बिलासपुर । हाल ही में शहर से लगे भरनी के एक प्रइवेट स्कूल में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। जिसमें दर्शकों को कला का अद्भुत संगम देखने को मिला। चूंकि देश के जाने- माने सेंड आर्टिस्ट पद्मश्री सुदर्शन पटनायक की कला के साथ ही सस्मिता दास का गायन भी लोगों को सुनने का मौका एक ही मंच पर –एक ही समय मिल गया। इसी संगम में एक और कलाकार उस परिसर में मौजूद था- त्रिजुगी कौशिक….। कैमरे के पुराने खिलाड़ी श्री कौशिक खुद कविताएं भी लिखते हैं……। मंच पर मौजूद महान कलाकारों की फोटो भी उन्होने एक कलाकार के अंदाज में खींची…..। जिसमें प्रकाश के संयोजन से सेंड आर्ट और गायिका की छवि अपने – आप में खुद ही एक कला के रूप में उभर आई है। इतना ही नहीं उन्होने इस पर कुछ पंक्तियां भी लिखी हैं। इन पंक्तियों को उन्होने सीजीवॉल के साथ साझा किया । ( सीजीवॉल )
पद्श्री सुदर्शन पटनायक के लिए
0 त्रिजुगी कौशिक 0
समय रहते समय के परे
रेत से समय को बांधना
तुम्हारी अद्भूत कला है
देह-विदेह की परिभाषा
बनते-बिगड़ते रेत कणों में
तुम्हारी कल्पना अकल्पनीय है
बुद्ध जनक रामकृष्ण परमहंस
ने उसे जाना था
देह की भाषा से इतर
विदेह हो, सांसारिक सरोकार सोचना
स्त्री-पुरूष की दैहिक व्यामोह से मुक्त
उस अवधारणा को कथ्य में उतारना
तुम ही कर सकते हो
तुम्हारी कला अभिव्यक्ति में
सतत् साधना साकार है
आत्मिक स्वरूप का
रूपांकन बनते-बिगड़ते आकार में
सांसारिकता के साथ रूपाकंन
विदेह होना अद्भूत है
रेतघड़ी में गिरते रेतकणों को
पकड़ना आसान नहीं होता
देह के रहते जैसे विदेह होना
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