यज्ञ से होती है राष्ट्र की समृद्धि और देवताओं की संतुष्टि-स्वामी सच्चिदानंद

Shri Mi
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बिलासपुर-रूद्रातिरूद्र महायज्ञ में पधारे स्वामी सच्चिदानंद जी महाराज ने यज्ञ के महत्व के बारे में बताया कि वेदों पुराणों में यज्ञ परिपालन राष्ट्र की समृद्धि और देवताओं की संतुष्टि के लिए किया जाता है। जिस तरह एक किसान धरती मां को एक किलो अनाज बीज के रुप में डालकर दान देता है, और सिर्फ 4 महीने में धरती मां उसे 100 गुना करके वापस करती है। इसमें धरती,जल,अग्नि, वायु और आकाश इन पांच महा शक्तियों का विलय होता है और वह सब सभी सहभागी बनते हैं। दो गुना वापसी की कोई भी सरकार या व्यापार गारंटी नहीं देता। वह भी सिर्फ 4 महीने में। इसी तरह जब हम कोई सामग्री चावल, तिल,घी, मेवा जौ या कोई भी वस्तु अग्नि में डालते हैं। तो वह हजार गुना विखंडित हो जाती है,जो वायु में घुल कर पशु, पक्षी, मनुष्य, देवता, अशारीरिक योनि जिसमें कि गंधर्व, यक्ष ,राक्षस अन्य शामिल होते हैं। इन सब को संतुष्टि प्राप्त होती है। उन्होंने कहा कि हम जिस रुप में प्रकृति को देते हैं।

             
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प्रकृति उसी रुप में हमें वह लौटाती है। ऐसे महायज्ञ से पर्यावरण की शुद्धि होती है और शुद्ध वातावरण का निर्माण होता है। इसके साथ पशु, पक्षी, नदी, वायु, अन्न, फल, फूल शुद्ध होते हैं। प्रदूषण को खत्म करने का सबसे बड़ा साधन यज्ञ ही होता है। इसीलिए यज्ञ बेहद जरुरी है। क्योंकि आर्थिक उन्नति रोकी नहीं जा सकती, लेकिन आर्थिक उन्नति मानव जीवन में संकट ना डाले इसलिए यज्ञ की आवश्यकता होती है। मानव विकास मानव विनाश की ओर तो नहीं ले जा रहा। यह यज्ञ का वैज्ञानिक महत्व है, उन्होंने युवाओं की वर्तमान जीवन शैली और जीवन में भटकाव पर चिंता जाहिर करते हुए कहा, कि आज सबसे ज्यादा जरुरत युवाओं को सदमार्ग में ले जाने की है। युवा तेजी से पतन की ओर जा रहे हैं, इसलिए उन्हें अपनी तीन बातों में सुधार लाने की जरुरत हैं। इन बातों से लोक और परलोक दोनों ही शुद्ध हो जाएगा। पहला है आहार शुद्धि। आहार से  केवल शरीर निर्माण ही नहीं बल्कि मन का निर्माण भी होता है। हमें ऐसा भोजन करना चाहिए, जिससे कि कि हमारे मन के अच्छे तत्वों का निर्माण हो। जिस तरह हाथी, गैंडा, हिप्पो यह सब ताकतवर प्राणी हैं, लेकिन यह शाकाहारी होते हैं। इसलिए इसमे हिंसा नहीं होती, जबकि इसके विपरीत शेर मांस आहार करता है इसलिए वह हिंसक होता है।

उन्होंने बताया कि मनुष्य के मन में अहिंसा, स्वास्थ, और शांति मिले ऐसा भोजन करना चाहिए। दूसरी बात है विचार शुद्धि की। गुरु की सेवा, उनका सानिध्य, उनकी कृपा और उनके आदेश का पालन करना इन सब बातों से सद् विचारों का निर्माण होता है। गुरु के पास रहने से सद्विचार आते हैं। ग्रंथों के अध्ययन से अहंकार बढ़ता है और गुरु की सेवा से ज्ञान बढ़ता है।यह ज्ञान व्यवहारिक होता है। ज्ञान अंदर से बाहर की ओर आता है, जबकि शिक्षा बाहर से अंदर की ओर जाती है। शिक्षक जोड़ता है और गुरु अवगुणों को हटाकर कर एक शिल्पकार की तरह व्यक्तित्व निर्माण करता है।  गुरु के सानिध्य में जीवन की सकारात्मकता मिलती है। तीसरी महत्वपूर्ण बात है जो युवाओं को हमेशा ध्यान इतनी चाहिए कि आहार विचार के बाद व्यवहार का परिमार्जन स्वाभाविक होने लगता है। व्यवहार और स्वभाव में मधुरता विनम्रता, निश्छलता, परमार्थ और उपकार आते हैं। इससे जीवन महापुरुषों की राह पर चलने लगता है आज नई युवा पीढ़ी को इस बात की बेहद आवश्यकता है।

युवाओं को संस्कारों से ही जोड़ना जरूरी: हरिहरानंद 
बिलासपुर।महामंडलेश्वर स्वामी हरिहरानंद सरस्वती ने बताया कि यज्ञ विज्ञान की परंपरा वेदों में अनादि काल से चली आ रही है । आज कलयुग आ चुका है ,और हम कलियुग में जीवन जी रहे हैं। ऐसे में यज्ञ की की महत्ता और भी बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि रुद्रातिरुद्र महायज्ञ का अर्थ हैै। 11 आति रुद्र महायज्ञ का एक मंडप में होना है।  यह जब 11 अति रुद्र महायज्ञ एक मंडप में होते हैं तो उसे रुद्रातिरुद्र महायज्ञ कहा जाता है । उन्होंने यह भी बताया कि यह महायज्ञ  गुरुदेव परमहंस स्वामी शारदानंद सरस्वती की प्रज्ञा में आया और  इस महायज्ञ को इस संकट काल में करने का निर्णय लिया है। हरिहरानंद जी ने कहा कि इस महायज्ञ में तीन करोड़ से भी अधिक आहुतियां हो रही हैं, और कुल 321 हवन कुंड बनाए गए हैं । इस महायज्ञ में शामिल होने के लिए देश के कोने-कोने से संत आए हुए हैं , और यह बिलासपुर की पावन धरा को अब रुद्र नगर के रुप में जाना जाएगा। उन्होंने कहा कि कोरोना इस संकट काल में  जीवन स्थिर हो गया है। ऐसे यज्ञ की निरंतरता से वर्तमान समय में हुए संक्रमण पर भी बड़ा लाभ मिलता है।  उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा, कि आज के युवा धर्म से नहीं जुड़ रहे हैं। यह भारतीय संस्कृति के लिए अच्छा संकेत नहीं है।  हमें युवाओं को संस्कार देना  चाहिए ताकि अधिक से अधिक युवा धर्म से जुड़ें और सनातन धर्म पूरे विश्व में पूजा जाय। उन्होंने यह भी बताया कि युवा के संस्कारी नहीं होने के कारण यह भी है,  कि घर से ही संस्कार नहीं दिया जा रहा है। यदि बच्चों को घर से ही माता-पिता भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म का संस्कार दें, तो युवा संस्कारी बनेंगे उन्होंने बताया कि 1000 साल की गुलामी से अधिक पतन आजादी के बाद से अब तक 70 साल में हुआ है। क्योंकि युवा टीवी, मोबइल और सिनेमा जैसी कुसंस्कृतियों में फसते जा रहे हैं । हमें  कुसंस्कृति से निकालकर कर उन्हें सनातन धर्म की ओर ले जाना हैं ।

 धर्म ज्ञान से ही होगा आदर्श समाज का निर्माण: संत विनय दास
महायज्ञ में जोधपुर से पधारे संत विनयदास जी महाराज ने कहा कि शास्त्र अध्ययन और शास्त्र का ज्ञान युवा अवस्था में होना चाहिए, ताकि शास्त्र के ज्ञान और अध्ययन के आधार पर जीवन की दशा और दिशा तय होने के साथ परमार्थ और परमात्मा के रास्ते में व्यक्ति चल सके। ज्ञान से धर्म ,संस्कार ,परिवार, समाज और देश का निर्माण होगा, और हम एक आदर्श समाज का निर्माण करेंगे।  उन्होंने कहा कि वर्तमान परिवेश में यह देखा जा रहा है, कि लोग वृद्धावस्था में शास्त्र अध्ययन और शास्त्र ज्ञान लेते हैं। जिसकी सार्थकता वृद्धावस्था में बिल्कुल भी नहीं हैं। यह अध्ययन तो युवा अवस्था में होना चाहिए, ताकि उस ज्ञान के आधार पर व्यक्ति अपना जीवन दशा और दिशा तय करें । उन्होंने कहा कि आज मनुष्य को सबसे ज्यादा यह बताए जाने की जरुरत है , कि इस मनुष्य जन्म का धर्म क्या है । भोग विलास, संतान उत्पत्ति और अन्य वैभव बिल्कुल भी मनुष्य जन्म का उद्देश्य नहीं हैं। जानवर भोग विलास, संतान उत्पत्ति, और अपनी इच्छा से विचरण कर जीवन जी लेता है । ऐसे में तो मनुष्य और पशु का जीवन समान हो गया। मनुष्य जीवन का अर्थ है, संत सानिध्य में आकर परमात्मा की प्राप्ति के लिए कार्य करना। यही मनुष्य जन्म का कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि सदकर्म और धर्म निषिद्ध कर्म लोगों को ध्यान में होना चाहिए । सदकर्म वह जिसमें लोगों का कल्याण हो। इसी तरह धर्म निषिद्ध कर्म वह है,  जिससे किसी को नुकसान होता हो।  व्यक्ति को सदकर्म करना चाहिए इससे आत्मा को शांति मिलती है, और मन प्रसन्न रहता है।उन्होंने यह भी कहा कि महायज्ञ छत्तीसगढ़ की पावन बिलासपुर धरा में हो रहा है । यज्ञ भगवान का स्वरुप होता है।  इसे इसमें उच्चारण किए जाने वाले वेद मंत्र सिद्ध मंत्र होते हैं , और असूरी संपदा नष्ट हो जाती है दैवी संपदा प्रतिष्ठित होती है।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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