राम ने हमेशा नीति का साथ दिया..रामस्वरूपाचार्य ने कहा..अन्यथा अंगद नहीं होते युवराज..रामराज्य का मतलब सबको समान अधिकार..धरमलाल ने लिया आशीर्वाद..दिग्गज नेताओं ने किया प्रणाम

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर-(रियाज अशरफी)–आपके जीवन में कितनी भी व्यस्तता क्यों ना हो..लेकिन जब भी आप घर पहुंचे..रामायाण का दोहें का पाठ नित्य करें। इससे मानसिक शांति प्राप्त होती है। जहां रामायण रखी जाती है..वहां प्रभु श्रीराम की कृपा सदैव रहती है। रामचरित मानस की हर एक चौपाई आपको किसी ने किसी रूप में लाभ ही पहुंचाती है। यह बातें वैदिक महाविद्यालय सीपत में आयोजित दो दिवसीय ऐतिहासिक रामकथा कार्यक्रम के दौरान व्यासपीठ से रामस्वरूपाचार्च ने कही।

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            सीपत स्थित महाविद्यालय मैदान में दो दिवसीय रामकथा कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। रामकथा के पहले दिन चित्रकूट के कामदगिरी से पधारे स्वामी रामस्वरूपाचार्य ने कहा की चाहे जितनी भी व्यस्तता क्यों न हो। जब भी घर पर रहें..रामचरितमानस का पाठ जरूर करें। रामचरित मानस के नित्य पाठ  से मानसिक शांति प्राप्त होती है। जहां पर रामायण या रामचरित मानस रखा होता है।  वहां प्रभु श्रीराम की कृपा सदैव बनी रहती है।

              रामस्वरूपाचार्य ने कहा कि रामचरित मानस के की हर एक चौपाई आपको किसी न किसी रूप में लाभ पहुंचाती है। रामचरित की चौपाई कई मंत्रो के जाप के बराबर फल प्रदान करती हैं।

               कथा से पूर्व कलश यात्रा के साथ बाजे गाजे के सातब शोभायात्रा निकाली गई। महाराज को कथा मंच तक लाया गया।  छत्तीसगढ़  विधानसभा नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कैशिक भी कथा में शामिल हुए। रामस्वरूपाचार्य का आशीर्वाद भी लिया और अंत तक कथा का रसपान किया।

बाली सुग्रीव की कथा..और राम का न्याय

                  महाराज ने उपस्थित भक्तों को बाली युद्ध और सुग्रीव के सत्ता की कथा का रसपान कराया। संत शिरोमणि ने बताया कि श्री राम ने लक्ष्मण  को किष्किंधा भेजा। लेकिन स्वयं नहीं गये।  क्योंकि पिता की आज्ञा के अनुसार उन्हें वनवासी जीवन बिताना था।  श्रीराम ने बाली को मारने के बाद सुग्रीव को राजा बनाया । बालीपुत्र अंगद को युवराज पद पर नियुक्त किया।

            युवराज पद सुग्रीव पुत्र को नहीं दिया। बालीपुत्र अंगद को युवराज पद देना, श्रीराम की राजनीतिक दूरदर्शिता थी। श्रीराम जानते थे कि किष्किंधा के सिंहासन का वास्तविक अधिकारी अंगद ही हैं। क्योंकि परम्परा के अनुसार राजा का पुत्र ही राज्य का अधिकारी होता है। यदि सुग्रीव पुत्र को युवराज बना दिया जाएगा तो विवाद कभी समाप्त नहीं होगा। सुग्रीव के बाद राज्य के लिए संघर्ष छिड़ जाएगा। इसलिए बालीपुत्र अंगद को युवराज बनाया गया।

          रामस्वरूपाचार्य ने बताया कि अंगद को युवराज बनाने के पीछे श्रीराम का उद्देश्य यह भी था कि यदि सुग्रीव सत्ता पाकर अहंकारी हो जाए तो राज पद से अलग कर दिया जा सके। सत्ता उसके पुत्र को भी नहीं मिलेगी। सत्ता बाली पुत्र अंगद को मिलेगी। ऐसा कर श्रीराम ने सुग्रीव को भविष्य के लिए सतर्क कर दिया।

किसी को अधिकार से ना करें वंचित

             स्वामी रामस्वरूपाचार्य जी ने कहा कि श्रीराम की मंशा ऐसा थी कि समाज और देश से वैर की भावना समाप्त हो जाये। व्यक्ति को उसके हक से वंचित कर देने पर वैर की भावना उत्पन्न होती है। यह वैर समाज में संघर्ष और विरोध की सृष्टि करता है। श्रीराम ने बाली पुत्र अंगद के हक को सुरक्षित रखने के लिए युवराज बनाया। इस प्रसंग से यह शिक्षा मिलती है कि किसी भी व्यक्ति को उसके हक से वंचित नहीं किया जाये। सबको अपना हक मिले। किसी को सताया न जाये। तभी समता मूलक समाज की स्थापना होगी।

                 श्रीराम ने अयोध्या में ऐसे ही राज्य की स्थापना की थी। जहां किसी से किसी को वैर नहीं था। कथा में विशेष रूप से जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष प्रमोद नायक,जिला पंचायत सदस्य चांदनी भारद्वाज,कांग्रेस नेता राजेन्द्र शुक्ला,रामकथा के संयोजक द्वारिकेश पांडेय, मन्नू सिंह अखिलेश यादव, हरिकेश गुप्ता, मदनलाल पाटनवार,संदीप खरे लच्छी वर्मा सहित अन्य उपस्थित थे।

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