बिलासपुर–रायपुर में आयोजित आदिवासी महोत्सव से लौटे शिवतराई के तीरदांजों में भंयकर आक्रोश है। तीरदाजों ने बताया कि ऐसे आयोजनों में अपमानित होने से अच्छा तीरदांजी छोड़ना बेहतर होगा। आदिवासी धनुर्धरों ने बताया कि महोत्सव में आदिवासी खेल प्रतिभाओं का कदम कदम पर अपमान किया गया। इसकी कल्पना हमने सपने में भी नहीं की थी। महोत्सव में ना तो खाने की व्यवस्था ठीक थी और ना ही ठहरने की…। सर्टिफिकेट की कीमत एक पन्ने से ज्यादा कुछ नहीं है।
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रायपुर में आयोजित आदिवासी महोत्सव से लौटे शिवतराई के धनुर्धरोंं में आक्रोश है। आदिवासी धनुर्धरों ने बताया कि आयोजन के दौरान कमोबेश सभी तीरंदाजों को खाली पेट रहना पड़ा। कार्यक्रम के बाद घर लौटने के लिए किराया भी नहीं दिया गया। सभी को निजी खर्चे पर घर लौटने को मजबूर होना पड़ा। शिवतराई लौटे नाराज धनुर्धरों ने बताया कि सम्मान में मेडल की जगह मोमेन्टम थमाया गया। जबकि तीरंदाजों को गोल्ड,सिल्वर और ब्रांच मेडल देने की परंपरा रही है। लेकिन आयोजकों ने पचास पचास रूपए का मोमेन्टम थमा दिया। ऐसे कार्यक्रमों में अपमानित होने से अच्छा है कि हिस्सा लेना छोड़ दें।
आर्चरी कोच इतवारी के अनुसार आदिवासी महोत्सव में कदम कदम पर खेल प्रतिभाओं को अपमानित किया गया। कार्यक्रम में शामिल होने के बाद आदिवासी धनुर्धर अपने आपको ठगा महसूस कर रहे हैं। महोत्सव में आदिवासी खेल प्रतिभाओं का सम्मान से कहीं ज्यादा अपमान हुआ है। यह जानते हुए भी कि महोत्सव में शामिल सभी धनुर्धर राष्ट्रीय प्रतियोगिता में प्रदेश का परचम फहरा चुके हैं। बावजूद इसके प्रमाण पत्र में ना तो खेल का जिक्र है और ना ही प्रतिय़ोगिता में हासिल स्थान का। ऐसी स्थिति में प्रमाण पत्र की वैद्यता शून्य है।
नाचा पार्टी को एक लाख..खिलाड़ियों के लिए हाथ तंग
सरकार ने नाचा पार्टियों को एक-एक लाख रूपए नगद दिये। लेकिन किसी भी तीरदांज को किराए के नाम पर एक धेला नहीं दिया गया। लाखों रूपए स्वागत और साज सज्जा पर खर्च हुए। लेकिन जिनके लिए कार्यक्रम हुआ वहीं लोग खाना,पानी और सम्मान के लिए तरसते रहे।