समाचार डेस्ट—- वालीवुड के दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार का मुंबई स्थित हिंदुजा अस्पताल में निधन हो गया है। दिलीप कुमार 98 साल के थे। पिछले कई दिनों से बीमार भी थे। इलाज के लिए उन्हें कई बार अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। दिलीप कुमार का सांताक्रूज़ मुंबई स्थित जुहू क़ब्रिस्तान में शाम 5 बजे शव को दफ़नाया जाएगा।.
युसूफ़ ख़ान से दिलीप कुमार बनने की कहानी
दिलीप कुमार के पिता मुंबई में फलों के बड़े कारोबारी थे। शुरुआती दिनों से ही दिलीप कुमार को अपने पारिवारिक कारोबार में शामिल होना पड़ा। तब दिलीप कुमार कारोबारी मोहम्मद सरवर ख़ान के बेटे यूसुफ़ सरवर ख़ान हुआ करते थे। एक दिन किसी बात पर पिता से कहा सुनी होने के बाद दिलीप कुमार पुणे चले गए। अंग्रेजी जानने के चलते उन्हें पुणे के ब्रिटिश आर्मी के कैंटीन में असिस्टेंट की नौकरी मिल गई। .
देविका रानी से मुलाकात
तात्कालीन समय बॉम्बे टॉकीज़ की पहचान कामयाब फ़िल्म प्रॉडक्शन हाउस के रूप में थी। मालकिन देविका रानी फ़िल्म स्टार होने के साथ साथ अत्याधुनिक और दूरदर्शी महिला भी थीं। डॉक्टर मसानी ने दिलीप कुमार का परिचय देविका रानी से कराया।
इस दौरान देविका रानी दिलीप कुमार की उर्दू से प्रभावित हुई। इस दौरान दिलीप कुमार ने अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमिक के बारे में बताया। इस दौरान देविका रानी ने 1250 रुपये मासिक की नौकरी ऑफ़र कर दी। डॉक्टरी मसानी ने दिलीप कुमार को स्वीकार करने को कहा। दिलीप कुमार ने देविका रानी को ऑफ़र के लिए धन्यवाद दिया। साथ ही फिल्मी दुनिया का अनुभव नहीं होने की भी जानकारी दी। लेकिन देविका रानी ने विश्वास जताया।
साल 1950 में आई ‘बाबुल’ में दिलीप कुमार ने पोस्ट मास्टर का रोल निभाया था। बॉम्बे टॉकीज़ में शशिधर मुखर्जी और अशोक कुमार के अलावा दूसरे नामचीन लोगों के अभिनय की बारीकियां सीखने लगे। उन्हें प्रतिदिन दस बजे सुबह से छह बजे तक स्टुडियो में होना होता था। एक दिन देविका रानी ने उन्हें अपने केबिन में बुलाया। साल 1951 में आई ‘दीदार’ में अशोक कुमार के साथ दिलीप कुमार ने अभिनय किया। फिल्म में उन्होंने नेत्रहीन व्यक्ति का किरदार निभाया।
दिलीप कुमार नाम का प्रस्ताव
युसुफ के नापसंद के बाद भी देविका रानी ने स्क्रीन नाम दिलीप कुमार नाम दिया। दीदार में दिलीप कुमार के किरदार ने उन्हें ट्रैजेडी किंग के रूप में स्थापित कर दिया। दिलीप कुमार से पहले देविका रानी अपने पति हिमांशु राय के साथ मिलकर कुमुदलाल गांगुली को 1936 में ‘अछूत कन्या’ फ़िल्म से अशोक कुमार के तौर पर स्थापित कर दिया था।
ज्वार भाटा से आगाज