बिलासपुर–राजस्थान सरकार की तरफ से कोयला संकट बताकर परसा कोल ब्लाक की जबरन स्वीकृति को लेकर राज्य सरकार पर दवाब बनाने के खिलाफ हसदेव अरण्य के आदिवासियों ने धरना प्रदर्शन किया है। इस दौरान आदिवासी समाज ने जमकर नारेबाजी की। साथ ही आदिवासी हित के खिलाफ उठाए जाने वाले किसी भी कदम का पुरजोर तरीके से विरोध करने का एलान भी किया।
जानकारी देते चलें कि पिछले कुछ दिनों से राजस्थान के मुख्यमत्री अशोक गहलोत पत्रों के माध्यम से राजस्थान में कोयला संकट का हवाला देकर हसदेव अरण्य क्षेत्र में परसा कोयला ब्लाक की वन स्वीकृति देने छत्तीसगढ़ सरकार पर दवाब बना रहे हैं। राजस्थान मुख्यमंत्री के लगातार दबाव बनाए जाने के खिलाफ हसदेव अरण्य क्षेत्र के ग्राम फतेहपुर हरिहरपुर और साल्ही के आदिवासियों ने विरोध किया। गहलोत सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए अडानी कंपनी वापिस जाओ की आवाज को बुलंद किया।
फतेहपुर ग्राम के युवा मुनेश्वर पोर्ते ने बताया कि हम 300 किलोमीटर पैदल चलकर रायपुर गए । मुख्यमत्री को बताया गया कि हमारे गाँव में फर्जी ग्रामसभा के साथ फर्जी प्रस्ताव तैयार किया गया। जिसके आधार पर राजस्थान सरकार ने वन स्वीकृति हासिल किया है। मामले में मुख्यमंत्री ने जाँच का आश्वासन दिया था। लेकिन अभी तक कोई जाँच नही हुई है। मुनेश्वर पोर्ते के अनुसार हम पिछले दशक से अपने संविधानिक अधिकारों को बचाने और हसदेव अरण्य के जंगल जमीन के विनाश के खिलाफ आन्दोलनरत हैं। बावजूद इसके हमें जबरन उजाड़ने की कोशिश हो रही है।
ग्राम साल्ही के आनंद राम खुसरो ने कहा कि यदि सरकारें यदि हमसे जबरन जमीन जंगल छीनने की कोशिश करेंगी तो में अपने महिला बच्चो के साथ जेल जाने तैयार है। लेकिन अपने गाँव में अडानी कम्पनी को घुसने नही देंगे । उन्होंने कहा कि यह जंगल जमीन हमारी है। यहां हमारे देवी देवता बसते है। , हमारे पुरखों की मेहनत से बसाए गाँव हम कैसे उजड़ने देंगे?
ग्रामीणों ने कहा कि राजस्थान सरकार को 10 मिलियन टन कोयला प्रतिवर्ष निकालने की अनुमति के साथ परसा ईस्ट केते बासेन कोयला खदान आवंटित हुई थी। वर्ष 2018 में इसकी क्षमता 15 मिलियन टन हो गई है। अभी कम्पनी ने इसे 21 मिलियन टन बढाने पर्यावरण मंत्रालय में आवेदन लगाया है । बावजूद इसके राजस्थान सरकार फिर नई कोयला खदाने क्यों खोलना चाहता है ? राजस्थान चाहे तो सस्ते दर पर कोल इण्डिया से कोयला खरीद सकता हैं। क्योंकि अडानी कम्पनी से तो महंगे दर पर कोयला खरीद रहा है। दरअसल हसदेव से ही कोयला इसलिए निकालना है क्योंकि इसके खनन का अनुबंध अडानी समूह के पास है । अडानी कम्पनी को हजारों करोड़ का अनुचित मुनाफा पहुचाया जा रहा है।
बताते चलें कि परसा कोल ब्लाक की जमीन अधिग्रहण कोल बेयरिंग एक्ट 1957 से हो रहा हैं। वह भी बिना ग्रामसभा सहमती लिए। जबकि यह क्षेत्र संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल है। प्रस्तावित खनन क्षेत्र की सीमा में 841 हेक्टेयर वन भूमि के व्यपवर्तन की स्वीकृति भी केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु मंत्रालय ने 21 अक्टूबर को जारी किया था। जबकि प्रभावित गाँव की ग्रामसभाओ ने खनन का सतत विरोध किया है ।
300 किलोमीटर की पदयात्रा करके रायपुर पहुचे हसदेव अरण्य के आदिवासियों ने खनन कम्पनी ने फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव बनाकर वन स्वीकृति हासिल करने की शिकायत राज्यपाल और मुख्यमंत्री से किया था। आदिवासियों के निवेदन पर राज्यपाल ने मुख्यसचिव को पत्र लिखकर समस्त कार्य रोकने और ग्रामसभा प्रस्ताव की जाँच के आदेश दिए हैं।
प्रस्तावित परसा कोयला खनन परियोजना मध्य भारत के सबसे समृद्ध वन क्षेत्र हसदेव अरण्य में स्थित है। सम्पूर्ण वन क्षेत्र को ही वर्ष 2010 में केन्द्रीय वन पर्यावरण, एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने खनन के लिे नो गो घोषित किया है। नो गो घोषित होने का अर्थ यही था कि यह एक समृद्ध वन क्षेत्र है। जैव विविधता से परिपूर्ण, वन्य प्राणियों का रहवास, हसदेव नदी का जलागम के अलावा पर्यावरण रूप से बहुत ही संवेदनशील भी है।
पिछले दिनों ही हसदेव अरण्य वन क्षेत्र की जैव विविधता अध्ययन में भारतीत वन्य जीव संस्थान ने कहा है कि हसदेव अरण्य समृद्ध वन क्षेत्र है। हाथी सहित महत्वपूर्ण वन्य पप्राणियों का रहवास है । यदि यहाँ खनन हुआ तो प्रदेश में मानव हाथी द्वन्द का संकट बहुत विकराल हो जाेगा।