एल्डरमैन नियुक्ति के बाद कांग्रेस में सुलगने लगी नाख़ुशी…मंत्री को सुबह–सुबह फ़ोन पर क्यों देनी पड़ी सफ़ाई…?

Chief Editor
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(गिरिजेय)“आज तो कुछ नहीं पर….कांग्रेस के संघर्ष के साथियों के साथ अन्याय हुआ तो सोचना पड़ेगा… गुलाम नहीं संघर्षशील कार्यकर्ता है हम सब…” सोशल मीडिया पर यह लाइन सुबह से काफी चर्चित हो रही है । जिसे और कोई नहीं बल्कि प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष अटल श्रीवास्तव ने शेयर किया है ।हालांकि इन लाइनों के आगे -पीछे और कुछ भी नहीं है जिससे संदर्भ जोड़ा जा सके…।लेकिन ताजा – ताजा मामले में इसे गुरुवार को घोषित हुई नगर निगम एल्डरमैन की सूची से जोड़कर देखा जा रहा है  । हलचल का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सुबह-सुबह ही प्रदेश सरकार के एक मंत्री को इस मामले में फोन करके सफाई देनी पड़ी  । अभी इस मामले में अटल के लिखे मुताबिक “आज तो कुछ नहीं….”  समझकर भले ही सब कुछ शांत मान लिया जाए ।  लेकिन लगता है कि एल्डरमैन की नियुक्ति के मामले में आगे और भी बहुत कुछ हो सकता है।  भीतर – भीतर सुलग रही नाख़ुशी के बीच कांग्रेस की राजनीति में कल क्या होगा कहा नहीं जा सकता है…..।CGWALL न्यूज़ के व्हाट्सएप ग्रुप् से जुडने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये

             
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 जैसा कि मालूम है कि गुरुवार को प्रदेश के कई नगरीय निकायों में एल्डरमैन की नियुक्ति को लेकर आदेश जारी हुए । जिसमें बिलासपुर नगर निगम के 11 एल्डरमैन भी नियुक्त किए गए हैं । सूची सामने आने के बाद लोग यह अंदाजा लगाने लगे कि आखिर इसमें किस नेता की चली ….?  और कौन अपने समर्थकों को अधिक से अधिक संख्या में एल्डरमैन बनाने में कामयाब रहा । इस नजरिए से बिलासपुर नगर निगम की सूची बताती है कि इस बार शहर के विधायक शैलेश पांडे की चली और वे अपने अधिक समर्थकों को एल्डरमैन बनवाने में कामयाब रहे । कांग्रेसी हलकों में इस बात की चर्चा है कि 11 में से करीब 7 नाम एसपी समर्थक हैं ।  जबकि अटल श्रीवास्तव और संगठन खेमे को उम्मीद के हिसाब से कामयाबी नहीं मिल सकी ।  उनके समर्थकों को इस बार  मायूस होना पड़ा है और यह सवाल उठ रहा है कि क्या शहर की राजनीति का पावर सेंटर बदल रहा है …….?

सियासी फिजा में घुल रही इन चर्चाओं के बीच जो बातें निकल कर सामने आ रही हैं । उनसे कुछ ऐसा ऐसी तस्वीर दिखाई दे रही है कि बिलासपुर नगर निगम में एल्डरमैन नियुक्ति के लिए प्रदेश कांग्रेश उपाध्यक्ष अटल श्रीवास्तव ,शहर कांग्रेस अध्यक्ष प्रमोद नायक, महापौर रामशरण यादव और सभापति शेख नसीरुद्दीन आपसी सहमति से एक सूची ऊपर सौंपी थी।  साथ ही यह फार्मूला दिया था कि नगर निगम चुनाव में जिन समाजों को टिकट नहीं मिल पाई या जिन समाजों का प्रतिनिधित्व नगर निगम में नहीं हो सका है, उन्हें एल्डरमैन के रूप में मौका दिया जाना चाहिए । भूतपूर्व पार्षदों और पराजित उम्मीदवारों को स्थान न देकर डॉक्टर, इंजीनियर ,आर्किटेक्ट जैसे शहर के विकास के लिए अपनी एक सोच रखने वाले लोगों को अवसर दिए जाने की सिफारिश की गई थी । बताते हैं कि अटल श्रीवास्तव चाहते थे कि पूर्व मंत्री स्वर्गीय बी. आर. यादव की ओर से शुरू की गई परंपरा को आगे बढ़ाया जाए ।

जिसके तहत विभिन्न समाज के लोगों और शहर के बुद्धिजीवियों को एल्डरमैन के रूप में अवसर दिया जाए । लेकिन जो सूची आई है उससे उसे देख कर बिलासपुर शहर में कांग्रेस की राजनीति चलाने वालों के भी होश उड़ गए हैं । उन्हें उम्मीद थी कि जिस तरह निगम मंडलों में फार्मूला अपनाया गया था । उसी तरह का फार्मूला पूरे प्रदेश में एल्डरमैन की नियुक्ति को लेकर होगा और बिलासपुर का मॉडल कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित होगा  । लेकिन उसके उलट हुआ और एक बार फिर समर्थकों को उपकृत करने का फॉर्मूला अपना लिया गया । जिससे संगठन के तमामा नेता एक तरफ़ और एक तरफ़ एमएलए सब पर भारी पड़ गए।

कांग्रेसी हलकों में इस बात की चर्चा है कि संगठन ने पंजाबी ,बंगाली , सतनामी समाज के प्रतिनिधित्व की सिफारिश की गई थी। इसी तरह अरपा पार सरकंडा, बेलतरा, मस्तूरी, तखतपुर और बिल्हा विधानसभा से एक-एक व्यक्ति के प्रतिनिधित्व का फार्मूला रखा गया था । लेकिन जारी की गई सूची में बेलतारा ,मस्तूरी से एक भी नाम नहीं है  । सरकंडा इलाके से भी प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है । पार्षद चुनाव हारने वालों और पूर्व पार्षदों को भी लिस्ट में शामिल कर लिया गया है । यहां तक कि जिन लोगों पर पार्षद चुनाव के समय बीज़ेपी का साथ देने के आरोप लगे थे और बाकायदा शिक़ायतें की गईं थी, ऐसे लोगों के नाम भी लिस्ट में शामिल बताए जा रहे हैं। इसे लेकर पार्टी के अंदर नीचे से ऊपर तक अलग-अलग स्तर पर असंतोष की महक आने लगी है ।

सभी अपने स्तर पर अपनी प्रतिक्रिया का इजहार कर रहे हैं । सोशल मीडिया पर लगातार इस पर कमैंट्स भी आ रहे हैं । खबर है कि बिलासपुर में हुई इस प्रतिक्रिया के बाद सुबह-सुबह ही इस तरह के मामलों से जुड़े प्रदेश सरकार के मंत्री ने फोन कर अपनी सफाई दी और समझाने की कोशिश की कि किस तरह लिस्ट फाइनल की गई है ।  कांग्रेस में लोग इस तरह छोटी छोटी लड़ाइय़ों  में हार -जीत के फैसलों को सुनने और उससे निपटने के आदी रहे हैं।  लेकिन प्रदेश की राजनीति में पिछले तीन – चार  साल के बाद यह उलटफेर लोगों के गले नहीं उतर रहा है । पार्टी का भला चाहने वाले लोग यह भी कह रहे हैं कि भूपेश बघेल के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने और फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के बाद आम कार्यकर्ताओं में इस बात की का भरोसा जगा है कि अब किसी नेता के समर्थक नहीं बल्कि जमीनी कार्यकर्ताओं को अहमियत मिलेगी ।

यही वजह है कि एल्डरमैन की नियुक्ति के समय भी किसी नेता के समर्थक की बज़ाय  जमीनी कार्यकर्ताओं को अहमियत दिए जाने की उम्मीद बंधी थी । लेकिन जिस तरह समर्थकों के पोषण की परंपरा छत्तीसगढ़ राज्य बनने के तुरंत बाद शुरू हुई और बड़े नेता के समर्थकों को जगह मिलने लगी।  कुछ इसी तरह एल्डरमैन की नियुक्ति में भी दिखाई दे रहा है । ज़िसमें आसमानी छतरी से उतरे नेता को एक बार फ़िर से कामयाबी मिल गई है। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि पहले मध्य प्रदेश और फिर राजस्थान के घटनाक्रम के बाद विधायकों की बात सुने जाने पर अधिक जोर दिया जा रहा है । शायद यही वजह है कि इस बार विधायक की पसंद पर लिस्ट फाइनल हो गई  और एल्डरमैन की नियुक्ति के ज़रिए अपनी पूरी क़सर निकाल ली है। अब लोग इसमें एक दूसरे की ताकत का हिसाब – किताब तलाश रहे हैं और आने वाले दिनों की लड़ाई की दिशा का भी अँदाज़ा लगा रहे हैं।   कांग्रेस के भीतर उठ रही इस प्रतिक्रिया का असर अभी  चाहे जो भी हो …..। लेकिन कांग्रेस की एख यह खासियत भी है कि यहां कोई भी लड़ाई आखिरी नहीं होती । देखना है अब यह लड़ाई किस दिशा में मुड़ेगी …..?  

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