जाग गयी आधी आबादी…सीख लिया कंधा मिलाकर चलना…कहा अब बर्दास्त नहीं

BHASKAR MISHRA
6 Min Read

IMG20170803130029 बिलासपुर— साजिश है…आधी आबादी के साथ…महिलाओं के साथ…साजिश की परम्परा सदियों से है…। आज भी त्याग,बलिदान और समर्पण की मूर्ति बनाकर धोखा दिया जा रहा है। महिलाओं ने शालीनता की सीमा को कभी नहीं लांघा…उन्हें अंदाजा है कि समाज की प्रतिष्ठा उनसे है। और एक दिन पहले महिलाओं ने हक और हुकूक के लिए कंधे से कंधा मिलाकर मंगला चौक से मुंगेली नाका चौक तक हजारों की संख्या में प्रदर्शन किया। सड़क किनारे लम्बी कतार कुछ इस तरह की थी…मानों किसी के अंतिम संस्कार में जा रही हों…जैसा की ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिलता है। इसका शासन पर कितना असर हुआ..जानकारी नहीं है…लेकिन जानकारी जरूर है कि बीस साल से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के अन्याय हो रहा है। विरोध भी कुछ ऐसा कि आम आदमी भी सोचने को मजबूर हो जाए।

                          समाज के समग्र विकास में आंगनबाड़ी महिलाओं का अहम योगदान है। महत्व को समझते हुए सरकार ने आंगनबाड़ी केन्द्रों को महिला एवं बाल विकास का हिस्सा बनाया।  क्योंकि महिलाएं ही देश की भावी पीढ़ी की देखभाल बेहतर कर सकती है। बात को ध्यान में रखते हुए शासन ने आंगनबाड़ी केन्द्रों में पुरूषों की जगह महिला कार्यकर्ता और सहायिकाओं को रखा। लेकिन सरकार ने उनकी आवश्यकताओं को कभी भी गंभीरता से नहीं ली। उल्टा आंगनबा़ड़ी महिलाओं पर अन्य विभागों का भी काम थोप दिया। अपनी उपेक्षा से नाराज आंगनबाड़ी महिलाओं ने एक दिन पहले सड़क किनारे खड़े होकर कंधे से कंधा मिलाकर गांधीगिरी की। शांति के साथ ताकत और मर्यादाओं का प्रदर्शन किया।IMG20170803130018

                         उच्च शिक्षित एक कार्यकर्ता ने बताया कि महिलाएं प्रदर्शन नहीं करेंगी तो उनके साथ अन्याय होता रहेगा। जिसने प्रदर्शन किया वे आगे निकल गए। ग्रामीण अंचल में बच्चों को सही पोषण आहार मिले। पालन पोषण अच्छी तरह से हो…सरकार ने आंगनबाड़ी केन्द्रों की स्थापना कर महिला एवं बाल विकास से जोड़ दिया। छत्तीसगढ़ राज्य बनते समय आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय 500 और सहायिकाओं का मात्र 250 रूपए था। वर्तमान में कार्यकर्ताओं का मानदेय 4000 और सहायिकाओं का मात्र 2000 रूपए है। क्या भीषण महंगाई में पर्याप्त है।

                                 जबकि राज्य बनने के बाद पंचायत संविदा शिक्षको का वेतन इसी के आस पास था। आज संविदा शिक्षकों को हर महीने 15000 और सचिवों को 10,000 रूपए मानदेय मिलता है। जबकि उनका काम आंगनबाड़ी महिलाओं के दायरे से बहुत कम है। बावजूद इसके आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को लेकर सरकार गंभीर नहीं हुई। जबकि सरकार की सभी योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने का आंगनबाड़ी की महिलाएं करती हैं। शायद ही कोई ऐसा विभाग हो जहां आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की सेवाओं को नहीं लिया जाता। यहां तक की राजनीतिक सभाओं में भी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भीड़ जुटाने को जिम्मा दिया जाता है।

सभी विभागों की जिम्मेदारी…

                      सरकार जब जब नई योजनाएं लाती है…प्रचार प्रसार के केन्द्र में आंगनबाड़ी केन्द्र होता है। विभाग कोई हो…लेकिन महिला एवं बाल विकास के आगनबाड़ी केन्द्रों का उपयोग सब्जी में आलू की तरह किया जाता है। किसी जमाने में ऐसी हालत शिक्षकों की थी। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका एक साथ कई विभागों की कई योजनाओं के लिए काम करती हैं। चाहे स्वास्थ्य विभाग की योजना हो…आँगनबाड़ी उसके केन्द्र में है। प्रसव, पोलियो,टीकाकरण,जच्चा बच्चा की निगरानी सभी काम सहायिका और कार्यकर्ता करती हैं।  शिक्षा विभाग का शाला प्रवेश उत्सव,राजस्व विभाग का बीएलओ केन्द्रों में निर्वाचन का काम, मोदी का स्वच्छता अभियान, पीएचई का पेयजल सर्वे,आधार सीडिंग,जनसंख्या सर्वे सब कुछ तो सहायिका और कार्यकर्ताओं के सिर पर है। यदि सहयोग नहीं करो तो समझो नौकरी गयी।

कितने आंगनबाड़ी केन्द्र

              anganbadi बिलासपुर जिले में कुल 2667 आंगनबाडी केन्द्रों को मिलाकर प्रदेश में 25 हजार आंगनबाड़ी केन्द्र हैं। 50 हजार कार्यकर्ता और सहायिका मात्र चार और दो हजार के मानदेय पर हाड़ तोड़ दस घंटे मेहनत करती हैं। कितना न्यायसंगत है…कि देश के भविष्य को सवारने वालों के साथ सरकार उपेक्षित व्यवहार करें…।

कार्यकर्ताओं ने क्या मांगा

                   आंगनबाड़ी महिला कर्मचारियों ने बताया कि हम हाड़ तोड़ मेहनत करते हैं। सभी विभागों का काम करते हैं। लेकिन मानदेय ऊंट के मुंह में जीरा की तरह है। हम चाहते हैं कि सरकारी कर्मचारियों की तरह सम्मान मिले। मानदेय 18 हजार और रिटायर्ड होने के बाद सेवा प्रतिफल पांच लाख रूपए मिले। लेकिन सरकार मांग को लेकर गंभीर नहीं है।

बड़े कर्मचारियों पर मेहरबानी

                    उच्च शिक्षित कार्यकर्ता ने बताया कि कलेक्टर,प्रोफेसर,डाक्टर पूरी जिन्दगी ऊंचा वेतन लेते हैं। रिटायर्ड होने के बाद भरपूर सेवा प्रतिफल मिलता है। बाद में जोड़तोड़ कर रिटायर्ड अधिकारी संविदा में सेवा देने लगते हैं। यहां भी भरपूर वेतन होता है। हम लोग 18 हजार रूपए मानदेय मांगते हैं तो हटाने की धमकी दी जाती है। 18 हजार मानदेय नहीं देना है तो हमें महिला एवं बाल विकास की योजनाओं तक सीमित क्यों नहीं किया जाता है।

                        बहरहाल देश की आधी आबादी  जाग गयी है। अधिकारों को पहचानने लगी है। उन्हें सेवा और शोषण में भेद का अहसास हो चुका है। उम्मीद है उन्हें अब सुना जाएगा। क्योंकि उन्होने कंधे से कंधा मिलाकर चलना सीख लिया है।

close