भ्रष्टाचार का भेट चढ़ा बिलासा उद्यान…अय्याशों ने बनाया रंगरेली का अड्डा…झुरमुटों के पीछे टकराते हैं जाम से जाम

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—शहर का तेजी से विस्तार हुआ। थोड़ी बहुत ही सही लेकिन लोगों को राहत देने कुछ गार्डन और दर्शनीय स्थल का विकास भी हुआ। जहां बच्चे बूढे और नौजवान तनाव से निजात पाने कुछ रूपए खर्च कर ताजगी खरीद सके। ऐसे स्थलों में वन विभाग का कानन पेन्डारी और बिलासा ताल उद्यान का नाम लोगों की जुबान पर विशेष रूप से सुना जा सकता है। बताते चलें कि आज इन दोनों स्थानों की हालत बद से बदतर हो चुकी है। खासकर बिलासा ताल उद्यान वन अधिकारियों के भ्रष्टाचार की बलि चढ़ गया है। यहां पहुंचने का अर्थ बीमारी और तनाव लेकर घर  लौटना है।

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                   कोनी के पास जब बिलासा ताल गार्डन का निर्माण किया जा रहा था…उसी समय लोगों ने भ्रष्टाचार की गंध को महसूस किया। बावजूद इसके जनता में इस बात को लेकर खुशी थी कि यहां परिवार के साथ छुट्टियों में कुछ घंटे बिताए जा सकते हैं। कुछ रूपए देकर खुशियों को खरीदा जा सकता है। लेकिन समय के साथ जनता के सारे सपने टूट गए। बिलासा ताल अब अय्याशों और भ्रष्टाचार का गढ़ बन गया है। यहां आज भी रंगीन मछलिया हैं..लेकिन जिस पाइट पर खड़े होकर दाने खिलाए जाते हैं…मौत का पर्याय बन चुका है। नाव चलना तो दूर…अब तो लकड़ी का पुल भी ध्वस्त हो चुका है। बच्चोंं का डायनासोर अब ब्रश करते हुए नहीं..बल्कि वन अधिकारियों की भ्रष्टाचार को देखकर गरदन नीचे झुका लिया है।

                                          एक दौर था कि अभिभावक शाम होते ही बच्चों को लेकर बिलासा ताल मनोरजंन पार्क की तरफ निकल पड़ते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब परिवार के लोग बिलासा ताल के नाम पर कन्नी काटने लगे हैं। दरअसल बिलासा उद्यान इस समय अय्याश किस्म के लोगों का अड्डा बन गया है। सच्चाई तो यह है कि बिलासा ताल वन विभाग के भ्रष्टाचार का जीता जागता नमूना मात्र रह गया है। करोड़ों रूपए खर्च कर तैयार बिलासा ताल की व्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो चुकी है। बच्चों का डायनसोर अब ब्रश करता नहीं…बल्कि भ्रष्टाचार और रंंगरेली मनाते लोगों को देखकर सिर झुका लिया है। डायनासोर ही नहीं बल्कि अन्य मूर्तियों को देखकर सबको रोना आने लगता है।

                         लाखों रूपए खर्च कर तैयार लकड़ी का पुल पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। रंगीन मछलियांदिखाई तो देती हैं। लेकिन उन्हें लाई खिलाने वाला कोई नहींं मिल रहा है। यदि कोई खिलाना भी चाहे तो मुश्किल होगा। क्योंकि जहां से रंंग बिरंगी मछलियों को लाई खिलाई जाती है…वह स्थान अब दुर्घटना को निमंत्रण देता है।

                 बताते चलें कि एक समय बिलासा ताल में घुड़सवारी की भी व्यवस्था थी। समय के साथ वही हुआ…जो होना था। समय के साथ बचा खुचा आकर्षण भी खत्म हो गया। सफाई व्यवस्था तो पूरी तरह से चौपट हो गयी। लाखों रूपए से तैयार लकड़ी का पुल पूरी तरह से ध्वस्त हो गया। सीमेन्ट के पुतले जीर्ण शीर्ण अवस्था में आ गए है। बावजूद इसके वन विभाग कुंभकरण नींद से जागने को तैयार नहीं है।

                     यद्यपि जिला प्रशासन ने एक साल पहले बिलासाताल को ठीक ठाक करने का बीड़ा उठाय। लेकिन वन विभाग ने प्रपोजल ही नहीं दिया। नाम नहीं छापने की सूरत में वन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि नए प्रपोजल में जिला प्रशासन ने स्पष्ट कहा था कि निर्माण में किसी किसी प्रकार की धांधली को बर्दास्त नहीं किया जाएगा। इसके बाद वन विभाग के अधिकारियों ने प्रपोजल को रद्दी की टोकरी में डाल दिया।क्योंकि कलेक्टर ने स्पष्ट कहा था कि पिछली गलतियों की पुनरावृत्ति को बर्दास्त नहीं किया जाएगा।

              बहरहाल बिलासा ताल उद्यान अय्याशों का अड्डा बन गया है। रंगरेली मनाने वाले अब देर शाम का इंतजार नहीं करते हैं। ऐसा करने वालों को वन विभाग वालों का भी समर्थन होता है। यहीं कारण है कि दोपहर होते ही झुरमुटों के पीछे जाम से जाम टकराने की आवाज आने लगती है। बच्चों के खेल -खिलौने की हालत किसी से छिपी नहीं है। यहींं कारण कि अब यहां कोई आना भी नहीं चाहता है।

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