रहे हैं। इतना ही लंच या दो मिनट के लिए इधर उधर होते हैं तो चैम्बर का ताला बंद कर चाभी अपने जेब मे रख लेते हैं। तुर्रा यह कि जरूरी फाइल है इसलिए सावधानी रखना पड़ता है। लेकिन सच्चाई तो यह है कि भावेश दुबे इस बात को लेकर परेशान है कि यदि दरवाजा खुला रह गया तो राजेश कुमार श्रीवास्तव कुर्सी पर काबिज हो जाएंगे।

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                           इन दिनो संभागीय संयुक्त संचालक कोष लेखा विभाग में कुर्सी दौड़ प्रतियोगिता चल रही है। कुर्सी दौड़ प्रतियोगिता में हाईकोर्ट के आदेश को दरकिनार कर दिया गया है। एक कुर्सी के दो दावेदारों के बीच तलवार खिंच गयी है। जिसके चलते काम काज बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। कर्मचारी भी दो पाट के बीच पिसते नजर आ रहे हैं।

                      जानकारी हो कि शासन के निर्देश पर वित्त विभाग में स्थानांतरण सूची का प्रकाशन किया गयी । सूची में विश्वविद्यालय में पदस्थ भावेश दुबे का स्थानांतरण संभागीय संचालक कार्यालय कोष लेखा विभाग में किया गया। ठीक इसी सूची में संभागीय कार्यालय के संयुक्त संचालक राजेश श्रीवास्तव को डिपुटेशन में अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय भेजा गया।

               स्थानांतरण के खिलाफ राजेश श्रीवास्तव ने हाईकोर्ट में अपने वकील के जरिए याचिका दायर कर वस्तुस्थिति से अवगत कराया। राजेश के अधिवक्ता ने बताया कि चूंकि किसी भी कर्मचारी को डिपुटेशन में भेजे जाने से पहले सहमति जरूरी है। लेकिन स्थानांतरण के समय इस बात को नजर अंदाज किया गया।  राजेश श्रीवास्तव से बिना सहमति डिपुटेशन में विश्वविद्यालय के लिए स्थानांतरित किया गया। चूंकि राजेश श्रीवास्तव पहले भी लम्बे समय तक विश्वविद्यालय में डिपुटेशन पर रहकर सेवा दे चुके हैं। नियमानुसार डिपुटेशन से पहले सहमति का होना जरूरी है। नियम विरुद्ध स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।

                   हाईकोर्ट ने याचिका को गंभीरता से लेते हुए राजेश कुमार श्रीवास्तव के स्थानांतरण पर रोक लगाते हुए शासन को भी पत्र लिखकर वस्तुस्थिति स्पष्ट करने को कहा है। इसके अलावा कोर्ट ने भावेश दुबे के तीनों अधिवक्ताओं को स्पष्ट निर्देश दिया कि स्थिति को स्थानांतरण के पूर्ववत रखा जाए।

                                       इधर हाईकोर्ट के निर्देश के बाद भी भावेश दुबे ने संयुक्त संचालक की कुर्सी को ना केवल छोड़ने से इंकार कर दिया। बल्कि इस बात की जानकारी होने से भी इंकार किया कि उनके तीनों वकील को स्टे आर्डर पर अमल करने को कहा है।  सीजी वाल से बातचीत के दौरान भावेश दुबे ने बताया कि हाईकोर्ट से उन्हें अभी तक किसी प्रकार की जानकारी नहीं मिली है। दरवाजा पर ताला लगाए जाने के सवाल पर दुबे ने बताया कि जरूरी फाइल गायब हो गयी है। इसलिए दरवाजा पर ताला लटकाने का आदेश दिया है। मामले में छानबीन भी चल रही है। किसी प्रकार की नयी मुसीबत ना हो इसलिए दरवाजा पर ताला लटकाने का फैसला लिया है।

                           यद्पि दुबे ने हाईकोर्ट के फैसले की जानकारी होने से अनभिज्ञता जाहिर की। लेकिन बातों ही बातों में आनलाइन से हासिल हाईकोर्ट के फैसले को दिखाते हुए कहा कि इसमें ऐसा कुछ नही लिखा है कि राजेश श्रीवास्तव यहां रहेंगे या भावेश दुबे। कोर्ट ने तो केवल स्टे दिया है…स्पष्ट नहीं है कि कुर्सी पर कौन बैठेगा। डिटेल मिलने के बाद ही स्पष्ट होगा कि फैसला क्या है। भावेश ने यह भी बताया कि दरवाजा बन्द कर खाना खाने गया था। लेकिन इस बात को विवाद में ना घसीटा जाए। सुरक्षा के लिहाज से ताला लगाया है।

                       इधर मामले मेंं राजेश श्रीवास्तव ने बताया कि स्थानांतरण सामान्य प्रक्रिया है। लेकिन डिपुटेशन में भेजे जाने से पहले सहमति जरूरी है। चूंकि मुझसे सहमति नहीं ली गयी। स्थानांतरण के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर किया। 9 सितम्बर को सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान भावेश दुबे के तीनों वकील भी मौजूद थे। कोर्ट ने उन्हें भी अवगत कराया कि स्थानांतरण के खिलाफ स्टे दिया जाता है। फैसला आने तक स्थानांतरण सूची के पूर्व की स्थिति को बरकरार रखा जाए। कोर्ट ने राज्य शासन को भी पत्र लिखकर मामले मे जानकारी मांगी है। राजेश श्रीवास्तव ने यह भी कहा कि अब कोर्ट ही फैसला करेगा कि आदेश का पालन क्यों नहीं किया जा रहा है।

फाइल गायब…चिंता का विषय

समझने वाली बात है कि विभाग की जरूरी फाइल गायब हो गयी है। ऐसी सूरत में फाइल का गायब होना गंभीर बात है। सीजी वाल ने फाइल गायब होने की बात को गंभीरता से लेते हुए कलेक्टर से सम्पर्क का प्रयास किया। लेकिन नहीं बन सकी।

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