सेन्ट्रल जेल से आजादी के बाद शिक्षाकर्मी की आपबीती..2 माह की बच्ची को सजा….अधिकार मांगने का अर्थ..जेल

BHASKAR MISHRA
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IMG-20171205-WA0037बिलासपुर–हम लोग कोर्ट जाएंगे…हद हो गयी…हमें रायपुर रेलवे स्टेशन से उठा लिया गया…151 की धारा थोप दी गयी..जबकि हमने धारा 144 का उल्लंघन भी नहीं किया। धरना प्रदर्शन स्थल तक गये भी नहीं…। बावजूद इसके 24 घंटे तक केन्द्रीय जेल में रखा गया। ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि कभी जेल का दरवाजा मत दिखाना। केन्द्रीय जेल से छुटे शिक्षाकर्मियों ने पत्रकारों से आपबीती सुनाई।

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दीप त्रिपाठी अपने शिक्षाकर्मी साथी योगेश पाण्डेय, धीरेन्द्र पाण्डेय, धीरेन्द्र पाठक और आलोक पाण्डेय के साथ आंदोलन में भाग लेने चार दिसम्बर को बिलासपुर से रायपुर रवाना हुए। चारों रणनीति के अनुसार अलग अलग होकर रायपुर रेलवे स्टेशन उतरे। बावजूद इसके पुलिस ने पकड़ लिया। सभी को केन्द्रीय जेल दुर्ग भेज दिया गया। मंगलवार की शाम केन्द्रीय जेल से छूटते ही चारों ने पत्रकारों से आपबीती सुनाई। संदीप त्रिपाठी ने बताया कि 24 घण्टे की जेल यात्रा के बाद ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि अब जेल का दर्शन मत करवाना।



                         आपबीती सुनाते हुए संदीप ने बताया कि हम लोग धरना स्थल तक नहीं गए। लेकिन धारा 151 के तहत जुर्म दर्ज कर केन्द्रीय जेल भेज दिया गया। करीब 350 शिक्षाकर्मियों को 24 घंटे तक दुर्ग केन्द्रीय जेल में बंदी बनाकर रखा गया। महिला शिक्षाकर्मियों को अलग सेल में रखा गया। दो तीन महिला शिक्षाकर्मियों ने पुलिस के सामने गिड़गिड़ाते हुए कहा कि दो महीने की बच्ची है लेकिन किसी का दिल नहीं पिघला। नजारा देखने के बाद समझ में नहीं आया कि सरकार कठोर हो गयी है या पुलिस। एक मां की गुहार को नहीं सुना गया। हम लोग जैसे तैसे दिन रात काट लिए…लेकिन सारी रात बच्ची रोती रही। इसके बाद मुझे अपने आप से घिन्न हो गया है। सोचने को मजबूर हो गया कि यह कैसा लोकतंत्र जहां मासूम बच्ची को नहीं बख्शा गया…उस सिस्टम से न्याय की क्या उम्मीद करें।



                     संदीप त्रिपाठी ने बताया कि जेल की जिन्दगी नरक से भी बदतर है। कैदियों ने हमे सम्मान दिया। लेकिन पुलिस और सरकार से हर कदम पर अपमानित होना पड़ा। पूरी रात कैदियों ने हमारी सेवा की। रोती बच्चियों को शांत कराने कैदी भाइयोंं ने रात दिन एक कर दिया। हमने बहुत निवेदन किया कि मासूम बच्चों की मां  को छोड़ दिया जाए। लेकिन किसी ने नहीं सुना । दो महीने के बच्ची ने भी हमारे साथ बिना किसी दोष के 24 घंटे की जेल की सजा काटी।

            संदीप ने पत्रकारों को बताया कि दुर्ग केन्द्रीय जेल में हम लोगों को कांजी हाउस में बंद जानवरों की तरह रखा गया। खाने में अधजली कच्ची रोटी ,करेले की कच्ची सब्जी और उबले आलू की सब्जी दी गयी। मरता क्या ना करता…खाना पड़ा..लेकिन दो-दो महीनों की बच्चियों और उनकी मां को अलग से कोई इंतजाम नहीं किया गया। संदीप ने बताया जेल में तानाशाही चलती है। दो चार कैदी ऐसे भी मिले..जिनकी सजा सालों पहले खत्म हो चुकी है…लेकिन उन्हें आज तक रिहा नहीं किया गया है।


संदीप के साथियों के अनुसार हम लोग देर रात बिलासपुर पहुच जाएंगे। संगठन से विचार विमर्श के कर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। न्याय की गुहार लगाएंगे कि आखिर किस जुर्म में केन्द्रीय जेल भेजा गया। धरना प्रदर्शन स्थल तक नहीं गए। बावजूद इसके धारा 144 तोड़ने का आरोप लगाया गया। 151 का जुर्म माथे पर लिख दिया गया। कोर्ट को बताएंगे कि जेल में कैदियों के साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया जा रहा है। मानवाधिकार की बातें किताबों में है…कैदियों के साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया जाता है।

संदीप ने बताया कि घर वाले नाराज हैं। पूछ रहे हैं कि क्या जुर्म किया। उन्हें कैसे समझाए कि लोकतंत्र में अधिकार मांंगने की सजा अब जेल है।

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