VIDEO-सिंदूरख़ार पहाड़ की ऊँचाइयों में नए सवाल के साथ नए साल का ज़लसा…धरमजीत सिंह कहां से लड़ेंगे अगला चुनाव…?

Chief Editor
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(गिरिज़ेय)कवर्धा जिले के पंडरिया विधानसभा क्षेत्र का पहला नंबर पोलिंग बूथ है सिंदूरखार……।  यह गांव चारों तरफ से कई पहाड़ों से घिरे एक पहाड़ के ऊपर बसा है। मैकल श्रेणी में गिने जाने वाले इन्हीं पहाड़ों के बीच से निकली है आगर  नदी…. ।जो पहाड़ की ऊंचाइयों से पूरे वेग के साथ उतरते हुए कल – कल करती हुई बहती रहती है और इन पहाड़ों की ओर आगे ज़ाने के लिए कई बार इस पहाड़ी नदी को पार करना पड़ता है। और इससे लगा हुआ बहुचर्चित जाना पहचाना स्थान है देवान पटपर….. जिसे “ मैग्नेटिक हिल ” के नाम से जाना जाता है। इस जगह की ख़ासियत है कि यहां गुरुत्वाकर्षण काम नहीं करता और ऊंचाई की ओर गाड़ी बिना इंजन स्टार्ट किए चढ़ जाती है। इस जगह पर कोई भी गाड़ी ढलान की बजाए चढ़ाव की ओर अपने आप लुढ़कती है। मध्य प्रदेश की सरहद से सटे हुए इस इलाके की कई खूबियों के साथ एक खासियत यह भी है कि लोरमी क्षेत्र के मौजूदा विधायक धरमजीत सिंह पहले भी इस इलाके  की नुमाइंदगी विधानसभा में कर चुके हैं ।

             
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नए साल के पहले रविवार को जब धरमज़ीत सिंह सिंदूरखार में बैगा आदिवासियों और वनवासियों  के बीच नया साल मनाने पहुंचे और लोगों ने परंपरागत उत्साह -गीत –संगीत- नृत्य के बीच उनका दिल से स्वागत किया तो एक बार फिर पुरानी यादें ताजा हो गई । वनवासियों की दुनिया में इस जलसे को पुरानी यादों की ताजगी के बतौर ही देखा गया । लेकिन सियासत की दुनिया में धरमजीत सिंह के इस जलसे को देखने का अपना एक अलग नजरिया है। जो यह सवाल भी छोड़ गया कि क्या नई पार्टी में जाने की अटकलों के बीच धरमजीत सिंह फिर से पंडरिया की अपनी पुरानी सीट को  अपनी नई सीट बनाने के लिए  ऊँचे पहाड़ से अपनी “ पापुलर्टी ” की थाह नाप रहे हैं और क्या नए साल की शुरुआत में पहले नंबर के पोलिंग बूथ सिंदूरख़ार से उन्होंने अपने नए सफर का नए अंदाज में आगाज कर दिया है….?

सियासी हलकों में हलचल मचाने वाली इस खबर के साथ इतनी उपमाओँ को जोड़ने के पीछे मकसद यही बताना है कि सिंदूरखार नाम की जिस जगह पर यह कार्यक्रम आयोजित किया गया …..उस जगह और धरमजीत सिंह के सियासी सफर के बीच गहरा तालमेल नजर आता है। धरमजीत सिंह की लंबी राज़नीतिक  यात्रा जिस तरह संघर्षों से भरी है ।  उसी तरह सिंदूरखार तक पहुंचना भी आसान नहीं है। साल के घने जंगल और चारों तरफ पहाड़ों से घिरे इस वनवासी गांव तक पहुंचने के लिए पहले कभी पैदल चलने के अलावा और कोई उपाय नहीं था। 1987 – 88 में  सिंदूरखार अविभाजित  वृहद् बिलासपुर जिले का हिस्सा था और आख़िरी छोर का गाँव था । तब के कलेक्टर उदय वर्मा ने प्रशासनिक अधिकारियों के साथ इस गांव की पदयात्रा की थी। अब वहां तक पहुंचने के लिए पहाड़ों को काटकर घुमावदार रास्ता बन गया है।

लेकिन अभी भी वहां तक  पहुंचना आसान नहीं है। इस गांव तक की दूरी नापने के लिए घंटों का सफर करना पड़ता है। सिंदूरखार के पास भुरकुंड पहाड़ से ही आगर नदी निकली है। यह नदी पंडरिया के कुकदुर ,कामठी ,कोदवागोड़ान, दुल्लापुर ,चिल्फी बंगला होते हुए मुंगेली जिले में दाख़िल होती है। इसके आगे कई हिस्सों से होते हुए यह नदी तख़तपुर इलाक़े की मनियारी नदी की सहायक नदी की शक्ल में आगे बढ़ती है। कुछ इसी तरह धरमजीत सिंह भी पंडरिया इलाके से अपनी राजनीति की यात्रा शुरू कर लोरमी, तखतपुर, बिलासपुर, कवर्धा  इलाके में भी अपनी दखल और अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे हैं। और जिस तरह सिंदूरखार के नजदीक  ज़ंगल के गाँव भाकुर के पास देवान पटपर मैग्नेटिक हिल की अपनी पहचान बनी है। जहां कोई भी गाड़ी चढ़ाव की तरफ बिना इंजन के अपने आप लुढ़कती है। और बिना ताकत लगाए ऊपर की ओर चढ़ती चली जाती है। कुछ इसी तरह धरमजीत सिंह भी अब अपने आप की ताकत से अपना रथ और अपना काफ़िला चढ़ाव की ओर ले जाने की काबिलियत रखते हैं। पिछले चुनाव में अपनी ही ताकत से  लोरमी विधानसभा सीट का चुनाव जीतकर उन्होंने इसे साबित भी किया है।

सिंदूरखार और उसके आसपास इलाके की खासियत और धरमजीत सिंह की शख्सियत को जोड़ने से  जो सीन उभर कर आता है , उसे सामने रख़कर आने वाले समय की राजनीति की तस्वीर को भी समझने की कोशिश की जा रही है। साथ ही नए साल की शुरुआत में यह सवाल भी अपनी जगह कायम हो गया है कि क्या धरमजीत सिंह अपने पुराने इलाके पंडरिया विधानसभा क्षेत्र से अगला चुनाव लड़ सकते हैं,,,, ?  नए साल के पहले रविवार को सिंदूरखार में वनवासियों के बीच नए साल के जलसे में इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश इस वजह से भी की जा रही थी ,क्योंकि बरसों पहले इस इलाके के विधायक के रुप में उन्होंने सिंदूरखार में नए साल का मेला लगाने की परंपरा शुरू की थी। यह रवायत पिछले कई साल से बंद हो गई थी। लेकिन इस साल से धरमजीत सिंह ने फिर इसकी शुरुआत कराई है। जिसमें अपने समर्थकों के साथ वे खुद भी शामिल हुए। बड़ी तादाद में  आसपास गांव के लोग मेले में  आए। लोक संगीत – नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। धरमजीत सिंह ने सैकड़ों लोगों के साथ खाना भी खाया।

बिलासपुर से करीब सवा सौ किलोमीटर दूर कई गाड़ियों के काफिले के साथ पहाड़ियों के बीच बने रास्ते से होकर धरमज़ीत सिंह जब  पहाड़ के ऊपर बसे सिंदूरखार पहुंचे तो सूरज आसमान में बीचो-बीच चमक रहा था। स्कूल के सामने बने मैदान में मेला लग चुका था । आसपास के लोग इकट्ठे थे । लोक कलाकार अर्जुन सिंह की अगुवाई वाले करमा नृत्य दल ने गाजे – बाजे के साथ धरमज़ीत सिंह का स्वागत किया । लोग खुशी के माहौल में आगवानी करते हुए उन्हें मंच तक ले गए। मंच पर फूल मालाओं से स्वागत हुआ। नौजवानों के बीच सेल्फी लेने की होड़ सी लग गई। जोश –ख़रोश इतना अधिक था कि  नर्तक दल में शामिल लोग भी धरमज़ीत सिंह को अपने साथ अपने बीच ले गए। मंच पर सिंदूरखार और आसपास इलाके के लोगों ने अपनी बात रखते हुए  धरमजीत सिंह के विधायक रहते हुए इस इलाके में किए गए कामों का जिक्र किया। साथ ही लोगों ने उनके सामने कई मांगे भी रखी।

उन्होंने उम्मीद जताई कि बरसों से अटके पड़े काम अब धरमजीत सिंह ही पूरा करेंगे। मंच से अपने भाषण में धरमजीत सिंह ने साफ तौर पर कहा कि वे कोई राजनीतिक बात नहीं करेंगे। उन्होंने सरकार ,पार्टी और चुनाव जैसी  बातों का कोई जिक्र नहीं किया।बरसों बाद  प्रेमपूर्ण मुलाकात से गदगद धरमजीत सिंह ने इतनी बात जरूर रखी कि अपने  दस साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने सिंदूरखार के दुर्गम इलाके में विकास के लिए कई कामों की शुरुआत की थी। इस इलाके के लोगों को जोड़ने और यहां की सांस्कृतिक परंपराओं को जीवित रखने के लिए उन्होंने नए साल में सिंदूरखार में मड़ई – मेले की शुरुआत की थी। उन्होंने ऐलान किया कि मेले का यह सिलसिला अब आगे भी जारी रहेगा। इसे अगले साल और बेहतर ढंग से करेंगे।सड़क और अन्य सुविधाओँ को लेकर विधानसभा में मुद्दा उठाने का भी भरोसा उन्होने लोगों को दिलाया ।

स्वागत – सत्कार और भाषण के बाद इस मंच पर ही छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। कार्यक्रम के बाद धरमजीत सिंह ने लोगों से मेल –  मुलाकात की और कई लोगों को नाम से याद करते हुए हालचाल पूछा। फिर उनके साथ खुद भी भोजन किया । पूरा कार्यक्रम होते – होते शाम ढल चुकी थी। आखिर में धरमजीत सिंह अपने समर्थकों के साथ सिंदूरखार के सरपंच के घर पहुंचे। जहां कुटकी से बनी स्वादिष्ट खीर परोसी गई। धरमजीत सिंह की मौज़ूदगी में बने माहौल की तरह मीठी ख़ीर की तारीफ़ भी सभी के दिल से निकली । एलानिया तौर पर चुनाव और राजनीति की बात किसी ने नहीं की । लेकिन सिंदूरख़ार के इस न्यू इयर सेलिब्रेशन में सुर्ख़ हवाओँ के बीच महसूस किया जा सकता था कि पहाड़ों पर बसे पंडरिया विधानसभा क्षेत्र के पहले नंबर पोलिंग बूथ के लोग धरमजीत सिंह को अपने भावी विधायक के रूप में देख रहे हैं।

ज़नवरी के पहले हफ़्ते पहाड़ों के बीच सर्द हवाओँ का अहसास शाम ढलने से पहले ही होने लगा था और हरे – भरे ऊंचे साल के पेड़ो पर कोहरे छाने लगे थे ।सिंदूरखार के सरपंच के घर से मीठी खीर का स्वाद लेकर धरमजीत सिंह का काफ़िला वापस रवाना हुआ। इस काफ़िले में भी धरमजीत सिंह की शख़्सियत की झलक मिल रही थी । जहां पार्टी बंदी और राज़नीति से अलग हटकर मित्रमंडली शामिल थी । जिसमें ऐसे लोग थे  – जो भले ही किसी राजनीतिक विचारधारा पर भरोसा रखते हों, लेकिन दोस्ती निभाते समय धरमजीत सिंह के साथ ही नज़र आते हैं। सियासत की इस अनोखी ज़ुगलबंदी के बीच बिना सियासत के भी सियासत का अनोख़ा इवेंट अपने अंजाम पर पहुंचा ।पंडरिया विधानसभा क्षेत्र के बूथ नंबर एक  – सिंदूरखार में हुए इस जलसे के बाद सवालों का नया काफिला सियासी माहौल की ओर रवाना हो गया। अटकलें लगाई जाने लगी है कि क्या धरमजीत सिंह अगला चुनाव पंडरिया विधानसभा क्षेत्र से लड़ सकते हैं…… ?  

इस तरह की अटकलों और सवालों के पंख लगने के पीछे वज़ह यह भी है कि पिछले कुछ समय से चर्चा चल रही है कि धरमजीत सिंह  अपनी पार्टी बदल सकते हैं। मरवाही उपचुनाव के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह से उनकी  मुलाकात के बाद भाजपा में जाने की अटकलें लगाई जा रही थी। इसके बाद दिसंबर में गुरु घासीदास जयंती समारोह के मौके पर लालपुर ( लोरमी ) में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ बंद कमरे में हुई मुलाकात ने इन अटकलों को हवा दी कि क्या धरमजीत सिंह कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं ।  राजनीति के चतुर सुजान धरमजीत सिंह ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। जिससे अब तक सिर्फ अटकलें ही लगाई जा रही हैं कि  धरमजीत सिंह अगला चुनाव किस पार्टी के सिंबल पर लड़ेंगे। लेकिन सिंदूरखार के जलसे के बाद यह सवाल भी नत्थी हो गया है कि धरमजीत सिंह का अगला चुनाव क्षेत्र कौन सा होगा। लोरमी सहित पंडरिया , तखतपुर , बिलासपुर , कवर्धा में से किस विकल्प पर राइट का निशान लगाएंगे  ….. ? यह आने वाले समय में ही पता लग सकेगा।।

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