मोहन भागवत के बयान पर बोले जोगी- संस्कृति और संविधान की मूल भावना के विपरीत बोल रहे संघ प्रमुख

Chief Editor
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रायपुर। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जे के संस्थापक अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री  अजीत जोगी ने गत दिवस मेरठ उत्तरप्रदेश में संघ प्रमुख मोहन भागवत के असामयिक बयान को भारतीय संस्कृति एवं संविधान की मूल भावना के विपरीत करार दिया है, जिसमें भागवत ने हिन्दुओं को कट्टर बनने का आव्हान किया है।

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श्री जोगी ने कहा है कि उक्त बयान देश की अस्मिता, एकता एवं आपसी सौहार्द्र के लिए घातक है। विश्व के सभी धर्म कट्टरता के विरोधी हैं तथा धार्मिक सहिष्णुता एवं मानवीय सोच के पक्षधर हैं। सभी धर्म एक दूसरे के मान-सम्मान को बनाये रखने के हिमायती हैं। किसी भी धर्म में कट्टरता के लिए कोई स्थान नहीं है। हिन्दू धर्म सभी धर्मावलम्बियों को ‘‘वसुदैव कुटुम्बकम’’ का पैगाम देता है। ईस्लाम धर्म के पवित्र ग्रंथ कुराने पाक में बताया गया है कि ‘‘लकुंम दीनकुम वलयदीन’’ अर्थात् ईस्लाम धर्म सभी धर्मों की ईज्जत एवं सम्मान करने की सीख देता है। ईसाई एवं सिक्ख धर्म भी आपसी सौहार्द्र एवं सहिष्णुता को तरजीह देता है।

श्री जोगी ने मोहन भागवत से कहा है कि उनके केवल हिन्दुओं को कट्टरता अपनाने का बयान देना संघ की धर्म विशेष के प्रति असहिष्णुता का बीज बोने का प्रयास है जो देश की एकता, अखण्डता एवं सौहार्द्र के लिए घातक, विभाजक एवं विस्फोटक स्थिति उत्पन्न करने वाला है। मोहन भागवत को इस बात की भलीभांति जानकारी होना चाहिए कि धार्मिक कट्टरता केवल आतंक एवं उन्माद को प्रश्रय देता है। मोहन भागवत का कट्टरता के लिए प्रेरित बयान उन्मादियों का हौसला बढ़ाने वाला है। कश्मीर एवं माओवाद में बढ़ते घटनाक्रम एवं हिंसक वारदात कट्टरता की ही देन है। देश में बढ़ रही आतंकी एवं उन्मादी घटनाएं कट्टर धर्मान्धता की ही देन है। संघ प्रमुख को अपने कट्टरवादी बयान के लिए देशवासियों से क्षमा मांगना चाहिए तथा देशवासियों को शांति तथा सौहार्द्र का पैगाम देने वला पाठ पढ़ाना चाहिए वही देशहित में है क्योंकि कट्टरता असहिष्णुता की जननी है।

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