“कका अभी ज़िंदा हे..”स्लोगन को मिली नई ख़ुराक…छत्तीसगढ़िया बोरे-बासी की ताक़त से देश की सबसे बड़ी सियासी ताक़त को चुनौती.. !

Shri Mi
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(रुद्र अवस्थी)मजदूर दिवस पर अगर बोरे – बासी सोशल मीडिया में ट्रेंड कर रहा हो ……फेसबुक और व्हाट्सएप पर बोरे – बासी खाते नेताओं, आईएएस- आईपीएस अफसरों और आम लोगों की तस्वीरें छाई हुई हो तो यह ख़बर छत्तीसगढ़ ही नहीं देश के दूसरे हिस्सों के लिए भी बड़ी बन ही जाती है। लेकिन सोशल मीडिया पर ट्रेड होने वाले हैज़टैग की ख़ासियत यह भी है कि यह सिर्फ़ एक दिन के लिए होता है और आम तौर पर भुला दिया जाता है। मगर ऐसा नहीं लगता कि छत्तीसगढ़िया बोरे-बासी का स्वाद एक दिन में भुला दिया ज़ाएगा। चूँकि बोरे – बासी छत्तीसगढ़िया लोगों के किसी फ़ेस्टीवल का व्यंजन नहीं है। बल्कि रोज़ के ख़ानपान का हिस्सा है। लिहाज़ा इसके स्वाद का असर आम लोगों से लेकर सियासत के मैदान तक़ आगे भी बहुत दिनों तक बना रहे तो हैरत नहीं होगी ।छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जिस तरह बोरे – बासी खाने का आह्वान किया है, उसके कई कोने दिखाई देते हैं।

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सीधे तौर पर तो यह आम लोगों के शॉफ्ट कॉर्नर को समझकर उसके हिसाब से कही हुई बात नजर आती है।जैसे उन्होने लोगों के शॉफ़्ट कॉर्नर को समझकर नए जिले का नारा दिया और हाल ही में खैरागढ़ का उपचुनाव कांग्रेस ने एकतरफ़ा जीत लिया। कुछ इसी तरह बोरे-बासी का असर अव्वल तो छत्तीसगढ़ के आम लोगों पर हुआ है। क्योंकि घर – घर में बोरे- बासी लोगों की जिंदगी-लोकगीत-जीवन शैली का हिस्सा रहा है। आज के दौर में भले ही धीरे – धीरे इसे भुलाया जा रहा हो । लेकिन सीएम के आह्वान पर जिस तरह लोगों ने इसे हाथों हाथ लिया है. उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि लोग इसे भी छत्तीसगढ़िया कल्चर को फिर से स्थापित करने और उसे संवारने के मामले में भूपेश बघेल के एक कदम के रूप में देख़ हे हैं। जिस तरह सीएम इससे पहले गेंड़ी, भौंरा, हरेली, तीजा – पोरा जैसे तीज त्योहारों से जुड़कर अपने आप को साबित करते रहे हैं , उस कड़ी में बोरे बासी का नाम भी जुड़ गया है ।

सीधे तौर पर तो इसमें कोई सियासत नजर नहीं आती और छत्तीसगढ़िया कल्चर के हिसाब से इसे सकारात्मक भी लिया जा सकता है। लेकिन क्योंकि आज के दौर में सियासत से जुड़े हुए लोग सियासत के नजरिए से ही कोई बात रखते हैं। इस कोने से देखा जाए तो बोरे – बासी के सियासी मायने भी निकल सकते हैं । सियासत के लिहाज से इसका असर तीन अलग-अलग हिस्सों में दिखाई देता है। अव्वल तो यह है कि छत्तीसगढ़ के आम लोगों में भूपेश बघेल ने जो छत्तीसगढ़िया मुख्यमंत्री की पहचान बनाई है, उसमें और भी निखार आएगा। जाहिर सी बात है कि इससे छत्तीसगढ़ के आम लोगों के बीच भूपेश बघेल और कांग्रेस की पैठ और मजबूत होने की उम्मीद की जा सकती है ।

दूसरी तरफ देश की मौजूदा राजनीति में धीरे धीरे हाशिए की ओर पर पहुंच रही कांग्रेस पार्टी को छत्तीसगढ़ प्रदेश पर अधिक भरोसा है। जिस तरह छत्तीसगढ़ में “भूपेश है- तो भरोसा है” का नारा कांग्रेस लगा रही है, उसी तरह राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी भरोसेमंद नजरों से छत्तीसगढ़ की ओर देख रही है। ऐसे में छत्तीसगढ़ में अपनी सरकार चला रहे भूपेश बघेल का कोई आह्वान मीडिया में ट्रेंड करता है और आम लोग उससे सीधे-सीधे जुड़ते हैं तो लगता है कि इससे भूपेश बघेल पर उनकी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा भी और मजबूत होगा ही । और भूपेश बघेल यह साबित करने में भी कामयाब दिखाई देते हैं कि पार्टी हाईकमान ने उन पर जो भरोसा जताया है उसे पूरा करने में कामयाब भी हो रहे हैं।

इस मामले का तीसरा एंगल यह भी देखा जा सकता है कि बोरे बासी जैसी सहज- सरल- सुलभ चीज को सामने कर भूपेश बघेल अपनी छत्तीसगढ़िया स्टाइल में मोदी और बीजेपी के स्टाइल की राजनीति को नए ढंग का जवाब भी दे रहे हैं। भूपेश बघेल ने वैसे भी पिछले कुछ समय के दौरान छत्तीसगढ़ में जो माहौल बनाया है, उससे बीजेपी के कोर मुद्दे उसके हाथ से फ़िसलते दिखाई दे रहे हैं। इसकी वजह से बीजेपी की चिंता भी बढ़ गई है। जिस तरह कुछ समय पहले राष्ट्रीय राजनीति में सरदार वल्लभभाई पटेल और नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे कांग्रेस के पुराने नेताओं को हाईजैक करने के नाम पर बीजेपी की रणनीति चर्चा में रही है।उसके ठीक उलट छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने राम ,गाय, रामायण जैसे भाजपा के कोर मुद्दों को हथिया लिया है। छत्तीसगढ़ में राम वन गमन पथ, कौशल्या माता मंदिर निर्माण और छत्तीसगढ़ को भगवान राम के ननिहाल के रूप में चर्चित करने के बाद प्रदेश में गोबर खरीदी के जरिए गौ सेवा की नईं शुरुआत कर दी थी…। हाल ही में गांवों में होने वाले नवधा रामायण से जुड़ते हुए गायन प्रतियोगिता का आयोजन कर भूपेश बघेल ने बीजेपी के हाथ से इन मुद्दों को छीन लिया है और बीजेपी नेताओं की हालत ऐसी है कि वे इस बारे में कुछ बोल भी नहीं पा रहे हैं। अब भूपेश बघेल ने बोरे – बासी को सामने लाकर एक बार फिर उन्हें लाजवाब कर दिया है।

देश में चल रही बीजेपी के राजनीति की मौजूदा स्टाइल का जवाब बीजेपी के तरीके से देने की वजह से कई बार कांग्रेस नेताओं को असहज स्थिति में देखा जाता है। लेकिन बोरे – बासी जैसी सहज – सरल और रोजमर्रा के खानपान में इस्तेमाल होने वाली चीज को सामने कर भूपेश बघेल ने बीजेपी स्टाइल की राजनीति को एक बड़ी चुनौती भी देने की कोशिश की है। वैसे भी बोरे – बासी धर्म –जाति, गरीब-अमीर से ऊपर , सबके लिए एक बराबर खानपान का हिस्सा है और खाने की बात आती है तो रेसिपी पर भी चर्चा होती है। बोरे बासी एक ऐसी रेसिपी है, जिसमें सिर्फ चावल पकाना होता है और उसे पानी में डाल कर कुछ समय तक रखना होता है। फ़िर नमक – चटनी के साथ खाया जाता है। रेसिपी इतनी सरल है कि इसमें बनाने जैसा कुछ नहीं है और इसे तैयार करने जैसा भी कुछ नहीं है। इस तरह भूपेश बघेल ने ऐसी सरल रेसिपी से बीजेपी के लच्छेदार व्यंजनों का जवाब दिया है। जिसमें इतिहास, धर्म ,जाति जैसे मसालों को मिलाने और नफ़रत का छौंका लगाने की भी ज़रूरत नहीं पड़ती। एकदम सीधा-सरल , पकाओ-डुबाओ और खाओ… । इस तरह भूपेश बघेल ने बोरे बासी के जरिए राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति करने वालों को भी एक आइडिया / नुस्खा दे दिया है कि बीजेपी आम लोगों के सामने देशभर में जो तला – भुना पकवान परोस रही है , उसके मुकाबले बोरे – बासी जैसी बिना छौंक – बघार वाली रेसिपी आम लोगों को पसंद आ सकती है। लिहाजा इस तरफ भी सोचा जाना चाहिए ।

भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ की कमान संभालने के बाद से कई बार अपनी छत्तीसगढ़िया पहचान को साबित भी किया है। हरेली त्यौहार पर छुट्टी, गांव-गांव में आयोजन, खुद गेंड़ी पर चढ़कर और हथेली पर भंवरा चलाकर उन्होंने इसमें अपनी सक्रिय हिस्सेदारी भी निभाई है। “कका अभी ज़िंदा हे..”. इस नैरेटिव को अब़ बोरे- बासी से नई ख़ुराक भी मिल गई है। ऐसे मौक़े को हथियाने में उस्ताद भूपेश बघेल के इस दाँव का कोई काट बीजेपी फ़िलहाल तलाश नहीं कर सकी है। वैसे भी छत्तीसगढ़ में 2018 के चुनाव नतीजों से इस बात का सबूत मिलता है कि प्रदेश में धान खरीदी को लेकर कांग्रेस की ओर से किया गया वादा ही 15 साल की बीजेपी सरकार को उखाड़ फेंकने में कांग्रेस के लिए सबसे मददगार साबित हुआ था। भूपेश बघेल ने भी सीएम की कुर्सी संभालते ही सबसे पहले किसानों की कर्ज माफी का वादा पूरा किया और उसके बाद से तमाम मुद्दों पर किसानों के नज़दीक़ नज़र आते रहे हैं।स्वामी आत्मानंद स्कूल से लेकर मोबाइल अस्पताल तक ऐसी कई योजनाएं हैं, जिनके ज़रिए आम लोगों के हितवा होले का दावा भूपेश सरकार करती है।और लोगों को भरोसा दिलाने की कोशिश करती है कि एक छत्तीसगढ़िया मुख्यमंत्री प्रदेश चला रहा है ।

अब उन्होंने छत्तीसगढ़ के आम लोगों की रेसिपी बोरे – बासी को आगे किया है । छत्तीसगढ़ के मजदूर / किसान बोरे – बासी की ताकत से ही अपनी मेहनतकश पहचान बनाते रहे हैं और देश के दूसरे हिस्सों में जाकर भी हर तरह के हालात का मुकाबला करते रहे हैं। भूपेश बघेल ने इस समय देश की सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत को आम छत्तीसगढ़िया की ताक़त के रूप में मशहूर और सभी तरह के पौष्टिक तत्वों से भरपूर उसी बोरे – बासी के जरिए चुनौती देने की कोशिश की है। जो मजदूर दिवस के दिन तो सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर गया। लेकिन यह कामयाबी के मुकाम तक तभी पहुंच सकेगा ,जब यह ट्रेंड लगातार बरकरार रहे….।

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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