बिलासपुर—-सूर्य देव और छठी मैया की आराधना का पर्व छठ पूजा में डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व होता है। खरना के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल षष्टी तिथि 2 नवंबर की शाम को डूबते सूर्य को संध्या अर्घ्य दिया जाएगा। इसके बाद दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी 3 नवंबर की सुबह सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाएगा। इसके बाद ही 36 घंटे का निर्जला उपवास पूरा होगा।
बिलासपुर छठघाट उत्सव समिति के वरिष्ठ सदस्य अभय नारायण राय ने बताया कि नहाय-खाय के साथ गुरुवार को छठ महापर्व की शुरुआत हो चुकी है। शुक्रवार को छठव्रती खरना यानि खीर का प्रसाद खा कर व्रत की शुरूवात किया है। शनिवार को छठव्रती घाट पर भगवान आदित्यनाथ को पहला अर्घ्य देंगे। जिला प्रशासन ने अरपा किनारे छठी मईया की आराधना के व्यापक इंतजाम किया है।
अभय ने बताया कि हमेशा की तरह जीवनदायिनी अरपा किनारे छठपूजा का कार्यक्रम होगा। बिलासपुर में देश का सबसे बड़ा स्थाई छठघाट है। यहां एक साथ हजारों श्रद्धालु छठपूजा करते हैं।
अरपा नदी के किनारे छठघाट की लंबाई साढ़े सात सौ मीटर से अधिक है। 500 मीटर के घाट को पक्का किया गया है। लगभग दो दशक पहले बिलासपुर के जागरूक लोगों ने अरपा किनारे छठ घाट को विकसित करने का मन बनाया । इसके बाद पाटलिपुत्र संस्कृति मंच और भोजपुरी समाज ने छठघाट को साकार रूप दिया। धीरे-धीरे छठघाट कि भव्यता बढती गयी। लोकआस्था इस कदर बढ़ी कि बिलासपुर का स्थाई छठघाट देश में सबसे बड़े घाट के रूप में स्थापित हो गया।
प्रशासन और जनभागीदारी से कुछ महीने पहले ही अरपा नदी की साफ सफाई हुई है। शनिवार शाम डूबते और उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देने एकसाथ हजारों लोगों की भीड़ जुटेगी। तीन नवम्बर को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर विधिवत छठ लोकपर्व का समापन होगा।
छठ पर्व कई मायनों में महत्वपूर्ण है। पर्व के माध्यम से लोगों की ना केवल मनोकामनाएं पूरी होती है। बल्कि पूजा में साफ सफाई का विशेष महत्व होता है। स्वच्छ जीवनशैली का संदेश भी मिलता है। पर्व कठोर त्याग की भावना से प्रेरित होता है।
अभय ने बताया कि छठ लोकपर्व में डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने की परम्परा है। परंपरा में प्रकृति से प्रेम और उसे जीवित रखने का संदेश होता है। सूर्य को अर्घ्य देते समय ओम सूर्याय नमः या फिर ओम घृणिं सूर्याय नमः, ओम घृणिं सूर्य: आदित्य:, ओम ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा मंत्र का जाप किया जाता है।
अर्घ्य देने के लिए तांबे के पात्र का ज्यादातर प्रयोग होता है। पात्र में दूध और गंगा जल मिश्रित करके पूजा के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है।