जाति प्रमाण पत्र मामलाःखाद्य अधिकारी को राहत …हाईकोर्ट ने नोटिस भेज…शासन को किया तलब

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर–फूड ऑफिसर के जाति प्रमाण पत्र को खारिज किए जाने पर हाईकोर्ट ने अंतरिम राहत देते हुए आदेश पर रोक लगा दिया है। मामले में अगली सुनवाई तक याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई आदेश जारी नहीं करने का निर्देश कोर्ट ने दिया है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया गया है। उच्चस्तरीय छानबीन समिति के निर्णय पर याचिकाकर्ता पवित्रा अहिरवार ने अधिवक्ता मतीन सिद्दिकी और अनादि शर्मा के जरिए हाईकोर्ट बिलासपुर में याचिका दायर किया था।
 
          अधिवक्ता मतीन सिद्धिकी और अनादि शर्मा से मिला जानकारी के अनुसार पवित्रा अहिरवार की रायपुर जिले में खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग में वर्ष 2007 में अनुसूचित जाति के आरक्षित संवर्ग में फूड इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्ति हुई थी। 2012 में फूड इंस्पेक्टर को उच्चस्तरीय प्रमाणीकरण छानबीन समिति में जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं करने के कारण खाद्य विभाग के आयुक्त ने एक नोटिस जारी किया। नोटिस में सत्यापित जाति प्रमाण पत्र के अभाव में सेवा समाप्त करने की चेतावनी दी गयी थी। नोटिस मिलन के बाद फूड इंस्पेक्टर ने हाईकोर्ट में अधिवक्ता के माध्यम से याचिका दायर किया।
 
               कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश जारी करने पर रोक लगा दिया था। साथ ही उच्च स्तरीय छानबीन समिति को कार्रवाई जारी करने पर किसी प्रकार की रोक से इंकार किया था। कोर्ट के आदेश पर समिति ने जांच के दौरान पाया कि याचिकाकर्ता पवित्रा अहिरवार के पिता और पूर्वज की मूल जाति अहिरवार है। पूर्वजों के उत्तर प्रदेश राज्य होने के आधार पर छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति सूची में पात्रता नहीं बताकर  प्रमाणपत्र रद्द करने दुबारा नोटिस जारी किया गया।
 
                 लंबित जांच प्रक्रिया और पुन: नोटिस मिलने के बाद दोबारा पवित्रा अहिरवार ने अधिवक्ता मतीन सिद्दिकी और अनादि शर्मा के जरिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। सुनवाई जस्टिस राजेंद्र सिंह सांमत के कोर्ट में हुई। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता के पिता राजबहादुर तत्कालीन एमपी राज्य के छत्तीसगढ़ भौगौलिक सीमा के अन्दर सेवा में प्रारंभिक नियुक्ति वर्ष 1981 में हुई थी। इसके बाद उनका परिवार और वंशज वर्तमान में छत्तीसगढञ में निवास कर रहे हैं।  उच्चस्तरीय छानबीन समिति ने मामले को निराकृत करने की बजाय केवल 1950 के पूर्व के दस्तावेजी अभिलेख नहीं होने को आधार मानकर मामले को लंबित रखा।
 
            दोनों अधिवक्ताओं ने कोर्ट को  बताया कि छत्तीसगढ़ शासन के वर्ष 2007 के परिपत्र अनुसार राज्य गठन के बाद अविभाजीत मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़  में ऐसे अधिकारी-कर्मचारी आबंटित हुए हैं, जिनका संबंध छत्तीसगढ़ नहीं रहा है। इसलिए उनके पति, पत्नी और संतान को छत्तीसगढ़ के स्थानीय निवासी की परिभाषा में शामिल करने का प्रावधान है।
 
               अधिवक्ता ने कोर्ट में पूर्व में भी ऐसे मामले में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का भी उदाहरण पेश किया। बताया कि छत्तीसगढ़ सामाजिक प्रास्थिति 2013 वाले कानून के प्रावधान के तहत उच्चस्तरीय छानबीन समिति से जांच कार्रवाई के पहले जिला स्तरीय जाति छानबीन समिति के प्रतिवेदन पर संज्ञान लेने की बात कही। जिस पर कोर्ट ने याचिका पर अंतरिम राहत देते हुए आगामी सुनवाई तिथि तक कोई भी प्रतिकूल आदेश याचिकाकर्ता के खिलाफ जारी नहीं करते हुए  राज्य शासन को नोटिस जारी कर जवाब प्रस्तुत करने को कहा है।
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