कांग्रेस परिवार मे “झगरहा जिले” की नई पहचान…भूपेश भी जानना चाह रहे-बिलासपुर से लौटने के बाद क्यूं मिलती है झगड़े की ख़बर…?

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(रुद्र अवस्थी)हर समय – हर बार  और बात – बेबात लड़ाई – झगड़ा – फ़साद के लिए तैयार रहने वाले शख़्स का नाम  छत्तीसगढ़ी में रखना हो तो , उसे “झगरहा” नाम दिया जाता है। गाँव –शहर, घर – परिवार में कोई नहीं चाहता कि उसे यह नाम और ऐसी पहचान मिले । लेकिन छत्तीसगढ़ कांग्रेस के परिवार में बिलासपुर की पहचान “झगरहा ज़िले” के रूप में होने लगी है। अब तक कांग्रेस के भीतर के झगड़े की ख़बरें सुर्ख़ियों में आती और चटखारों के साथ चंद दिनों की बतकही के बाद गुम भी हो जाती ।लोगों की दिलचस्पी इस बात पर ही अधिक होती कि इस झगड़े में किस ख़ेमे की जीत – हार हुई है। मगर अब इस पर संज़ीदगी से भी बात होने लगी है। रायपुर के राजीव भवन में प्रदेश भर के जिला कांग्रेस अध्यक्षों और जिला प्रभारियों की अहम् बैठक के दोरान भी बिलासपुर में होने वाले झगड़े की चर्चा रही ।

             
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छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रभारी पी.एल.पुनिया – सीएम भूपेश बघेल सहित पार्टी के तमाम दिग्गज नेताओँ की मौजूदगी में यह मीटिंग सत्ता और संगठन के बीच तालमेल को लेकर बुलाई गई थी। जिसमें प्रदेश सरकार के मंत्रियों नें संगठन पदाधिकारियों के सामने एक तरह से अपना “रिपोर्ट कार्ड” रख़ा। कई जिला कांग्रेस अध्यक्षों -प्रभारियों ने भी कई विभागों को लेकर सवाल किए औऱ मंत्रियों ने जवाब दिए।  संगठन की इस अभिनव पहल का इतना अच्छा असर हुआ कि मीटिंग करीब सात घंटे लंबी चल गई। लेकिन कांग्रेसियों के बीच की लड़ाई की बात आई तो सभी के मुंह का स्वाद कसैला हो गया । पी.एल. पुनिया ने भी जाँजगीर जिले में झगड़े पर चिंता जताई। इस बीच हवाई सेवा के लिए बिलासपुर शहर के ज़नआंदोलन  में साथ देने और दिल्ली फ़्लाइट को मंज़ूरी दिलाने के नाम पर ऐतिहासिक स्वागत के लिए सीएम को बिलासपुर आने का न्यौता दिया गया तो उन्होने चुटकी ली – “हाँ जरूर ऐतिहासिक स्वागत होगा…….। फिर मेरे वापस लौटने के बाद आपस में झगड़े की ख़बर आएगी……..”। शायद इस सवाल का जवाब सीएम भी तलाश रहे थे कि बिलासपुर दौरे के समय ही झगड़ा क्यूं होता है …… इतना ही नहीं बिलासपुर में रहते तक झगड़े का पता ही नहीं चल पाता और बिलासपुर से लौटते ही झगड़े की ख़बर सुर्ख़ियों के साथ मिलती है…..। हेडलाइन मैनेज़मेंट से ज़ुड़ा यह सवाल वाकई दिलचस्प है और इसका जवाब तलाश रहे दिग्गज़ नेता “झगरहा जिला” की पहचान बनाने वाले “फ़सादी लाल” की ज़ान – पहचान , नाम – पता ज़ानने में भी दिलचस्पी रख़ते होंगे । लेकिन यह पहचान कभी मिट सकेगी या वक़्त के साथ और पक्की होती जाएगी यह तो अभी कोई नहीं बता सकता……।

बिलासपुर के आसमान में हवाई ज़हाज़ उड़ाने दिल्ली में ऐसे लगे चौके – छक्के…..

हवाई सेवा शुरू करने की आस में सड़कों पर उतरे न्यायधानी के लोगों को एक  हफ्ते के दरमियान कट – टू – कट लगातार अच्छी खबरें मिली। पिछले हफ्ते चकरभाठा के बिलासा देवी हवाई अड्डे को 3 – सी लाइसेंस की मंजूरी मिली थी। इसके तुरंत बाद  दिल्ली से खबर आई कि बिलासपुर – भोपाल उड़ान के अलावा प्रयागराज और जबलपुर उड़ानों के लिए भी मंजूरी मिल गई है। यह मंजूरी सांसद अरुण साव की केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी के साथ हुई मुलाकात के बाद मिली। इस खबर के थोड़ी देर बाद ही यह खबर भी आ गई कि बिलासपुर से दिल्ली की उड़ान सेवा को उड्डयन मंत्री ने हरी झंडी दे दी है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से हुई मुलाकात के बाद केंद्रीय मंत्री ने इस पर सहमति दी। इस खबर के बाद बिलासपुर वासियों की वर्षों पुरानी आस पूरी होती नजर आई कि अब दिल्ली दूर नहीं……..। थोड़े – थोड़े से समय के अंतराल के भीतर मिली इन सुखद खबरों के बाद पूरा शहर मान रहा है कि हवाई सुविधा जन संघर्ष समिति के बैनर तले पिछले करीब ढाई सौ दिनों से अधिक समय से चल रहे धरना आंदोलन का ही असर है कि उनके नुमाइंदों  ने इस मांग को लेकर न सिर्फ दिलचस्पी दिखाई बल्कि अपनी पूरी ताकत भी लगाई। जिससे कुछ घंटों के भीतर नुमाइंदों के चौके… छक्के लगते रहे। लोगों ने फिर से याद कर लिया कि रेलवे जोन की मांग को लेकर लंबे समय तक चले जन आंदोलन के बाद किस तरह अटल बिहारी बाजपेई ने नेता प्रतिपक्ष रहते हुए दिल से मान लिया था कि बिलासपुर रेलवे ज़ोन उनक़ी अपनी मांग है। फिर प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने बिलासपुर रेलवे जोन  को न सिर्फ मंजूरी दी ,बल्कि खुद शिलान्यास करने भी आए। सूबे के मुखिया भूपेश बघेल ने भी कुछ इसी तर्ज पर बिलासपुर की हवाई सेवा को लेकर पहले कई चिट्ठियां केंद्र सरकार को लिखीं।  फिर केंद्रीय मंत्री से मिलकर पुरजोर तरीके से यह मामला रखा।उन्होने दलील रख़ी कि भोपाल-जबलपुर – प्रयागराज़ हवाई सेवा से बिलासपुर वालों  की ज़रूरत पूरी नहीं हो सकेगी । बिलासपुर के लोग महानगर से जोड़ने की माँग को लेकर अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। लिहाज़ा कम से कम बिलासपुर –दिल्ली के बीच हवाई सेवा शुरू की जानी चाहिए। केन्द्रीय मंत्री पर भूपेश बघेल की इस दलील का भी असर हुआ कि बिलासपुर में हाइकोर्ट सहित रेल्वे ज़ोन हेडक्वार्टर,एसईसीएल, सेन्ट्रल युनिवर्सिटी , एनटीपीसी, जैसे संस्थान भी हैं। तथ्यों और तर्कों के आधार पर भूपेश बघेल की ओर से ऱख़े गए बिलासपुर के पक्ष से केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी सहमति ज़ताई और  बिलासपुर -दिल्ली उड़ान को लेकर उनकी रज़ामंदी  मिल सकी। हालांकि हवाई सुविधा संघर्ष समिति ने उस दिन तक अपना धरना आँदोलन ज़ारी रखने का एलान किया है , जिस दिन दिल्ली से बिलासपुर के लिए हवाई ज़हाज़ उड़ान भरेगा । ताकि नेताओं की बातें सिर्फ बातों और कागजों तक ही महदूद न रह जाए। हवाई जहाज सही में आकाश पर उड़ता हुआ दिखाई भी देना चाहिए। अब इंतजार उस वक्त का है जब न्यायधानी की बरसों पुरानी हसरत पूरी हो सकेगी।

अमर अग्रवाल के मोर्चा संभालने का मतलब

पिछले 20 साल तक लगातार बिलासपुर के विधायक और 15 साल तक मंत्री रहे भाजपा नेता अमर अग्रवाल ने एक बार फिर पूरी सक्रियता के साथ राजनीति में मोर्चा संभाल लिया है। हाल के दिनों में उन्होंने शहर के सभी जोन संगठन इकाइयों की मीटिंग ली। किसानों के समर्थन में हुए आंदोलन में मुखरता के साथ नजर आए। साथ ही एक बयान जारी कर प्रदेश की सरकार और शहर के नेतृत्व को आड़े हाथों लिया है। उन्होंने खुलकर आरोप लगाया है कि पिछले 2 साल में अपराध का जमकर विकास हुआ है । अपराधियों और माफियाओं के हौसले बुलंद हुए हैं। हाल की कई अपराधिक घटनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने साफ तौर पर कहा कि कई मामलों में नुमाइंदे या तो शामिल हैं या मामले को दबाने की कोशिश कर रहे हैं। हमलावर मुद्रा में आकर प्रदेश की सरकार और शहर के नेतृत्व को घेरने के लिए  कही गई अमर अग्रवाल की इन बातों को लेकऱ सवाल जवाब हो सकते हैं। विपक्ष में रहकर सरकार और व्यवस्था को कोसते हुए व्यवस्था की खामियों को सामने लाना उनकी स्वाभाविक भूमिका हो सकती है । लेकिन पिछले कुछ समय से चल रहे घटनाक्रम को इस नजरिए से भी देखा जा रहा है कि पिछले चुनाव में मिली पराजय के बाद करीब साल भर का वक़्त समीक्षा में गुज़र गया । फ़िर कोरोना काल की वज़ह से गतिविधियां ठप्प रहीं। अमर अग्रवाल ने कोरोना काल की नरमी के बाद एक बार फिर मोर्चा संभाल लिया है। इस मामले में एक राजनीतिक समीक्षक की टिप्पणी भी गौर करने लायक है कि पिछले करीब दो दशक से बिलासपुर शहर में भाजपा की राजनीति अमर अग्रवाल के ही इर्द-गिर्द घूमती रही है।शहर में बीजेपी की सियासत का फ़्रेम ऐसा बन चुका है । जिसमें  अमर अग्रवाल की ही तस्वीर  सबसे फिट बैठती है।हालांकि लंबे समय तक सत्ता में रहने के बाद अब विपक्ष की राज़नीति में अपनी टीम को कामयाबी के मुक़ाम तक पहुंचाना उनके लिए भी किसी चुनौती से कम नहीं है। ऐसे में उनकी सक्रियता और रणनीति से आने वाले दिनों में शहर की राजनीति में भी असर दिखाई दे तो हैरत की बात नहीं होगी।।

बंद होंठ से क्या कह गए बाबा…….?

प्रदेश सरकार के कद्दावर मंत्री टी एस सिंह देव का बिलासपुर दौरा भी सुर्खियों में रहा। पत्रकारों से बातचीत के दौरान जब उनसे पूछा गया कि पूर्व मंत्री  – भाजपा नेता अमर अग्रवाल ने इस्तीफा मांगा है। इस सवाल पर टीएस बाबा ने तंज़ कसा कि अमर अग्रवाल को मेरे इस्तीफे के ऐलान की बात तो याद है। यदि वह कोयला , एपीजीएसटी सहित अपने शासन काल के दूसरे मामलों को याद कर लेते तो अच्छा लगता। वैसे टी एस सिंह देव के दौरे के समय ढाई – ढाई साल के मुख्यमंत्री के सवाल पर भी लोगों की दिलचस्पी अधिक होती है। पिछली बार बिलासपुर में ही यह सवाल उठा था और इसकी धमक कई दिनों तक सूबे की सियासत में गूंजती रही थी। इस बार भी यह सवाल उठा तो अपने चिर परिचित मुस्कान के साथ टीएस बाबा ने सवाल को टालते हुए सिर्फ इतना कहा कि – पिछले बयान के बाद अब होंठ सी लिए हैं ……यहां से चैप्टर क्लोज हो चुका है । अब यह मामला दिल्ली का है। टीएस बाबा अपने महकमे और सियासत में संजीदगी के साथ अपनी बात रखने के लिए जाने जाते हैं। पिछली बार उन्होंने इस सवाल पर काफी कुछ खुलकर बात रखी थी ।  लेकिन इस बार बंद होंठ से इशारों में भी कुछ – कुछ बोल गए हैं। मामले को दिल्ली का बताकर आने वाले वक़्त की ओर इशारा कर दिया है। और सवाल के ज़वाब में यह सवाल भी छोड़ गए हैं कि क्या आने वाले वक़्त में दिल्ली को कोई फ़ैसला करना है………?

मरवाही चुनाव ज़िताने वाली टीम को असम की कमान

छत्तीसगढ़ से बहुत दूर बसे पूर्वोत्तर के सूबे असम में चुनाव होने वाले हैं। वहां बूथ मैनेज़मेंट के लिए छत्तीसगढ़ से एक दर्ज़न कांग्रेस नेताओँ की टीम भेज़ी गई है। इस टीम में प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष अटल श्रीवास्तव भी शामिल हैं। उनके समर्थक अब तक अटल श्रीवास्तव को निगम / मंडल में कोई ज़गह मिलने का इंतज़ार करते रहे हैं। लेकिन फ़िलहाल संगठन में उनका कद बढ़ता हुआ देख़ रहे हैं। वैसे असम भेज़ी गई टीम के करीब सभी लोग सीएम भूपेश बघेल के भरोसेमंद माने जाते हैं। जिन्हे सीएम ने कुछ महीने पहले मरवाही विधानसभा उपचुनाव में लगाया था और चुनौतीपूर्ण मुक़ाबले में ज़ीत भी हासिल की थी ।इस टीम में सीएम के सलाहकार विनोद वर्मा व राजेश तिवारी, शैलेश नितिन त्रिवेदी भी शामिल हैं।  माना ज़ा रहा है कि मरवाही की तर्ज पर असम में बूथ मैनेज़मेंट की गरज़ से इस टीम को यह ज़िम्मेदारी सौंपी गई है। जहां पहले बूथ और सेक्टर लेबल के कार्यकर्ताओँ को ट्रेनिंग दी गई । और फ़िर चुनाव के आख़िर तक ट्रेनिंग के मुताबिक पूरे सिस्टम को लागू करने के लिए मैनेज़मेंट में अटल श्रीवास्तव ने अहम् भूमिका निभाई थी ।इस लिहाज़ से  पूरी टीम के लिए यह चुनौती भरा काम भी है। ख़ासकर ऐसे मौक़े पर जब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को एआईसीसी ने असम का ऑब्जर्वर बनाया है। साथ ही छत्तीसगढ़ के ही विधायक विकास उपाध्याय को एआईसीसी का सेक्रेटरी बनाकर असम का प्रभारी बनाया गया है। यानी कांग्रेस ने इस बार असम चुनाव के लिए छत्तीसगढ़ के कांग्रेसियों पर ही पूरा भरोसा ज़ताया है।

सीपत के विस्थापितों के घर क्यूं है , अँधेरा.. …?

न्यायधानी से लगे सीपत इलाके में एनटीपीसी का बड़ा बिजली घर चालू होने के बाद हालात बहुत कुछ बदले हैं। बिज़ली घर के आसपास इलाके में काफी बदलाव नजर आता है। लेकिन पिछले कई बरसों में विस्थापितों की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया है। इस बिजलीघर के लिए  अपनी जमीन देने वाले विस्थापित भूमिहीन हो गए हैं और जिस जमीन के सहारे उनकी जिंदगी बसर होती थी , वह उनके हाथ से छिन गई है। उन्हें मुआवजे के साथ नौकरी का भी भरोसा दिया गया था। लेकिन अब तक सामने आ रहे आँकड़ों पर भरोसा किया ज़ाए तो करीब आधे लोगों को अब तक नौकरी नहीं मिल पाई है। पहले नौकरी की मांग को लेकर आंदोलन भी होते रहे । सड़क से लेकर जिला प्रशासन के टेबल तक बातचीत भी होती रही। आश्वासन- भरोसा भी मिलता रहा। भरोसा टूटता भी रहा। लेकिन अब लड़ते-लड़ते भूस्थापित थक से गए हैं और अब लड़ाई की ताकत जुटाना भी कठिन होता जा रहा है। ऐसे में उनकी अगुवाई करने वाला भी कोई नजर नहीं आता। जिससे वे हताश निराश भी हैं और एनटीपीसी  मैनेजमेंट के साथ ही सरकार – प्रशासन में बैठे लोगों पर से उनक़ा भरोसा भी टूटता जा रहा है । टनों की तीदीत में  कोयला जलाकर उसकी गर्मी के सहारे पैदा की जा रही सीपत की बिजली से पता नहीं कितनी दूर दूर तक के इलाके रोशन हो रहे हैं  । लेकिन इस बिज़ली घर के लिए अपनी जमीन देने वाले लोगों के घर में अभी अंधेरा पसरा हुआ है। क्या कोई उधर भी देखेगा और कोई रोशनी उधर भी आएगी……… ? शायद आने वाला वक्त ही इस सवाल का कोई ज़वाब़ दे सके ।

क्या अब पूरी होगी शिक्षा कर्मियों की आस ….. ?

बरसों से अपनी समस्याओं के लिए जूझ रहे शिक्षाकर्मियों की समस्याओं के निराकरण के लिए पंचायत विभाग की ओर से समिति गठित किए जाने की खबर भी चर्चा में है। पंचायत विभाग की इस कमेटी में पंचायत और शिक्षा  दोनों ही विभाग के अधिकारी शामिल किए गए हैं ।  जिसके जरिए शिक्षाकर्मियों के एरियर्स, पुनरीक्षित वेतनमान सहित दूसरी समस्याओं का निराकरण किया जा सकेगा । यह कमेटी शिक्षाकर्मियों के पुनरीक्षित वेतनमान निर्धारण के बाद एरियर्स भुगतान ,अनुकंपा नियुक्ति, स्कूल शिक्षा में संविलियन, हाई कोर्ट में याचिका मामला और अंशदाई पेंशन जैसे मामलों की समीक्षा करेगी। वर्षों से निराकरण की आस लगाए शिक्षाकर्मी इस कमेटी के जरिए राहत की उम्मीद कर रहे हैं। बस इतना जरूरी है कि यह कमेटी  पहले की कमेटियों की तरह सिर्फ कमेटी बनकर  ही न रह जाए  । बल्कि इसके जरिए सही में समस्याओं का निराकरण हो सके।

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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