SBR ट्रस्ट को जोर का झटका..कोर्ट का आदेश ..नहीं बिकेगी कालेज की जमीन..पर्यटन मण्डल अध्यक्ष अटल ने कहा..छात्रहित में आया बहुत बड़ा फैसला..अमर अग्रवाल ने भी किया था विरोध

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—- एसडीएम कोर्ट ने लम्बी सुनवाई के बाद एसबीआर कालेज ट्रस्ट जमीन पर फैसला सुना दिया है। एसडीएम देवेन्द्र पटेल की कोर्ट ने फैसला सुनाया कि कालेज की जमीन ट्रस्ट के मंशानुरूप शैक्षणिक गतिविधियों में उपयोग किया जा रहा है। जमीन पूरी तरह से सुरक्षित है। जमीन का उपयोग खेल मैदान के रूप में ही किया जा रहा है। कोर्ट ने ट्रस्ट के सभी दावों को खारिज करते हुए फैसले में दो टूक कहा कि ट्रस्ट की जमीन को नहीं बेचने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।

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एसबीआर ट्रस्ट को जोर का झटका

              एसबीआर कालेज जमीन मामले में लम्बी सुनवाई के बाद एसडीएम देवेन्द्र पटेल की कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। कोर्ट से स्पष्ट किया है कि एसबीआर कालेज मैदान की जमीन को किसी भी सूरत में खरीदी बिक्री की इजाजत नहीं है। जमीन का उपयोग ट्र्स्ट के सिद्धांतों के अनुरूप शैक्षणिक गतिविधियों के लिए किया जा रहा है। जमीन पूरी तरह से सुरक्षित है। किसी प्रकार का अतिक्रमण नहीं किया गया है। ट्रस्ट की तरफ से पेश किए गए कमोबेश सभी तर्क तथ्यहीन हैं। सुनवाई के दौरान पाया गया कि ट्रस्ट की नीयत जमीन  को लेकर ठीक नहीं है। ना तो जमीन पर अतिक्रमण ही हुआ है और ना ही छात्रहित में जमीन को बेचा जाना उचित होगा। इसलिए ट्रस्ट को जमीन बेचने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। 

सिविल कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक

               जानकारी देते चलें कि एसबीआर कालेज मैदान को लेकर पिछले कुछ सालों से ट्रस्ट और ट्रस्ट फाउंडर परिवार के बीच विवाद चल रहा था। बजाज परिवार के सदस्य अतुल बजाज ने ट्रस्ट के गठन और कालेज मैदान की बिक्री को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अतुल बजाज ने कालेज जमीन बिक्री के निर्णय के खिलाफ एसडीएम कोर्ट में भी वाद दायर किया था।

                 अतुल बजाज ने सिविल कोर्ट में भी जमीन बेचे जाने के ट्रस्ट के फैसले को चुनौती दी। स्टे नहीं मिलने पर अतुल बजाज ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई। यहां भी अतुल बजाज को असफलता हाथ लगी। उन्होने सुप्रीम कोर्ट के सामने मामले को रखा। सुप्रीम कोर्ट में पहली सुनवाई हो चुकी है। जानकारी देते चलें कि अतुल बजाज के अलावा बजाज परिवार के फाउन्डर पीढ़ी के तीन अन्य संतोष बजाज, सुमित बजाज और अमित बजाज ने भी ट्रस्ट की वैधता और जमीन बिक्री के खिलाफ सिविल कोर्ट से स्टे लिया है। 

एसडीएम कोर्ट में सुनवाई

                     इस पूरी प्रक्रिया के दौरान मामले में एसडीएम कोर्ट में भी सुनवाई लगातार चलती रही। गुरूवार को ठीक 11 बजे एसडीएम देवेन्द्र पटेल ने ट्रस्ट के खिलाफ फैसला देकर जमीन की खरीदी बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। साथ ही कोर्ट ने फैसले में ट्रस्ट की नीयत पर भी सवाल उठाया है। बताते चलें कि एसबीआर कालेज की जमीन को बचाने के लिए पिछले 15 दिन से भाजपा के युवा नेता शैलेन्द्र यादव की अगुवाई में कालेज के छात्र हड़ताल पर हैं।

ट्रस्ट को इन बिन्दुओं पर मिली हार

           एसडीएम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि एसबीआर कालेज की स्थापना एसबीआर ट्रस्ट ने 1972 में किया है। कालेज के सामने ट्रस्ट की करीब ढाई एकड़ जमीन है। जमीन का उपयोग वर्तमान में कालेज के खेल मैदान के रूप में किया जा रहा है। जबकि ट्रस्ट का उद्देश्य भी जमीन का उपयोग शैक्षणिक गतिविधियों को लेकर किया जाना बताया गया है। इसलिए जमीन को बेचकर दूसरी जगह जमीन खरीदने की बात उचित नहीं है। जैसा की वर्तामन ट्रस्ट की तरफ से सुनवाई के दौरान कहा गया है।

बिन्दुवार आया फैसला

                    एसडीएम कोर्ट ने दूसरे प्रमुख बिन्दु में कहा कि साल 1944 में ट्रस्ट का गठन किया गया। 2014 तक ट्रस्ट में सिद्धान्तों और ट्रस्टियों में भी किसी प्रकार का परिवर्तन नही हुआ। साल 2014 के बाद यकायक नए सदस्य आ जाते हैं। पहले कहते हैं कि ट्रस्ट की बैठक नहीं हुई..फिर जमीन बेचने के लिए आवेदन करते हैं। इस दौरान ट्रस्ट ने कोर्ट को बताया कि जमीन नहीं बेचने की मंशा नहीं है। फिर जमीन बेचने के लिए आवेदन करते हैं। इससे जाहिर होता है कि वर्तमान ट्रस्ट की नीयत ठीक नहीं है। वैसे भी जमीन का उपयोग ट्रस्ट के उद्देश्य के अनुसार शैक्षणिक हित में किया जा रहा है। इसलिए जमीन बेचने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।

दावा में सच्चाई नही

                   अपने फैसले में एसडीएम कोर्ट ने बताया कि एसबीआर ट्रस्ट ने दावा किया था कि जमीन पर अतिक्रमण किया जा रहा है। मौके पर पाया गया कि..बतायी गयी जमीन पर किसी प्रकार का अतिक्रमण नहीं हुआ है। जमीन पूरी तरह से सुरक्षित है। ट्रस्ट के दावा में किसी प्रकार की सच्चाई नहीं है।

 राजनीति में भी चर्चा का विषय.. 

             जानकारी देते चलें कि एसबीआर कालेज का ना केवल बिलासपुर बल्कि अविभाजित मध्यप्रदेश में अपना अलग महत्व रहा है। प्रसिद्ध रंगकर्मी. फिल्म जगत के पुरोधाओं में से एक सत्यदेव दुबे ना केवल एसबीआर कालेज में पढ़े हैं। बल्कि प्राध्यापक की नौकरी भी किए हैं।

            वर्तमान पर्यटन मण्डल बोर्ड अध्यक्ष और पीसीसी उपाध्यक्ष अटल श्रीवास्तव ने एसबीआर कालेज जमीन को बचाने को लेकर मुहिम भी चलाया था। यह मुहिम आज भी जारी है। पिछले दो तीन सालो में अटल श्रीवसात्व ने जब तब कालेज जमीन को बचाने अलग अलग मंच पर अपनी बातों को पुरजोर तरीके से पेश भी किया। फैसला आने के बाद अटल ने खुशी जाहिर की है। मामले में पूर्व छात्र नेता धर्मैेश शर्मा और राजकुमारी तिवारी ने भी कालेज जमीन को बचाने को लेकर हर मोर्च पर मेहनत करते नजर आए हैं।

                  जानकारी हो कि कुछ दिनों पहले ही भाजपा के दिग्गज नेता अमर अग्रवाल ने भी इशारो ही इशारों में एसबीआर कालेज को लेकर बयान दे चुके हैं। उन्होने कहा था कि जनहित की किसी भी जमीन को बिकने नहीं दिया जाएगा। 0अमर के इस बयान के बाद भाजपा यूथ विंग ने कालेज की जमीन बचाने को लेकर छात्रों के साथ पिछले 15 दिनों से लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे हैं।

सच की जीत…छात्र हित की जीत..पर्यटन मण्डल अध्यक्ष अटल        

               फैसला आने के बाद पर्यटन मण्डल अध्यक्ष अटल श्रीवास्तव ने खुशी जाहिर की है। उन्होने कहा कि सच परेशान हो सकता है..लेकिन में जीत  सच की होती है। छात्रहित में बहुत बडा फैसला आया है। जमीन माफिया कितना भी बड़ा हो जाए..लेकिन कोर्ट के आगे बौना है। कोर्ट का फैसला सिर आंखों पर। खुशी की बात है कि फैसले के समय छात्रहित को ध्यान में रखा गया। आने वाले समय में इस फैसले को याद रखा जाएगा।  इस प्रकार की गलती दुहराने से पहले भू माफिया सौ बार सोचेंगे। बहुत बड़ा फैसला है। दरअसल न्याय के साथ छात्रों की जीत हुई है।  इसके लिए न्यायजगत को बधाई। 

पर्दे के पीछे रसूखदारों ने भी लगाया जोर

            सूत्रों की माने तो प्राइम लोकेशन में होने के कारण एसबीआर जमीन की कीमत वर्तमान में करोड़ों की है। जमीन को पाने के लिए सालों से ट्रस्ट के सदस्यों ने अभियान चलाया। ट्रस्ट के गठन में भारी धांधली की गयी। फिर मामला कोर्ट तक पहुंचा। कोर्ट पर दबाव बनाने रसूखदारों ने एड़ी चोटी लगाया। सूत्र ने बताया कि जमीन को हथियाने के लिए सफेदपोश से लेकर जमीन माफियों कोई कसर नहीं  छोड़ा।  बावजूद इसके कोर्ट के सामने किसी की नहीं चली।

                                  

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