कस्टम मिलिंग दर मामले में अब तक कोई फैसला नहीं….. पंज़ीयन नहीं करा रहे राइस मिलर….. भौतिक सत्यापन के नाम पर जाँच कहीं दबाव बनाने का हथकंडा तो नहीं……?

Chief Editor
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बिल्हा । छत्तीसगढ़ में कस्टम मिलिंग नीति की विसंगतियों को दूर करने के लिए अब तक कोई भी ठोस पहल नहीं की जा सकी है। ख़ासकर राइस मिलर्स के पारिश्रमिक में की गई कटौती के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया ज़ा सका है। इधर राइस मिलर्स के पंजीयन के लिए तय की गई 20 नवंबर की तारीख आ गई  है। उधर भौतिक सत्यापन के नाम पर राइस मिलर्स की जाँच –पड़ताल शुरू कर दी गई है। माना ज़ा रहा है कि राइस मिलर्स में भय का माहौल बनाना , इस कार्रवाई का मक़सद हो सकता है। इसी तरह धान के बिचौलियों पर हो रही कार्रवाई से छोटे व्यापारियों और छोटे किसानों में भी दहशत फैल रही है। जिससे शासन की छवि पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।

जैसा कि मालूम है कि छत्तीसगढ़ में धान खरीदी की तैयारियाँ शुरू हो गई हैं। इसके साथ ही कस्टम मिलिंग को लेकर भी हलचल शुरू हो गई है। इस बीच सरकार की ओर से ज़ारी की गई कस्टम मिलिंग नीति में विसंगतियों को देखते हुए राइस मिलर्स ने शासन के सामने अपना पक्ष मज़बूती के साथ रखा है और शासन की ओर से उन्हे विसंगतियों को दूर करने का आश्वासन भी  दिया गया है। इस बारे में अभी तक कोई ठोस पहल सामने नहीं आई है। जिससे राइस मिलर्स का उत्साह बढ़े । शासन ने कस्टम मिलिंग के लिए पंज़ीयन कराने राइस मिलर्स को 20 नवंबर तक का समय दिया है। यह तारीख़ भी आ गई है। इधर शासन की डेडलाइन से पहले ही राइस मिलों के भौतिक सत्यापन की कार्रवाई शुरू कर दी गई है। जिसमें राइस मिलों की जाँच की जा रही है और स्टॉक में थोड़ा – बहुत फर्क़ मिलने पर कार्रवाई की ज़ा रही है। राइस मिलर्स का कहना है कि मिल में 10 -20 क्विंटल तक धान या चांवल का स्टॉक ऊपर – नीचे रहता ही है। ऐसे में सीधे कार्रवाई व्यावहारिक नहीं है। बड़े पैमाने पर स्टॉक मिलने पर कार्रवाई ज़ायज़ कही जा सकती है।  अभी तो राइस मिलर्स ने अपना पंजीयन भी नहीं कराया है। राइस मिलर्स मान रहे हैं कि इस कार्रवाई का मक़सद दबाव बनाना ही हो सकता है। शायद शासन में बैठे लोग राइस मिलर्स पर दबाव बनाना चाहते हैं। जिससे भय के माहौल में राइस मिलर्स टूट जाएं और आगे आकर पंजीयन कराएं।

छत्तीसगढ़ के राइस मिलर्स की सबसे प्रमुख समस्या यह है कि शासन ने नई कस्टम नीति में उनका पारिश्रमिक कम कर  दिया है।  प्रदेश में कस्टम मिलिंग शुरू होने के बाद से अब तक हर साल 30 से 40 रुपए तक प्रोत्साहन राशि दी जाती रही है। इसे बंद किए जाने के बाद राइस मिलर्स अब काम करने की स्थिति में नहीं हैं। उनका कहना है कि पारिश्रमिक को ही बंद करने का निर्णय पूरी तरह से अव्यावहारिक और अविवेकपूर्ण निर्णय है। इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता । सीधे तौर पर समझऩा चाहिए कि अगर किसी मज़दूर को उचित मज़दूरी ही नहीं मिलेगी तो वह काम कैसे कर सकेगा। मज़दूरी कम कर देने के बाद किसी भी मज़दूर को काम करने पर कैसे मज़बूर किया जा सकता है। शासन को इस पर त्वरित निर्णय लेना चाहिए । जिससे गतिरोध दूर हो सके। इसी तर्ज़ पर राइस मिलर्स भी अपना पक्ष रख रहे हैं और इसीलिए अभी तक़ अपना पंज़ीयन नहीं कराया है। राइस मिलर्स अपनी मांगों को लेकर प्रतिबद्ध हैं। प्रदेश में 1828 राइस मिलें हैं । यदि किसी तरह से सौ-पचास मिलर्स अपना पंजीयन भी कराते हैं तो क्या शासन  कस्टम मिलिंग का काम  सुचारू तरीके से पूरा करा सकेगी …?  आज के दौर में यह एक अहम् सवाल है। लेकिन इसका समाधान निकालने की बज़ाय शासन में बैठे लोग राइस मिलर्स पर भय और दवाब बनाने के लिए भौतिक सत्यापन जैसे हथकंडे अपना रहे हैं। जबकि इससे असंतोष बढ़ रहा है।

इसी तरह धान के संग्रहण और परिवहन के नाम पर छोटे व्यापारियों को कथित रूप से बिचौलिए बताकर कार्रवाई की जा रही है। छोटे व्यापारी संगठित नहीं है। वे सीज़नल धंधे के रूप में किसानों से छुटपुट धान खरीदी का काम करते हैं। इस समय जबकि शासन की ओर से धान खरीदी शुरू नहीं की गई है, ये छोटे व्यापारी ही किसानों का धान खरीद रहे हैं। जिन्हे अनावश्यक रूप से निशाना बनाया जा रहा है। जबकि सरकार की ओर से धान खरीदी शुरू होने से पहले किसानों की छोटी- मोटी जरूरतें इन छोटे व्यापारियों के माध्यम से ही पूरी होती हैं।हालांकि बार्डर के जिलों में सख्ती ज़रूरी है। जिससे पड़ोसी प्रदेशों का धान छत्तीसगढ़ में न आए । लेकिन शासन की ओर से की ज़ा रही इस कार्रवाई से छोटे व्यापारियों और छोटे किसानों में दहशत फैस रही है। सरकारी अमला शासन के आदेश के बहाने दबाव और भयादोहन का माहौल बनाने में लगा है। जिसे रोका जाना चाहिए ।

कस्टम मिलिंग के लिए शासन की ओर से तय की गई 20 नवंबर की डेडलाइन खत्म होने से पहले जो हालात नज़र आ रहे हैं, उससे लगता है कि स्थिति अब लगभग तालेबंदी के नज़दीक पहुंच गई है। यदि शासन – प्रशासन की ओर से इस मामले में सहानुभूतिपूर्वक विचार कर कोई क़दम नहीं उठाया गया तो छत्तीसगढ़ की राइस मिलों में तालाबंदी तय ही है। ऐसे में प्रदेश के चाँवल उद्योग तो बंद होंगे ही, साथ ही इससे जुड़े लाखों लोग भी बेरोज़गार हो जाएंगे।

सुरेश केडिया , बिल्हा

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