बिलासपुर।पूरी दुनिया कोरोनावायरस के संक्रमण को रोकने की लड़ाई में जूझ रही है। छत्तीसगढ़ के गांव भी इसमें पीछे नहीं है। कहीं यह देखने को मिलेगा कि गांव के लोगों ने गांव से जुड़े सभी रास्तों पर बैलगाड़ी– लकड़ी -पेड़ या दूसरी चीजों से रास्तों को घेर दिया है और गांव से किसी के आने -जाने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी है …। कहीं यह देखने को मिलेगा कि हैंडपंप के के आसपास दूरियां बनाए रखने के लिए लगाए गए चूने के गोल घेरे में खड़े होकर एक दूसरे से पर्याप्त दूरी के साथ महिलाएं पानी भरने जा रही हैं ….गांव की गलियों में सन्नाटा पसरा है…। सभी काम ठप्प है और लोग इस बात का एहसास करा रहे हैं कि गांव के लोग भी कोरोनावायरस को लेकर जागरूक हैं । बल्कि कई मायनों में यह उन शहरी लोगों के लिए भी एक बड़ा मैसेज है ….. जहां कई बार लॉक डाउन के उल्लंघन या सड़कों में आमद – रफत की वजह से सख्ती बरते जाने की खबरें सुनने को मिलती है। ऐसे पढ़े -लिखे समाज को गांव के लोग संदेश दे रहे हैं कि आपदा के समय उनकी जागरूकता भी कम नहीं है।बल्कि गांव के लोगों ने अपने होकर खुद से ऐसा इंतजाम किया है कि उन पर सख्ती बरतने की कोई जरूरत नजर नहीं आती। सीजीवालडॉटकॉम के व्हाट्सएप (NEWS) ग्रुप से जुडने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये
वैसे भी छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर उनकी पूरी प्रशासनिक टीम, पुलिस का अमला और स्वास्थ विभाग के साथ ही राजस्व विभाग का पूरा तंत्र जिस तरह से पूरे इंतजाम को संभाले हुए हैं ,उसकी तारीफ सभी तरफ हो रही है । छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से उठाए गए कदमों का ही असर है कि छत्तीसगढ़ में कोरोना संक्रमण को रोकने में अब तक सुखद कामयाबी मिल रही है । हालांकि अभी सतर्क रहने की जरूरत है और इसमें काफी लंबा समय भी लग सकता है। लोगों को इसके लिए तैयार भी रहना होगा। लाकडाउन के दौरान अब तक की पूरी तस्वीर पर नजर डालें तो यह साफ़ समझ में आता है कि लाक डाउन की शब्दावली सभी के लिए नई है …..। सामान्य नागरिकों से लेकर प्रशासन ,बाजार ,छोटे – बड़े व्यापारी और मजदूर ….. समाज के सभी तबके के लोगों के लिए यह शब्द एकदम नया है।
इसलिए लाक डाउन शब्द और लाक डाउन से उपजी परेशानियां भी लोगों के लिए एक दम नईं हैं। जिससे मुकाबला करने के लिए भी नए – नए तरीके ढूंढने पड़ रहे हैं । हालांकि वक्त लोगों को काफी कुछ सिखाता जा रहा है । लोग परेशानियों के बीच इससे बचने का रास्ता भी ढूंढने लगे हैं । यह बात तसल्ली देती है की लोगों ने करीब- करीब अब यह समझ लिया है कि कोरोना की महामारी से बचने के लिए लाकडाउन ही सब कुछ भले न हो…. लेकिन यही बहुत कुछ है …..और हम अपने अपने घरों पर रहकर इसके संक्रमण से बच सकते हैं । छत्तीसगढ़ के गावों में तो कम – से- कम ज़रबूर इस बात की झ़लक मिल रही है।
कोरोना महामारी की चर्चा और लाक डाउन की शुरुआत के समय तमाम जानकारों के बीच यह सवाल उठता रहा है कि लोग इसे कब तक समझ पाएंगे और अपने को इसके अनुरूप ढाल सकेंगे ….? इसी के साथ यह सवाल भी जवाब की तलाश करता रहा है कि गांव के लोगों के बीच इसकी प्रतिक्रिया क्या होगी और लाक डाउन गांव में कितना सफल हो सकेगा । इस नजरिए से अगर छत्तीसगढ़ के गांवों की स्थिति को देखें तो लगता है कि जागरूकता के मामले में गांव के लोग कहीं भी पीछे नहीं है ।तखतपुर के पत्रकार टेकचँद कारड़ा ने भी बातचीत के दौरान आस-पास के गाँवों के लॉकडाउन हालात के बारे में काफ़ी कुछ बताया । तमाम लोगों से बातचीत और गांव देहात से मिल रही खबरों से लगता है कि लोगों ने इस बात को बेहतर समझ लिया है कि भीड़भाड़ से हर हाल में दूर ही रहना है । लिहाजा करीब सभी गांव पूरी तरह से सन्नाटे में हैं और वहां की सभी गतिविधियां थम सी गईं हैं । गांव में लाक डाउन के नजारे को समझने के लिए कुछ उदाहरणों पर नजर डाल सकते हैं ।
मिसाल के तौर पर करीब सभी गांव में आम दिनों में उन हिस्सों में ही थोड़ी चहल-पहल भीड़-भाड़ रहती है , जहां किराने या दूसरी जरूरतों की दुकानें हैं । इस समय सभी दुकाने सुबह के कुछ घंटों के बाद बंद हो जाती हैं । इसके बाद पूरा गांव सूनसान हो जाता है । फिर लोग अपनी परछी या बरामदे के पास बैठकर वक्त बिताते हैं । यह खबर भी मिली कि कुछ बड़े गांव में लगने वाले साप्ताहिक बाजार को लेकर प्रशासन की ओर से सख्त निर्देश दिए गए थे कि दोपहर बाद 3 बज़े से 5 बज़े के बीच बाजार लगेगा । इसका पूरा पालन करते हुए लोग दिखाई देते हैं और सोशल डिस्टेंस का ध्यान रखते हुए ही बाजार में खरीदारी करते हैं ।
इस दौरान प्रशासन ने भी पूरी सजगता और सक्रियता के साथ न केवल इंतजाम किए हैं। बल्कि पूरे हालात पर कड़ी नजर भी रखी जा रही है । शुरुआती दौर में जरूरत के सामानों की मुनाफाखोरी – कालाबाजारी की शिकायतें मिल रही थीं । लेकिन प्रशासन ने सभी दुकानदार और उन्हें थोक में सामान बेचने वालों की लिस्टिंग कर दाम पर नियंत्रण कर लिया । हर एक ग्राम पंचायत में 2 क्विंटल चावल की व्यवस्था करने की हिदायत मिलने के बाद इसकी व्यवस्था भी की गई ।
छत्तीसगढ़ के गांवों में इस समय चना ,गेहूं , तिवरा जैसी ओन्हारी की फसलों की कटाई – मिंजाई का समय है । स्वाभाविक रूप से सामान्य कामकाज नहीं हो पा रहा है । लेकिन गांव के खेतिहर मजदूर और किसान सोशल डिस्टेंसिंग के हिसाब से धीरे-धीरे काम कर रहे हैं । बाड़ियों में सब्जी लगाने वाले किसान भी खुद बुवाई से लेकर तोड़ाई तक के काम में लगे हैं ।गावों में ज़िंदगी पहले भी शहरों से अलहदा ही रही है। पारा – मोहल्ला , अड़ोस – पड़ोस सभी एक दूसरे से जीवंत संपर्क में रहते हैं। सभी एक – दूसरे के सुख – दुख मे हिस्सेदार रहते हैं। ऐसे में लाकडाउन की वज़ह से कोई भूखा रह ज़ाए यह कैसे हो सकता है। सरकार अपना काम कर रही है और गाँव का समाज़ अपना काम कर रहा है। पाबंदियों का पूरा पालन किया जा रहा है। एक गाँव से दूसरे गाँव तक कोई नहीं जा सकता है। ऐसा नहीं है कि गाँव के लोगों के सामने दिक़्क़तें नहीं हैं…..। उनके सामने भी आज़ीविक़ा से लेकर रोज़मर्रा की ज़रूरतों तक तरह – तरह की परेशानियां हैं। उनके पास साधनों की भी कमी है। लेकिन वक़्त की नज़ाक़त को भी गाँव के लोगों ने बेहतर ढ़ंग से समझ लिया है और अपने तरीक़े से मुसीबतों का सामना कर रहे हैं।
पूरी दुनिया के साथ गांव के लोग भी इस सवाल के जवाब का इंतजार कर रहे है कि आखिर कोरोना पर काबू कब तक पाया जा सकेगा और लाक डाउन जैसी स्थिति कब तक रहेगी….? यह जवाब कब तक लोगों को मिलेगा यह भी सही ढंग से नहीं मालूम । लेकिन उम्मीदें बरकरार हैं कि सब कुछ फिर सामान्य होगा और जिंदगी फिर पटरी पर आएगी । इस उम्मीद में लोग लाक डाउन को कामयाब बनाने अपनी हिस्सेदारी निभा रहे हैं …..। और शहरों के पढ़े – लिखे समाज़ को यह संदेश भी दे रहे हैं कि यह वक़्त संभलकर घर पर ही रहने का है….।