बिलासपुर—हाईकोर्ट ने आज एक अहम मामले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि विभागीय जांच के बिना किसी भी अधिकारी-कर्मचारी के खिलाफ वसूली आदेश जारी नहीं जी जा सकती। मामला जशपुर जिले के लैलूंगा जनपद पंचायत का है। साल-2003 में निर्माण कार्य में 37 लाख की गड़बड़ी उजागर होने पर तत्कालीन जनपद पंचायत सी.ई.ओ संतोष कुमार वाहने के खिलाफ कार्रवाई करते हुए कलेक्टर ने सी.ई.ओ का तबादला पत्थलगांव कर दिया। साथ ही कारण बताओ नोटिस भी जारी किया।
संतोष कुमार ने नोटिस का जवाब देते हुए कहा कि 37 लाख की अनियमितता के लिए वो अकेले जिम्मेदार नहीं हैं। पिछले 4 अलग-अलग सी.ई.ओ के कार्यकाल से अनियमितता हुई है। लिहाजा रिकवरी की कार्रवाई अकेले उनसे ना की जाए। जवाब से असंतुष्ट कलेक्टर ने संतोष कुमार के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई का फरमान जारी कर दिया।
कलेक्टर के फरमान से परेशान लैंलूंगा के तत्कालीन सीईओ ने नोटिस को हाईकोर्ट में चुनौती दी। आज हाईकोर्ट ने मामले में फैसला सुनाते हुए याचिकाकर्ता को आंशिक राहत देते हुए कहा है कि विभागीय जांच के बिना किसी भी अधिकारी-कर्मचारी के खिलाफ वसूली आदेश जारी नहीं जी जा सकती है।
अपने निर्णय में हाईकोर्ट ने कलेक्टर को जांच के बाद कार्रवाई करने का छूट प्रदान किया है।