अपनों से बिछड़े बुजुर्गों के चेहरे पर मुस्कान का तोहफा लेकर आया एक तोता……!

Chief Editor
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अपनों से बिछड़े बुजुर्गों के चेहरे पर मुस्कान का तोहफा लेकर आया एक तोता……!

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सजर गिरे तो परिंदा उदास बैठा था….
आशियां मिला उसे अपनों से बिछड़ों के पास…

उक्त दो पंक्तियों के साथ लेकर मैं बात कर रहा हूं आजाद नगर, बिलासपुर के कल्याण कुंज आश्रम की, जहां ठीक इन पंक्तियों की तरह एक तोते को ऐसे लोगों के बीच आशियाना मिला है जो अपनों से बिछड़े हुए हैं और इस आश्रम में अपनी जिंदगी बसर कर रहे हैं। लगभग बीते 3 साल से एक तोते ने अपने से ठुकराए लोगों के बीच अपना आशियाना बनाया है। अपनों से ठुकराए लोगों के प्रेम ने परिंदे को इस तरह बांधे रखा है कि अब तो वह अधिकार से अपना हिस्सा मांग लेता है।
तोता मैना की कहानियां बहुत पुरानी है और इन कहानियों में दर्द – खुशी – प्रेम जैसी हर तरह की भावनाओं का संदेश मिलता है ।आश्रम के तोते की कहानी भी पुरानी कहानी से अलग नहीं है। लेकिन 21वीं सदी का यह तोता बता रहा है कि तोता – मैना की कहानी की संवेदनाएं अभी मरी नहीं है ।आश्रम के इस तोते ने तो अपनी जिंदगी का अंदाज कुछ इस तरह बना लिया कि वह एक खुद एक किस्सा बन गया है और आश्रम का हिस्सा भी बन गया है किसी पुरानी कहानी की तरह..…..।
पंछी है ….पिंजरे में कैद है ……।लेकिन उसे बेजुबान नहीं कह सकते दूसरे मिट्ठूओं की तरह यह तोता भी बोलता है । अपने दिल की बात कर लेता है और खूब बोलता है…..सुबह से रात तक उसकी रटन से वृद्ध आश्रम में चहल पहल रहती है ,और हर कोई उससे दो बातें करना चाहता है।
आश्रम में रह रही जोरा बाई ने तोते को सबसे पहले आश्रम में देखा था। तोते का आश्रम के साथ रिश्ता कैसे बना और वह आश्रम में कब – कैसे आया….? यह सवाल छेड़ने पर जोरा बाई बताती हैं कि लगभग 3 साल पहले यह तोता खुद ही आश्रम में आ गया, और फिर इसे हमने अपने साथ रख लिया। तब से यह हमारे वृद्ध आश्रम का एक सदस्य जैसा ही है । भोर होते ही राम-राम की रट लगाकर लोगों को जगाना और दिन भर रटन लगाकर आश्रम के सदस्यों का मनोरंजन करना ही इसका काम है। प्रकृति प्रदत्त स्वभाव के कारण रटने और बोलने की काबिलियत ने इस तोते को बुजुर्गों के काफी करीब ला दिया है। वहां का माहौल कुछ देर देख कर ही कोई समझ सकता है कि आश्रम में रह रहे बुजुर्ग उस तोते की चहलकदमी और मीठी जुबान में अपने किसी बिछड़े हुए या दूर जा चुके करीबी की छाप देख लेते हैं। शायद यही वजह है कि इस आशियाने में पनाह लेने के बाद यह तोता सभी को अपना सा लगने लगा है और बिछड़े हुए लोगों की कमी को अपनी मीठी जुबान से पूरा करने में काफी हद तक कामयाब भी नजर आता है।
वर्षों से लोगों को खाना बनाकर खिलाने का पुण्य कार्य कर रही प्रमिला विश्वकर्मा कहती है, कि जब से यह तोता आया है ,आश्रम में रौनक सी रहती है। तोते की वजह से वहां रहने वाले लोगों का मिजाज की काफी हद तक बदल गया है।आश्रम के सदस्य शांत रहते थे, लेकिन तोते के आने के बाद अब उसकी बड-बड का जवाब देना या उसे छेड़ कर परेशान करना सभी के स्वभाव में शामिल हो गया है । कभी-कभी तोता शांत रहता है , लोग खुद ही उससे बतियाने पिंजरे के पास पहुंच जाते हैं। इस तरह यह हमारे परिवार में शामिल है, नाश्ते और खाने के समय वह रट कर अपना हिस्सा मांग लेता है,और यदि कोई समाजिक संस्था के सदस्य या व्यक्ति आए तब भी वह पंख फड़ फड़ाकर अपने होने की ताकिद कर देता है, ताकि उस के हिस्से का खाना भी उसे मिल सके। कल्याण कुंज आश्रम की नींव पूर्व सांसद वीणा वर्मा ने 1986 में रखी थी, और इसके कुछ वर्ष बाद इसमें भवन बनाया गया। तब से यह आश्रम निरंतर संचालित है । आश्रम की निचले हिस्से के भवन में पुरुष वृद्ध रहते हैं , और ऊपर में महिलाएं निवास करती हैं । यह आश्रम जनपरिषद द्वारा संचालित किया जाता है और समाज कल्याण विभाग से सहायता प्राप्त है वर्तमान में निरंजन प्रधान प्रबंधक हैं।

यह आश्रम इन बुजुर्गों के लिए एक घर- परिवार की तरह है जो अब अपनों से दूर हैं । आपस में मिलजुल कर प्रेम से इस तरह रहते हैं कि अब उन्हें अपनों की कमी का एहसास नहीं होता। यकीनन प्रेम की ही डोर है जो उन्हें आपस में बांधकर रखे हुए हैं ।हर एक के दिल से निकलने वाली मोहब्बत की खुशबू आश्रम की आबोहवा में कोई भी महसूस कर सकता है । बुजुर्गों के चेहरे की मुस्कान भी इस ओर ही इशारा करती है ।ऐसे में आश्रम के इस कुनबे के सदस्य के रूप में यह तोता भी अपनेपन का एहसास कराता है। जिसकी चहक देखकर और मीठी- मीठी बातें सुनकर लगता है कि इस पंछी को भी आश्रम की हवा में घुली मोहब्बत की खुशबू यहां खींच लाई है । और अपनों से बिछड़े लोगों के बीच रहकर वह भी अपनों से बिछड़ने का गम भूल गया है। जैसे आश्रम में रहने वाले सभी बुजुर्ग भी अपना गम भूल कर खुश हैं। वैसे ही यह तोता भी इस आशियाने में आकर अपना गम भुला कर खुश है। और सभी की खुशियों में अपनी हिस्सेदारी निभा रहा है ।सभी को मिलने वाले उपहार में भी अपनी हिस्सेदारी हक के साथ मांग लेता है और उसे उसका हिस्सा भी पूरा मिल रहा है । यह देख कर बड़ा सुकून मिलता है।

किशोर सिंह,

जनसंपर्क अधिकारी

डॉ. सी.वी.रामन विश्वविद्यालय , कोटा बिलासपुर

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