(गिरिजेय़ ) “घोषणा भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की…. या लोकसभा 2024 के उम्मीदवारों की….?” यह पोस्ट पत्रकार मित्र उचित शर्मा ने सोशल मीडिया पर शेयर की है। जिसे सामने रखकर हाल ही में ज़ारी भाजपा पदाधिकारियों की लिस्ट को देखें तो इसके पीछे की सियासत को समझने में आसानी हो सकती है। इस लिस्ट में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह दोबारा शामिल किए गए हैं। उनके साथ ही राज्यसभा सांसद सरोज पाण्डेय और पूर्व मंत्री लता उसेंडी को भी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है। बीजेपी में हुई इस नियुक्ति को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। लेकिन बीजेपी की सियासत का मिज़ाज समझने वाले तमाम लोग इस नतीजे पर पहुंच रहे हैं कि भाजपा ने एक बार फिर बदलाव की ओर इशारा किया है। और छत्तीसगढ़ में इस साल होने वाले विधानसभा के चुनाव के पहले एक तरह से साफ कर दिया है कि सूब़े की सियासत में अब तक छाए रहे चेहरे अब दिल्ली कूच कर सकते हैं। छत्तीसगढ़ की सियासी फ़िजां में यह सवाल भी तैर रहा है कि कहीं इन नेताओं को छत्तीसगढ़ की सियासत से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए तो यह ओहदा नहीं दिया गया है… ?
2023 विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी का कार्ड..
पार्टी का एक तबका मान रहा है कि विधानसभा चुनाव के पहले बीजेपी ने यह कार्ड खेला है। वैसे राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद पर लता उसेंडी कि नामजदगी को आदिवासी इलाकों में महिला नेतृत्व को सामने लाकर एक संदेश देने की कोशिश मानी जा सकती है। सरोज पांडे भी संगठन में कई पदों पर रहकर अपनी हिस्सेदारी निभाती रही है। इस तरह छत्तीसगढ़ की दो नेत्रियों को पूर्व सीएम के बराबर की जगह मिल गई है। लेकिन डॉ रमन सिंह को दूसरी बार यह पद मिलने के बाद बीजेपी का एक तबका यह मानकर चल रहा है कि डॉ रमन सिंह को एक बार फिर अहमियत दी गई है। इसे एक तरह से पर्दे के पीछे से उन्हें छत्तीसगढ़ विधानसभा के चुनाव में पार्टी के चेहरे के बतौर पेश करने की कवायद भी मानी जा रही है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि छत्तीसगढ़ भाजपा में फिलहाल ऐसा चेहरा नजर नहीं आ रहा है जो बीजेपी में “चांउर वाले बाबा” को रिप्लेस कर सके।
बदलाव के लिए छत्तीसगढ़ में पहले भी हुए हैं प्रयोग
लेकिन इस नियुक्ति को विधानसभा 2023 की बजाय लोकसभा 2024 की तैयारी के नजरिए से देख रहे लोगों की दलील भी गौरतलब़ मानी जा सकती है। जो यह मानकर चल रहे हैं कि भाजपा ने बदलाव का संदेश देने के लिए पहले भी छत्तीसगढ़ में कई प्रयोग किए हैं। छत्तीसगढ़ में भी 2019 के पिछले चुनाव में उस समय के सभी सांसदों की टिकट एक सिरे से काट दी गई थी। जिसमें तब के केंद्रीय मंत्री आदिवासी नेता विष्णु देव साय ( रायगढ़ ) और डॉ रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह (राजनांदगांव) शामिल थे। जब छत्तीसगढ़ की 11 में से 9 सीटों पर बीजेपी को जीत हासिल हुई तो यह संदेश साफ था कि बीजेपी की ओर से आज़माया गया नुस्खा कामयाब रहा है। ऐसी सूरत में यदि राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में शामिल किए गए छत्तीसगढ़ के तीनों चेहरे आने वाले लोकसभा चुनाव के उम्मीदवार के रूप में देखे जा रहे हैं तो हैरत की बात नहीं होनी चाहिए। ऐसे में डॉ रमन सिंह राजनांदगांव, सरोज पांडे दुर्ग और लता उसेंडी बस्तर से लोकसभा चुनाव के उम्मीदवार बनाए जा सकते हैं। डॉ रमन सिंह पहले भी राजनांदगांव सीट से नुमाइंदगी करते हुए केंद्र सरकार में मंत्री पद की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं।
15 साल सरकार चलाकर 15 सीटों पर क्यों सिमट गई थी बीजेपी ?
जहां तक विधानसभा चुनाव 2023 के दौरान चेहरे के रूप में पेश किए जाने का सवाल है- बीजेपी ने चुनाव से करीब साल भर पहले ही इसका एहसास करा दिया था, जब बिलासपुर के सांसद अरुण साव छत्तीसगढ़ प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बनाकर भेजे गए। उन्हें विष्णु देव साय की जगह यह जिम्मेदारी सौंपी गई । इसी तरह धरमलाल कौशिक की जगह नारायण चंदेल नेता प्रतिपक्ष बनाए गए। बीजेपी ने प्रदेश प्रभारी भी बदले और जो लगातार प्रदेश का दौरा कर अपने तरीके से चुनावी तैयारी में जुटे हुए हैं ।इस तरह के बदलाव के ज़रिए बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने एक साथ कई संदेश देने की कोशिश की थी। इस बदलाव के बाद यह बात भी खुलकर सामने आई थी कि बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने यह सवाल लगातार खटकता रहा है कि छत्तीसगढ़ में लगातार 15 साल तक सरकार चलाने के बाद बीजेपी 2018 के चुनाव में महज 15 सीटों पर क्यों सिमट गई ? इसके साथ ही 15 साल तक पार्टी में छाए रहे 15 चेहरों की छवि को लेकर भी पार्टी में मंथन चलता रहा है। जिन्हें बदलकर नए चेहरे सामने लाए गए और उसमें भी जातीय / क्षेत्रीय संतुलन पर खास तौर से गौर किया गया।
बदलाव के नुस्खे में बेहतर विकल्प कौन…?
बदलाव के इस नुस्खे में अरुण साव एक बेहतर विकल्प के रूप में उभरकर सामने आए । बीजेपी के नए प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव की पहचान बीजेपी के सॉफ्ट / सोम्य में चेहरे के रूप में रही है। वे लंबे समय तक अधिवक्ता के रूप में काम करते रहे। जनसंघ के जमाने से सक्रिय रहे साव परिवार से आने वाले अरुण साव बीजेपी के उस स्कूल से तराशकर निकले हैं,जहां से देश के कई दिग्गज़ तैयार किए गए हैं। उन्होने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में काम करते हुए अपनी एक अलग पहचान बनाई थी । फिर वे भारतीय जनता युवा मोर्चा में भी लंबे समय तक सक्रिय रहे। 2019 के पिछले लोकसभा चुनाव में बिलासपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाए जाने के बाद उन्होंने जीत हासिल की। मौलिक सोच के साथ सार्वजनिक मंचों पर खास अंदाज में अपनी बात रखने वाले अरुण साव ने पार्टी नेतृत्व के सामने भी एक अलग पहचान बनाई है। इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि लोकसभा में रेलवे की अनुदान मांगों की चर्चा के दौरान उन्हें पार्टी की ओर से बोलने का मौका दिया गया। इसके साथ ही दूसरे मौकों पर भी उन्होंने सदन में अपनी विशिष्ट शैली की छाप छोड़ी।
जब अरुण साव को साथ लेकर हेलीकॉप्टर से उतरे अमित शाह…
जातीय समीकरण के लिहाज से अरुण साव – साहू समाज से आते हैं। छत्तीसगढ़ की सियासत में इस समाज की अपनी एक अलग भूमिका है। इस समाज ने छत्तीसगढ़ की राजनीति को कई बड़े नेता दिए हैं। क्षेत्रीय संतुलन के नज़रिए से अरुण साव का नाता उत्तर छत्तीसगढ़ / बिलासपुर इलाके से है। समय-समय पर यह बात भी सामने आती है कि सत्ता के मामले में अब तक उत्तर छत्तीसगढ़ को बड़ी जिम्मेदारी नहीं मिली है। ऐसे में अगर इस इलाके से अरुण साव जैसे किसी नेता को मौका मिलता है तो चुनाव के लिहाज से यह चेहरा अधिक असरदार हो सकता है। हालांकि बीजेपी की ओर से अब तक आधिकारिक तौर पर यह बात कही जाती रही है की इस बार के विधानसभा चुनाव में पार्टी मुख्यमंत्री के रूप में कोई चेहरा पेश नहीं करेगी। लेकिन प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के साथ ही बीजेपी में जिस तरह अरुण साव को अहमियत दी जा रही है उसके मायने भी समझे जा सकते हैं।पार्टी कार्यक्रमों में उन्हे अहमियत दिए जाने के लिए पहले दिशानिर्देश भी जारी किए गए हैं। इधर जब से छत्तीसगढ़ की चुनावी तैयारी में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की सक्रियता बढ़ी है और वे पिछले महीनों में प्रदेश के दौरे पर आए हैं। इस दौरान भी अरुण साव को खास अहमियत दी गई है। एक कार्यक्रम में तो अमित शाह के साथ अरुण साव भी हेलीकॉप्टर से उतरते नज़र आए। इसके अलावा बंद कमरे में होने वाली पार्टी की बैठकों में भी अमित शाह हर बार अरुण साव को अहमियत देते रहे हैं।
किस चेहरे पर भरोसा करेगा किसान…?
ज़ाहिर सी बात है कि छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाक़ों में असर को देखते हुए बीजेपी भी ओबीसी की पॉलिटिक्स पर ज़ोर दे रही है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मुक़ाबले बीजेपी को ओबीसी चेहरे की तलाश पहले से ही रही है। यही वज़ह है कि जब प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अरुण साव और नेता प्रतिपक्ष के रूप में नारायण चंदेल का नाम आया तो लोगों ने पुराने नेताओं के विकल्प के रूप में देखा । बीजेपी ने ये बदलाव समय रहते ही कर लिए थे , जिससे नए चेहरे को अपनी पहचान बनाने का मौक़ा भी मिला और उन्हे काम करके दिखाने का वक्त भी मिल गया ।एक नेता की प्रतिक्रिया थी कि डॉ.रमन सिंह अगर आदिवासी या ओबीसी तब़के से आते तो शायद बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व को चेहरा बदलने में दिक्क़त हो सकती थी । लेकिन अब छत्तीसगढ़ बीजेपी में नए दौर की राजनीति शुरू हो चुकी है। एक प्रतिक्रिया यह भी सामने आई कि छत्तीसगढ़ की सियासत अब खेती-किसानी और धान के आसपास घूम रही है। ऐसे में अगर बीजेपी के पुराने चेहरे – तीन हज़ार रुपए प्रति क्विंटल के भाव में एक एकड़ पीछे पचीस क्विंटल धान खरीदने का वादा करे तो क्या छत्तीसगढ़ का किसान उस पर भरोसा करेगा…. ? पन्द्रह साल में जिन चेहरों को देखते-देखते छत्तीसगढ़ के किसानों का भरोसा दरक गया है , उनके बारे में फीडबैक़ हाईकमान तक भी पहुंची होगी । तभी दिल्ली का रास्ता दिखाने की तैयारी अभी से दिखाई देने लगी है । पूर्व सीएम को दो नेत्रियों के बराबर की ज़गह या दो नेत्रियों को पूर्व सीएम के बराबर की ज़गह पर देखकर कुछ तो अंदाज़ा लगाया जा सकता है।क्या ऐसे में उचित शर्मा की पोस्ट “उचित” नहीं लगती….. घोषणा भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की…. या लोकसभा 2024 के उम्मीदवारों की….? क्या समझदारों के लिए यह इशारा काफ़ी नहीं लगता… ?