(गिरिजेय)राज्यसभा के लिए छत्तीसगढ़ से दो सदस्य चुनक़र ज़ा रहे हैं। दोनों सदस्य कांग्रेस से होंगे। पार्टी ने दोनों नाम तय कर दिए हैं। उम्मीदवारों के चयन में वही हुआ जैसी अटकलें पहले से लगाई जा रही थीं । अलबत्ता अटकलों से कहीं आगे जाकर फैसला हुआ । उम्मीद थी कि कम-से –कम एक उम्मीदवार तो छत्तीसगढ़ से होगा । मगर दोनों ही उम्मीदवार राष्ट्रीय स्तर से फ़ाइनल कर दिए गए । आज़कल रिवाज़ हो गया है कि हर एक चुनाव से पहले हिसाब लगाया जाता है कि कोई पार्टी किस जाति – समुदाय के व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बना रही है। फ़िर राज्यसभा के चुनाव में इस बात को लेकर भी अटकलें थीं कि उच्च सदन में राज्य के प्रतिनिधित्व के लिए छत्तीसगढ़ के किसी नेता को मौक़ा मिल पाएगा या नहीं..?
सवाल यह भी थ़ा कि बीजेपी के रामविचार नेताम और कांग्रेस की श्रीमती छाया वर्मा का कार्यकाल पूरा हो रहा है। दोनों ही नेता छत्तीसगढ़िया हैं तो क्या उनकी जगह पर छत्तीसगढ़िया को ही ज़गह मिल पाएगी ..? या कम से कम एक सीट पर तो छत्तीसगढ़िया चेहरा होगा। अब इस सवाल का भी जवाब आ चुक़ा है और तय हो गया है कि दो में से एक सीट पर भी किसी छत्तीसगढ़िया को नुमाइंदगी का मौक़ा नहीं मिल रहा है। ऐसे में छत्तीसगढ़िया के मुद्दे पर कांग्रेस को भी सवालों के घेरे में आना पड़ सकता है और सूबे के प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी को यह सवाल करने का मौक़ा मिल सकता है कि कका तो छत्तीसगढ़िया है …. लेकिन उनकी कांग्रेस पार्टी का यह रुख़ आख़िर किस ओर इशारा कर रहा है।
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छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरक़ार बनने के बाद से ही छत्तीसगढ़िया संस्कृति- छत्तीसगढ़िया अँदाज़ को लेकर एक माहौल बना है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि सीएम भूपेश बघेल ने एक छत्तीसगढ़िया मुख़्यमंत्री के रूप में अपनी ख़ास पहचान बनाई है। “कका अभी ज़िंदा हे रे…” का स्लोगन आम लोगों के बीच काफ़ी मशहूर भी हुआ है। छत्तीसगढ़ के तीज़ -त्यौहार से लेकर और भी कई मौक़ों पर भूपेश बघेल की यह पहचान गहरी होती रही है ।सूबे की सियासत पर भी इसका असर नज़र आता है और आम लोगों के बीच भी इसकी चर्चा है। लोग पिछली सरकारों के कार्यक़ाल को याद करते हैं और मौज़ूदा सरकार के तौर तरीकों से उसकी तुलना भी करते हैं। ज़ाहिर सी बात है कि भूपेश बघेल का नंबर इस नाम पर भी बढ़ा है।
आम लोगों की ज़ुब़ान से लेकर सियासत के गलियारों तक इसकी धमक़ होने के बाद अब इसका इस्तेमाल पैमाने की तरह भी होने लगा है। यही वज़ह है कि इस बार जब राज्यसभा की दो सीटों के लिए उम्मीदवारों के चयन की बात आई, तब भी छत्तीसगढ़िया के इस पैमाने को रख़कर नाप-ज़ोख़ का दौऱ शुरू हो गया था ।
विधानसभा में सदस्य संख्या के हिसाब से राज्यसभा की दोनों ही सीटों पर कांग्रेस की जीत पक्की मानी जा रही है। ऐसे में लोग उम्मीदवार चयन के समय कांग्रेस की ओर इस नज़र से भी देख रहे थे कि छत्तीसगढ़िया फ़ार्मूले का कितना पालन हो पाएगा..? कांग्रेस में हर बार की तरह इस बार भी राज्यसभा के लिए दावेदारों की लिस्ट छोटी नहीं थी । जिसमें सामान्य से लेकर ओबीसी –एसटी-एससी तक कई चेहरे सामने आए। इस बीच यह बात भी सामने आती रही कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के बड़े नेताओं को राज़्यसभा में भेजने के लिए भी दूसरे राज्यों में उम्मीदे कम हैं ।
लिहाज़ा उन्हे छत्तीसगढ़ से भेजने पर भी मंथन हो सकता है। इस कड़ी में भी प्रियंका गांधी से लेकर कई नेताओं के नाम सामने आते रहे। आख़िर कांग्रेस ने नामांकन दाख़िले की आख़िरी तारीख़ से ठीक पहले शनिवार की रात उम्मीदवारों की फ़ेहरिस्त पर मुहर लगा दी । जिसक़े मुताब़िक पार्टी आलाकमान की पसंद से राजीव शुक्ला और श्रीमती रंजीत रंजन को छत्तीसगढ़ से राज्यसभा में भेज़ा ज़ा रहा है। दोनों उम्मीदवार छत्तीसगढ़ से बाहर के हैं।
कांग्रेस के इस फ़ैसले के बाद बीज़ेपी को कांग्रेस के छत्तीसगढ़िया प्रेम पर सवाल उठाने का मौक़ा एक बार फिर से मिल गया है। लोगों को याद होगा कि रायपुर की एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी के कुलपति के चयन के समय यह मुद्दा उठा था कि छत्तीसगढ़िया कुलपति होना चाहिए। तब इस मामले में बीजेपी ने कहा था कि कुलपति नियुक्ति को विवादास्पद बनाने से यह साफ़ हो गया कि कांग्रेसी समाज विशेष को लाभ पहुंचाने या दस जनपथ के चाटुकारों को छत्तीसगढ़ियों का हक़ छीन कर दे देने के लिए ऐसे प्रपंच रचते हैं। बीजेपी की ओर से यह भी कहा गया था कि के. टी. एस. तुलसी जैसे व्यक्ति को जिन्हें छग से कोई लेना-देना नहीं है, उन्हें यहां से राज्यसभा भेजकर बघेल ने न केवल छत्तीसगढ़ के हक़ पर बल्कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के हितों पर भी कुठाराघात किया है। कांग्रेस आगे से केटीएस तुलसी जैसी ग़लती न दुहराये। कांग्रेस सांसद तुलसी से इस्तीफ़ा दिलवाकर और उस सीट से किसी स्थानीय कार्यकर्ता को अवसर देकर कांग्रेस को अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहिए।
गौरतलब़ है कि दो साल पहले राज्यसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ से फूलो देवी नेताम और हाइकमान की पसंद से के.टी.एस. तुलसी को चुनकर भेजा था । ताज़ा तस्वीर बताती है कि छत्तीसगढ़ के मौज़ूदा दो राज्य सभा सदस्यों का कार्यकाल पूरा होने और नए सदस्यों का चुनाव हो जाने के बाद सूबे से कांग्रेस के चार राज्यसभा सांसदों में सिर्फ़ फूलो देवी नेताम ही ऐसी सांसद होंगी जो छत्तीसगढ़ से हैं। एक बार फ़िर हाइकमान की पसंद से गैर छत्तीसगढ़िया को राज्यसभा भेजे जाने के बाद सूब़े के आम लोगों तक बीजेपी यह सवाल लेकर जाने की तैयारी कर सकती है कि .. “ कका तो छत्तीसगढ़िया हे…. अऊ ओख़र कांग्रेस पार्टी गैर छत्तीसगढ़िया हे का गा…?