पूंजीपतियों और सरकार में साढगांठ….हड़ताली बैंकरों ने बनाया मानव चैन..कहा..नहीं होने देंगे निजीकरण

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर— यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स के आव्हान पर आईबीए के खिलाफ सभी बैंकर्स 30 मई 2018 की सुबह 6 बजे से 1 जून 2018 सुबह 6 बजे तक 48 घँटों की अखिल भारतीय हड़ताल पर हैं। बिलासपुर में भी यूनियन बैंक की मुख्य शाखा के पास बैंकरों ने  48 घन्टे की लगातार हड़ताल का समर्थन किया है। हड़ताल के दूसरे दिन बैंकरों ने तालाबंदी के बाद उपस्थित जन समूह को सम्बोधित किया है। इधर बैंक बंद होने से जनता को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

             
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                     हड़ताल के दौरान लोगों को संबोधित करते हुए ललित अग्रवाल ने  कहा पांच साल में एक बार वेतन पुनरीक्षण का काम किया गया। कई साल की देरी के बाद प्रस्तावित वेतन वृद्धि सिर्फ 2% किया गया। जबकि सातवें वेतनमान के केन्द्रीय कर्मचारियों को करीब 23.5% की वेतन वृद्धि हई है। ललित ने कहा क्या यह इंसाफ है। एक केन्द्रीय सरकार के कर्मचारी को न्यूनतम बेस पेमेन्ट 18000, और बैंक कर्मचारी की 11000 है। जबकि सब जानते हैं कि एक बैंक कर्मचारी को जोखिम लेकर दबाव में काम करना पड़ता है। फिर बैंक कर्मचारियों के साथ अन्याय किया जा रहा है।

                  ललित ने बताया कि हर संस्था में, हर क्षेत्र में कार्य के घंटे निश्चित हैं…सिवाय बैंकिग सेक्टर के। जबैंक कर्मचारी सुबह 9 बजे से रात 10-11 बजे तक लगातार काम करना पड़ता है। कई बार तो छुट्टी के दिन भी काम पर होना होता है। क्या बैंक कर्मचारियों का कोई परिवार नही होता? सरकार ऐसा क्यों नहीं सोचती है।

          ललित ने कहा कि बैंकिग के नाम पर जीवन बीमा,म्यूच्युल फण्ड,मेडिकल एन्स्योरेन्स समेत कई पालिसी बेचने का दबाव बनाया जाता है। इसके बाद भी बैंक कर्मचारियों की कार्यक्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया जाता  यह कहां की नैतिकता है? संगठन अधिकारी ललित ने बताया कि  बडे उद्योगपतियों को सरकार लोन देती है। उगाही नहीं होने पर एनपीए का ठीकरा बैंक कर्मचारियों के सिर पर फोड़ दिया जाता है।

                                    अपने संबोधन में ललित ने बताया कि  सरकारी नीतियों का फायदा निजी क्षेत्र के बैंकों पहुंचाया जाता है। सरकारी बैंकों को योजना लागू करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। फिर दलील दी जाती है कि सरकारी बैंक नुकसान में हैं। क्या यह सही है? बडे उद्योगपतियों को धड़ाधड़ बैंकिंग के लाईसेंस बांटे जाएं और सरकारी बैंकों का विलय कर उनका कार्य क्षैत्र सीमित कर दिया जाता है। जबकि सरकारी क्षेत्र के बैंक  नही रहेंगे तो आम जनता के लिए काम कौन करेगा? फिर कुछ निजि कंपनियों और बडे उद्योगपतियों को जनता का खून चूसने के लिए छोड़ दिया जाएगा। कभी इस बारे में विचार क्यों नहीं किया  जाता है।

बैंकरों ने कहा कि हड़ताल करना बैंक कर्मचारियों की मजबूरी है हड़ताल कर्मचारियों के लिए कोई छुट्टी का दिन नही होता बल्कि इसकी भरपाई उन्हें अपना वेतन कटवा कर करनी पड़ती है।  मंशा सिर्फ इतनी सी है कि सरकार के कानों तक उनकी बात पहुंचे। आम जनता को उनके साथ हो रहे अन्याय के बारे में बताया जा सके।

                         इसस दौरान प्रदर्शनकारी बैंकरों ने मामा-भांचा तालाब से पुराने हाईकोर्ट तक मानव श्रंखला बना कर आम जनता का सहयोग लिया। इस मौके पर दीपा टन्डन, लोकनाथ कुर्रे, डी के हाटी, एस बी सिंह, प्रदीप कुमार यादव, सुनील श्रीवास्तव, डी के श्रीवास्तव, दीपक श्रीवास्तव,एन वी राव, अशोक ठाकुर, राजेश रावत, जितेंद्र शुक्ला, शरद बघेल व सौरभ त्रिपाठी, पी के अग्रवाल, रूपम रॉय, एम के पटसानी, अशोक रॉय, कैलाश अग्रवाल, पार्थो घोष, अश्विनी सूद, उर्मिलेश पाठक,  दीपक साहू, नरेंद्र सिंह, शिवांगी, सैयदा, दीप्ति, रौशनी, मोनालिशा, मनीषा, पार्थो घोष, अविनाश तिग्गा, शरद यादव, कनक डोंगरे सहित बड़ी सँख्या में बैंक कर्मचारी और अधिकारी मौजूद थे।

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