ज़मीन माफ़ियाओँ की राजधानी में नए “राज़ा” का बढ़िया स्वागत…बिलासपुर में नई ज़ुगलबंदी की बुनियाद के जश्न में दरबारियों का ऐसा ख़ौफ कि कोरोना भी डरकर भाग गया

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(रुद्र अवस्थी)छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर ने न्यायधानी के रूप में अपनी पहचान बनाई है। इस शहर में हाई कोर्ट स्थापित है। इसलिए इस शहर को न्यायधानी के रूप में पहचान मिली है। छत्तीसगढ़ राज्य जब बना ,तब इस शहर के लोग भी चाहते थे कि राजधानी बिलासपुर में बने। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। हालांकि बिलासपुर के साथ राजधानी का नाम उस समय भी जुड़ा जब छत्तीसगढ़ को दिल्ली से जोड़ने वाली फास्ट ट्रेन राजधानी एक्सप्रेस को बिलासपुर से चलाया गया। हिंदुस्तान के नक्शे  में छत्तीसगढ़ का बिलासपुर और असम का  डिब्रूगढ़  दो ऐसे शहर हैं, जो राजधानी नहीं है ।  लेकिन राजधानी ट्रेनें यहां से चलती है। बिलासपुर शहर को अँडरएस्टीमेट करने वाले लोग अपने इन्फर्मेशन लिस्ट को अपडेट कर सकते हां…।खैर यह तो पुरानी बात  हो गई । अब आज के माहौल में वापस लौटते हैं। और यह समझ़ने की कोशिश करते हैं कि राजध़ानी शब्द से बिलासपुर का नाता फ़िर क्यों जुड़ रहा है……? अभी कुछ दिनों पहले बिलासपुर को एक बार फिर राजधानी के रूप में नई पहचान दिलाने की मुहिम शुरू हुई है। जाहिर तौर पर यह मुहिम सियासी है। सीधे – सीधे कहें तो छत्तीसगढ़ में बीजेपी के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल ने आरोप लगाया कि बिलासपुर भू माफियाओं की राजधानी बन गई है। यहां जमीन एक जगह से दूसरी जगह उड़ जाती है और जमीन को लेकर कुछ भी होता है….। उनका यह भी कहना था कि सरकार में बैठे लोगों के छाते के नीचे ज़मीन माफिया फल – फूल  रहे हैं।

अमर अग्रवाल के इस बयान के बाद आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी  चला।

ज़मीन माफ़ियाओँ के केपिटल के रूप में बिलासपुर की नई पहचान को लेकर ज़ो कुछ चल रहा है, उसे समझ़ने के लिए थोड़ा डायरी के पन्नों को पीछे पलटना पड़ेगा ।  लोगों को याद होगा कि पिछले विधान सभा चुनाव के ठीक पहले बिलासपुर को खोदापुर का नाम दिया गया था। यह जुमला काफी चला और इसका असर भी चुनाव में नजर आया। खोदापुर की यह पहचान बिलासपुर के नेमप्लेट से अलग हो सकी या नहीं …..यह सभी देख रहे हैं। बहरहाल ढाई साल गुजर जाने के बाद आने वाले चुनाव से पहले बीजेपी ने बिलासपुर को एक नया नाम दिया है। जैसा खोदापुर का नाम मिलने के बाद लोग इस नाम  के अनुरूप अपने आसपास का माहौल देख रहे थे। कुछ इसी तरह इन दिनों भी लोग इस बात को अपने आसपास महसूस कर रहे हैं कि बिलासपुर जमीन माफियाओं की राजधानी बन पाई है या नहीं…..। हाल के दिनों में जिस तरह ज़मीन के झ़गड़े  को लेकर कांग्रेस के गुटों में आपसी लड़ाई की झलक़ लोगों ने सड़क पर देख़ी…….। कुछ ओहदेदारों के ख़िलाफ़ कार्रवाई भी हुई……। और फ़िर जिस तरह अख़बारों मे ज़मीन के ख़ेल की ख़बरों को ज़गह मिल रही है…..। यह सब देख़कर तो लोग पहले ही हिसाब लगाने लगे हैं कि बीजेपी का कहना कितना सही और कितना गलत है…….? यानी ऐसा माहौल बन रहा है कि ज़मीन माफ़ियाओँ की राज़धानी  के रूप में बिलासपुर को नई पहचान देने की बीजेपी की मुह़िम सही रास्ते पर दिख़ाई देने लगी है…..।  

ज़ाहिर सी बात है कि अब इस बात की चर्चा होगी कि  अगर बिलासपुर ज़मीन माफियाओं की राजधानी बन गई है तो इस राजधानी का  राजा कौन है……….? क्योंकि अगर राजधानी है तो राजा भी जरूर होगा……। कांग्रेसियों के बीच की आपसी सिर फ़ुटौव्वल पहले से ही राज़ा और उनके प्यादों के चेहरे की ओर इशारा करती रही है। लेकिन इस सवाल का जवाब तलाश रहे लोगों को शुक्रवार के दिन अगर पूरा जवाब ना भी मिला हो तो जवाब की तरफ इशारा जरूर मिल गया होगा। जब उन्होंने बिलासपुर शहर में एक काफिले का स्वागत देखा होगा। स्वागत और स्वागत का अंदाज देखकर समझा जा सकता था कि यह स्वागत किसी न किसी राजा का स्वागत है…..। जिनके स्वागत में पहले ही शहर के अखबारों में पूरे के पूरे पन्नों के विज्ञापन छपे। राजा का काफिला जिस सड़क से गुजरने वाला था, उन सभी सड़कों के किनारे पर बड़े-बड़े पोस्टर – होर्डिंग और कटआउट लगे थे। राजा का काफिला पहुंचने के समय प्यादों  की टीम फौज- फटाका- बाजा -गाज़ा के साथ पहुंच गई। अरपापार महामाया चौक चंद दरबारी लोगों के कब्जे में आ गया। राजा की अगवानी में बाजा बजा और पटाखे फूटे। चौक चारों तरफ से जाम हो गया। लोगों के दफ्तर जाने का समय था….. अरपा पुल- इंदिरा सेतु से लेकर नेहरू चौक तक पूरी सड़क जाम थी । इस जाम में एक एंबुलेंस भी फंसी हुई थी । जिसे उस ओर अपोलो या किसी दूसरे अस्पताल में जाना था। तड़पते हुए मरीज के लिए सड़क पर जगह नहीं मिल सकी। सबसे बड़ी चिंताजनक बात यह है कि इस दौरान सड़क पर व्यवस्था बनाने के लिए न कोई ट्रैफिक का जवान दिखाई दिया और नहीं पुलिस का कोई इंतजाम ही नजर आया।

जिन लोगों ने भी इस स्वागत सत्कार में हिस्सेदारी निभाई है और पोस्टर बाजी से लेकर विज्ञापन बाजी तक हर जगह खुद को राजा के सबसे करीब बताने की कोशिश की है, ऐसे तमाम लोगों को इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि स्वागत करेन वालों  की इस बेतरतीब़ भीड़ में किसी के भी चेहरे पर मास्क दिखाई नहीं दे रहा था। सोशल डिस्टेंसिंग का हाल कुछ ऐसा था कि लग रहा था, जैसे कोरोना काल में बनी आपस की दूरियों को आज़ की तारीख़ पर ही ज़ड़ से ख़तम करने के लिए ही यह कार्यक्रम तैयार कर मज़मा इकट्ठा किया गया होगा । सोचिए इन तस्वीरों को देखकर उन ग़रीब़ लोगों पर क्या गुज़रेगी, जिन्होने बिना मॉस्क सड़क पर निकलने के बदले सरकार के ख़ज़ाने में ज़ुर्माना भरा हो…….। ऐसे समय में जब लोग तीसरी लहर के पहले तरह-तरह की चिंताओं में डूबे हुए हैं , इस तरह पूरी बेहयाई से  ताकत की नुमाइश और सत्ता के नशे का सड़क पर अनावृत प्रदर्शन कर लोग आखिर क्या दिखाना चाहते हैं…..। जो लोग भी इनके पीछे हैं उन्हें कम से कम कोविड के प्रोटोकॉल का अंदाज तो होना ही चाहिए। हद तो यह है कि बात महामाया चौक से नेहरू चौक़ के बीच ही ख़तम नहीं हो गई।

सड़क पर खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए ताक़त की नुमाइश के बाद छत्तीसगढ़ भवन में सैकड़ों लोगों ने एक साथ ख़ाना भी ख़ाया । लोग तो यह भी कहते रहे कि ऐसी दावत तो कभी सीएम के दौरे के समय भी आज़ तक नहीं हुई । यहां भी किसी के चेहरे पर कोरोना का कोई ख़ौफ़ नज़र नहीं आया। गौर करने वाली बात यह भी है कि  मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कुछ घंटे  पहले ही पड़ोसी राज्यों मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में कोरोना वायरस के डेल्टा प्लस वेरिएंट के बढ़ते मामलों को देखते हुए छत्तीसगढ़ में भी इससे सतर्क रहने कहा है। उन्होंने दोनों राज्यों में इस नए वेरिएंट की मौजूदगी को देखते हुए अंतर्राज्यीय सीमाओं पर आवाजाही पर कड़ी नजर रखने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने नागरिकों से भी अपील की है कि वे कोविड-19 एप्रोप्रिएट बिहेवियर का पालन करते हुए पूरी सावधानी और सतर्कता बरतें। मास्क का उपयोग, हैंड-हाइजिन और सामाजिक व शारीरिक दूरी के नियमों का कड़ाई से पालन करें। और उनकी ही पार्टी के लोगों ने ख़ुद ही सरेआम अपने सीएम के अपील की धज्जियां उड़ा दीं।

जबकि बेवजह जाम में फंसकर अपना समय और रोज रोज महंगा होता जा रहा डीजल -पेट्रोल जलाकर जो लोग परेशान होते रहे …..उन्हें यह सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा कि क्या वाकई बिलासपुर माफियाओं की राजधानी बन रही है और इस राजधानी में राजा का ऐसा शाही स्वागत यह समझने के लिए काफी है कि इस राजधानी का राजा कौन है……। ज़िसकी बारात में शामिल लोग ख़ुले आम वह सब कुछ कर सकते हैं, जो आम आदमी के लिए प्रतिबंधित है। लोगों ने तो खुले आम यह देख़ लिया कि महामाया चौक़ पर स्वागत करने के लिए एक ऐसे शख्स ने भी पैकेज़ पर लड़कों की टीम भेजी थी, जिस शख्स के खिलाफ़ हाल ही में ज़मीन विवाद को लेकर पुलिस ने मामला दर्ज़ किया है। शहर के लोग तो ज़मीन का कारोबार और दलाली करने वालों के चेहरे भी पहचानते हैं, जो विज्ञापनों में छाए रहे और जिन्होने इस आलीशान – शाही स्वागत – सत्कार में ख़ुलकर खर्चा भी किया ।

कांग्रेस भवन की मीटिंग में मंच से यह बात तो ज़रूर कही गई है कि मध्यप्रदेश के ज़मानें में छत्तीसगढ़ की वज़ह से ही कांग्रेस की सरकार बनती थी और अविभाजित बिलासपुर जिले में कांग्रेस का दबदबा था, उसी तरह का माहौल एक बार फ़िर से बनाएंगे।ऐसा बोलने वालों की ज़ुब़ान पर घी-शक्कर का स्वाद आएगा या नहीं…. यह तो आने वाले समय में पता लग सकेगा। फ़िलहाल तो बिलासपुर शहर में पहले से ही लठ्ठ भाँज रहे कांग्रेस के दो ख़ेमों के बीच तीसरे ख़ेमे की बुनियाद की पहली ईंट रख़ते हुए लोगों ने देख़ लिया है। कांग्रेस के कई पुराने ख़ाली कारतूस भी फ़िर से बंदूक में फ़िट होने की छटपटाहट के साथ मैदान-ए-जँग में उतर आए हैं। ज़मीन के ज़मीनी ख़ेल, नए राज़ा की ताज़पोश़ी ,पार्टी में नई ख़ेमेबंदी और माफ़ियाओँ की ज़ुगलबंदी के साथ सत्ता का “नया पॉवर सेंटर” मज़बूती से खड़ा होगा तो फ़िर आने वाले समय में बीजेपी के लिए कोई क़ाम ही नहीं रह ज़ाएगा। बिलासपुर वालों को भूमाफ़ियाओँ की राज़ध़ानी की पहचान कराना बीजेपी का काम था…… और जिन्हे इस पहचान को साबित क़रना था उन्होने भी अपना क़ाम कर दिया तो फ़िर काम ख़तम…….।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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