बिलासपुर— शहर का विकास तेजी से हो रहा है। जनसंख्या विस्फोट के साथ जमीन भी कम हो रही है। इसके बाद तहसील प्रशासन नियम और कानून को ताक पर रख भू-माफियों को सीलिंग की जमीन को बेचना शुरू कर दिया। मामला मंगला का है…तहसील प्रशासन 30 साल बाद पुरानी रजिस्ट्री का नामांतरण कर नया कारनामा पेश किया है। यह कहना कि सीलिंग की जानकारी अधिकारियों को नहीं है..तो इससे बड़ा ताज्जुब भी नहीं है।
सरकार ने अधिकतम कृषक जोत अधिकार अधिनिमय 1960 लाया। अधिनियम को चालू भाषा में सीलिंग कहा गया। सीलिंग अभियान के तहत सरकार ने किसी भी संयुक्त परिवार को 30 एकड़…नाभिकीय परिवार को 20 और व्यक्ति विशेष के लिए 10 एकड़ जमीन छोड़कर अतिरिक्त जमीनों को सरकार ने अपने खाते में चढा लिया। अधिनियम से बचने के लिए लोगों ने अपनी जमीनों को रिश्तेदारों और मित्रों के नाम करना शुरू कर दिया। कुछ लोग रजिस्ट्री करवाने में सफल भी रहे। लेकिन सरकार ने लोगों की पैंतरेबाजी को समझ रजिस्ट्री की गयी जमीनों का नामांतरण से इंकार दिया। सीजी वाल को कुछ ऐसे दस्तावेज मिले हैं…जिसके आधार पर सील किए गए जमीनों का नामांतरण अधिकारियों ने अक्टूबर नवम्बर महीने में कर दिया है। यह जानते हुए भी सीलिंग जमीन को बिना कलेक्टर की इजाजत से ना रजिस्ट्री की जा सकती है और ना ही नामांतरण किया जा सकता है।
सीलिंग अधिनियम के बाद अकेले मंगला क्षेत्र में एकड़ों जमीन की रजिस्ट्री हुई। लेकिन अधिकारियों ने सालो बाद बिना कलेक्टर की इजाजत सभी जमीनों का नामांतरण अक्टूबर- नवम्बर 2017 में कर दिया । जबकि सीलिंग जमीनों की रजिस्ट्री और नामांतरण पर सख्त पाबंदी है। यह जानते हुए भी कि सीलिंग जमीन की रजिस्ट्री करना अपराध है। फिलहाल नामांतरण की कई सभी जमीनें उन्ही के पास लौट गयी है जिनसे कभी सरकार ने खरीदा था।
सीलिंग से बचने दान का नाटक
सीलिंग से बचने के लिए लोगों ने छीनी गयी सरकारी जमीनों को परिजनों के नाम दान में रजिस्ट्री कर दिया। रजिस्ट्री के बाद नामांतरण पर प्रतिबंध लगा दिया गया। बावजूद इसके मंगला क्षेत्र में सालों से लंबित नामांतरण प्रक्रिया को अक्टूबर- दिसम्बर 2017 में तहसीलदार ने पूरा कर दिखाया। बताया जा रहा है कि नामांतरण के खेल में राजस्व अधिकारियों को जमकर फायदा हुआ है।
30-35 साल बाद नामांतरण..
मंगला क्षेत्र के जमीन वालों ने परिवार के सदस्यों के नाम दान में रजिस्ट्री की थी। 30-35 साल बाद जमीनों का राजस्व अधिकारियों ने नामांतरण कर दिया। प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार मंगला हल्का में सीलिंग से बचने विजय अग्रवाल ने खसरा नम्बर 173,174,204/2 से अलग-अलग कुल 21 डिसिमिल जमीन परिजन विनोद अग्रवाल को दान में दिया। जमीन की सीलिंग 19 मार्च 1986 में हुई थी। विजय ने इन्हीं खसरों से पचास डिसिमिल जमीन विनय खेडिया को दान में दिया। लक्ष्मीबाई और विजय अग्रवाल ने 8 नवम्बर 1985 में मोहन और राजाराम को खसरा नम्बर 173 से एक एकड़ जमीन काटकर रजिस्ट्री की। इसी दिन लक्ष्मी अग्रवाल ने खसरा नम्बर 175 से 27 डिसिमिल जमीन रामधनी शाह को दान में दिया।
19 मई 1985 में लक्ष्मीनारायण अग्रवाल ने राम और व्यंकटेश को खसरा नम्बर 176 से 43 डिसिमिल जमीन दान दिया। लक्ष्मीनारायण ने 8 नवम्बर 1985 में खसरा नम्बर 175 से 27 डिसिमल जमीन रामधनी को दिया। इसी तरह लक्ष्मी और विजय ने खसरा 173 से 20 डिसिमिल,174 से 3 डिसिमिल जमीन रामधन के नाम किया। लक्ष्मीनारायण ने रवि केजरीवाल को 176/3 से 17 डिसिमिल, 204/1 से 17 डिसिमल और 175 से 15 डिसिमिल जमीन रजिस्ट्री की। सभी जमीनों का नामांतरण अक्टूबर नवम्बर 12017 में किया गया।
किस तारीख को हुआ नामंतरण
पुख्ता दस्तावेज के अनुसार सीलिंग की गयी ज़मीनों का नामांतरण रेडीमेड केस लगाकर किया गया। नामांतरण के दौरान किसी भी जमीन के लिए नियमों का पालन नहीं किया गया। जबकि नामंतरण प्रक्रिया में इश्तेहार से लेकर तमाम प्रक्रियाओं का पालन करना होता है लेकिन तहसीलदार देवी सिंह उइके ने नियमों का पालन नहीं किया। नामंतरण किए गए जमीनों में केस नम्बर एक 48/ 6 अ 7-18 कमल किशेर अग्रवाल और काशीराम का है। जमीन का नामांतरण 24 नवम्बर 2017 को किया गया। 28 अक्टूबर 2017 को विमला केस की जमीन का नामांतरण किया गया। केस का नम्बर 18/ अ…अ 17-18 है। इसी तरह लक्ष्मी नारायण की जमीन का नामांतरण 28 अक्टूबर 2017 को किया गया। लक्ष्मी नारायण का केस नम्बर 19/ अ और अ 7-18 है। तीनों जमीन सीलिंग एक्ट में जब्त की गयी थीं। बावजूद इसके तहसीलदार देवी सिंह उइके ने नियम और कानून को ताक पर रख सीलिंग की जमीनों का नामांतरण किया।