किसान बिल पर नंद कश्यप ने कहा – किसानों की सही में चिंता है तो समर्थन मूल्य की गारंटी क्यों नहीं देती मोदी सरकार

Chief Editor
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बिलासपुर । मार्क्सवादी नेता और किसानों के हित चिंतक नंद कश्यप का कहना है कि केंद्र सरकार की ओर से लाए गए कृषि बिल को देश का किसान स्वीकार नहीं करेगा  । प्रतिक्रिया भयावह होगी ।  चिंता की बात यह है कि मौजूदा सरकार आंख मूंद कर अपना काम कर रही है । लोग क्या सोच रहे हैं इस पर जरा भी विचार नहीं किया जा रहा है । लेकिन सरकार को चाहिए कि वह यह बिल वापस ले । इसमें ही किसानों का हित है ।

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एक बातचीत के दौरान नंद कश्यप ने कहा कि भारत में खेती आज भी फायदे का धंधा नहीं है । यह जरूर है कि किसान किसी तरह अपना पेट भर लेता है । लेकिन इससे बहुत कुछ नहीं हो सकता यह हालत तब है ,जब किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य का कवच मिला हुआ है । न्यूनतम समर्थन मूल्य के तहत़  खरीदी को लेकर कुछ कानून बनाए गए थे । जिससे किसानों को यह गारंटी थी  कि उनका उनकी उपज समर्थन मूल्य पर खरीदी जाएगी । कारपोरेट फार्मिंग को लेकर पहले प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में प्रयोग हो चुके हैं । तब पंजाब- हरियाणा में आलू चिप्स- टमाटर को लेकर करार हुआ था । किसानों ने बाजार मूल्य से 10% के हिसाब से करार किया था और उपज़  उपलब्ध कराया।  लेकिन आखिर हालत यह हुई कि किसानों को अपने उत्पाद सड़क पर जाम करना पड़ा और आखिर फैक्ट्री भी पंजाब ,हरियाणा से उठकर कर्नाटक चली गई  ।

नंद कश्यप कहगते हैं कि कांटेक्ट फॉर्मिंग का यह अनुभव अच्छा नहीं रहा । अब यह कहा जा रहा है कि नए कृषि बिल के आने के बाद राष्ट्रीय -अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसानों को बाजार मिलेगा । किसानों के पास इस तरह का बाजार तो पहले भी था  । लेकिन प्रश्न यह है कि क्या छत्तीसगढ़ का किसान अपना अनाज कर्नाटक बेचने जाएगा ।  सरकार यदि वास्तविक में किसानों का हित चाहती है तो वह इस बिल में यह क्यों नहीं जोड़ देती की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही खरीदारी होगी । इस सरकार ने पहला कदम यह उठाया था कि प्रति एकड़ 10 क्विंटल धान की खरीदारी करने की सीमा बांध दी थी । किसी तरह छत्तीसगढ़ सरकार ने उसे 16 क्विंटल किया । केंद्र सरकार अभी 10 क्विंटल के दायरे में ही मानती है । ऐसी स्थिति फिर आएगी इस बिल के जरिए केंद्र सरकार ने कारपोरेट रिटेल चेन को सहूलियत देने का काम किया है और इसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था को खत्म करने की तैयारी नजर आ रही है ।

 यह पूछे जाने पर कि सरकार में बैठे लोग दावा कर रहे हैं कि इससे बिचौलिया नहीं रहेगा ।  नंद कश्यप ने कहा कि अब तक की व्यवस्था में सिर्फ मंडी ही एक बिचौलिया है । मंडी की समितियां हैं । जिसका कामकाज इस तरह होता है कि मंडियां किसानों के हित में भी काम करती हैं  । बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में भी मंडियों का जाल बिछाने और 20000 नई मंडियां बनाने का दावा किया था । मंडिया तो एक भी बनी अब और उस पर संकट खड़ा हो गया है । उन्होंने कहा कि इस बिल को को किसान स्वीकार नहीं करेंगे।  इसकी प्रतिक्रिया होगी चिंताजनक स्थिति है कि चाहे मनमोहन सिंह की सरकार हो या और भी कोई सरकार रही हो, इस तरह का शुद्ध वर्ग विभाजन कभी नहीं हुआ ।  यह सरकार आंख मूंदकर काम करती है । पहले मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान भी अगर किसी बात को लेकर विरोध होता था ,तो सरकार बात करती थी  । आज तो सिर्फ चार लाइन का ट्वीट करके कोई भी निर्णय थोप दिया जाता है । उन्होंने कहा कि लगता है इस बिल को प्रधानमंत्री और कृषि मंत्री ने भी नहीं पढ़ा है । इस ड्राफ्ट की भाषा कारपोरेट की भाषा है । इसमें भारतीय राजनीति और भारतीय लोकतंत्र की भाषा नजर नहीं आती है । इसका विरोध हो रहा है और सरकार को इस पर विचार करना चाहिए ।

कोरोना संक्रमण  और लॉकडाउन की स्थिति की चर्चा करते हुए नंद कश्यप ने कहा कि कुछ दिनों के लॉक डाउन से बहुत कुछ उम्मीद नहीं किया जा सकता । यह तो लगता है कि राज्य सरकार के खिलाफ संयुक्त संविदा नियुक्ति जैसे मामलों को लेकर जो विरोध के स्वर उठ रहे थे उसे दबाने के लिए लॉकडाउन लागू कर दिया गया है ।  सरकार में बैठे लोगों को सोचना चाहिए कि कोरोना की चेन ( श्रृंखला ) को किस तरह तोड़ा जा सकता है । इसके लिए एक सार्थक सुझाव पेश करते हुए नंद कश्यप कहते हैं कि बेरोजगार नौजवानों की टीम को वॉलिंटियर की तरह उपयोग किया जाना चाहिए और ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे लोगों को जरूरी सामान घर पर ही बैठे मिले । घर पर ही उचित मूल्य पर जरूरी सामान मिलेगा तो लोग सड़कों पर नहीं आएंगे और एक दूसरे से दूरी बनने के कारण से कोरोना संक्रमण को रोका ज़ा सकता है।  इससे लोगों को भी सहूलियत मिलेगी । कोरोना की श्रृंखला तोड़ी जा सकेगी और बेरोजगारों को काम भी मिल सकेगा । ऐसे सकारात्मक उपायों पर सरकार को विचार करना चाहिए।।

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