बिलासपुर में रावण पॉलिटिक्स..बुराई कहां..अच्छाई कहां और जीत किसकी….?इस बार एकदम अलग होगा नगर निगम का रावण दहन..महापौर नहीं होंगे शामिल

Chief Editor
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(गिरिजेय)।मंगलवार को दशहरा है। हर साल की तरह इस साल भी बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में रावण  के पुतले का दहन किया जाएगा। बिलासपुर में हर साल की तरह मुख्य समारोह पुलिस ग्राउंड में होगा । जिसे नगर निगम कराता है। आयोजन हर साल की तरह बड़ा और भव्य हो , इसके लिए बड़े पैमाने पर तैयारियां की जा रहीं हैं और रावण पॉलिटिक्स भी खूब हो रही है।

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पॉलिटिक्स ऐसी है कि इस बार रावण दहन का यह आयोजन सचमुच कुछ नया होने जा रहा है। एकदम नया ऑइटम यह है कि समारोह के आयोजक नगर निगम के मुखिया – शहर के प्रथम नागरिक  – महापौर किशोर राय इस आयोजन में शामिल नहीं होंगे। शहर में एक बार फिर अतिथि को लेकर झगड़ा खड़ा हो गया है।

महापौर ने नगर निगम सीमा में आने वाले सभी विधायकों को अतिथि नहीं बनाए जाने को लेकर अपना सख्त एतराज जताया है और खुद को इस आयोजन से अलग कर लिया है।

1996 के साल जब राजेश पाण्डेय बिलासपुर नगर निगम के मेयर थे, तब उन्होने रावण दहन की परंपरा शुरू की थी। तब यह तय हुआ था कि जो भी बिलासपुर शहर का विधायक होगा , उसे दशहरा उत्सव का मुख्य अतिथि बनाया जाएगा। तब से करीब हर एक साल यह परंपरा चल रही है।

1998 से करीब लगातार बीस साल तक अमर अग्रवाल बिलासपुर के विधायक रहे और वे लगातार नगर निगम के इस जलसे में मुख्य अतिथि बनकर रावण मारते रहे। 2008 के पहले हुए परिसीमन में बिलासपुर नगर निगम के कई वार्ड बेलतरा विधानसभा क्षेत्र में शामिल होने के बाद वहां के एमएलए बद्रीधर दीवान भी अतिथि के रूप में बुलाए जाते रहे।

पिछले साल 2018 के आखिर में हुए विधानसभा चुनाव में बदलाव हुए और शहर ने नया विधायक चुन लिया। लोगों को याद होगा पिछले चुनाव में “ वक्त है – बदलाव का ”  नारा खूब चला था। इस नारे को बुलंद करते हुए एक बदलाव और हुआ कि अभी हाल ही में नगर निगम की सीमा में बढ़ोतरी की गई और आस-पास के इलाके शामिल होने से अब एक – दो नहीं पाँच विधायकों का इलाक़ा बिलासपुर नगर निगम में शामिल हो गया है। ज़ाहिर सी बात है, सियासत और सियासी मैदान में आए इस बदलाव से नगर निगम का दशहरा उत्सव अछूता नहीं रह सकता था।

मंगलवार को होने वाले दशहरा उत्सव का इन्वीटेशन छप गया है। जिसमें बतौर अतिथि बिलासपुर विधायक शैलेश पाण्डेय और तखतपुर विधायक रश्मि सिंह के नाम हैं। निगम के दशहरा समारोह में .यह बदलाव स्वाभाविक है। लेकिन इससे अलग एक बड़ा बदलाव यह आया है कि निगम के समारोह में महापौर किशोर राय शामिल नहीं होंगे। उन्होने एलान कर दिया है कि वे इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे और खुद को इससे अलग कर लिया है।

उनका कहना है कि कार्यक्रम में राजनीति हो रही है। किशोर राय कहते हैं कि 1996 से यह परंपरा चली आ रही है और सभी उसे मानते  आ रहे हैं।अगर हमकों कुछ करना होता तो हम खुद एमआईसी की बैठक बुलाते और नियम में बदलाव कर  देते कि सांसद अब  मुख्य अतिथि होंगे । साथ ही नगरर निगम सीमा में आने वाले विधायकों को अतिथि के रूप में बुला लिया जाता। लेकिन हम इसे राजनीति के चश्मे से नहीं देखते ।

किशोर राय यह भी बताते हैं कि उन्होने निगम आयुक्त से कहा था कि दशहरा उत्सव विशुद्ध रूप से नगर निगम का समारोह है। इस बार नगर निगम की सीमा बढ़ गई है। इस सीमा के अँदर जितने भी एमएलए आते हैं, सभी को अतिथि बना दीजिए । इसमें दलगत राजनीति की कोई बात नहीं होगी। लेकिन उन्होने कांग्रेस के दो एमएलए को अतिथि बना दिया। न इस बारे में कोई बात की और न ही कुछ पूछा……। इस तरह नगर निगम के कार्यक्रम की राजनीति कर दी गई। उनका कहना है कि सत्ता तो आती जाती रहती है।

लेकिन शहर की परंपरा को इस तरह से खराब नहीं करना चाहिए । किशोर राय ने आगे य़ह  भी कहा कि पहले नगर निगम में बेलतरा विधानसभा का क्षेत्र शामिल था, वहां के विधायक भी अतिथि के रूप में आमंत्रित किए जाते रहे। इस बार ग्रामीण क्षेत्र नगर निगम की सीमा में शामिल हुए हैं। वहां के जनप्रतिनिधियों का सम्मान करते हुए बिल्हा विधायक धरमलाल कौशिक, बेलतरा विधायक रजनीश सिंह और मस्तूरी विधायक डॉ. कृष्णमूर्ति बाँधी को भी अतिथि के रूप में शामिल किया जाना था। लेकिन जिस तरह से कार्यक्रम में दलगत राजनीति की गई है, उसे देखते हुए ही उन्होने अपने को इस कार्यक्रम से अलग करने का फैसला किया है।

महापौर किशोर राय का यह रुख़ सामने आने के बाद अब यह साफ़ हो गया है कि जब बिलासपुर नगर निगम के लोग एक बार फिर नया महापौर चुनने जा रहे हैं, इससे ठीक पहले नगर निगम के ही ज़लसे में नगर निगम के मुखिया शामिल नहीं होंगे। बुराई पर अच्छाई की जीत के जश्न के मौके पर इससे क्या मैसेज़ जा रहा है…… इस पर भी लोगों के बीच बात हो रही है। पिछले कुछ समय से समारोहों में अतिथि बनने को लेकर चल रही खींचतान – आंदोलन – बयानबाजी से रूबरू हो रहे बिलासपुर शहर के लोगों को यह बात समझने में शायद कोई दिक्कत नहीं है कि शहर के ज़मीनी मुद्दों और मसलों को छोड़कर ” ईगो ”  के नाम पर सियासत कौन  कर रहा है और इसकी जड़ कहां पर है। लेकिन  दशहरे के मौके पर  तो  हर बार कहा जाता है कि रावण के रूप में अहंकार के पुतले का दहन  हो रहा  है। यही वज़ह है कि  इस बार आयोजन के पहले मचे घमासान में यह समझने की कोशिश हो रही है कि कहां पर अहंकार है…… कहां अहंकार का पुतला है ….. और कहां उसका दहन हो रहा है….. दहन हो भी रहा है या नहीं…..? लोग तो  यह भी समझने की कोशिश कर रहे हैं कि बुराई कहां है….. अच्छाई कहां हैं…….. और आखिर इस पॉलिटिक्स में  किसकी जीत हो रही है…?   बिलासपुर में रावण पॉलिटिक्स पहले भी चर्चा में रही है । लेकिन इस बार दहन की राजनीति ने मैदान की तस्वीर एकदम बदल दी है। सियासत भी होगी…. रावण भी मारा जाएगा और आतिशबाज़ी भी होगी । लेकिन पटाख़े पहले से ही फूट गए हैं……।

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