AYODHYA VERDICT BREAKING-5 एकड़ वैकल्पिक जमीन सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को दी जानी चाहिए,भीतरी और बाहरी चबूतरा हिंदू पक्ष को दिया जाए

Shri Mi
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उच्चतम न्यायालय ने पांच सौ साल से अधिक पुराने अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद का आज पटाक्षेप करते हुए विवादित भूमि श्रीराम जन्मभूमि न्यास को सौंपने और सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के निर्माण के लिए अयोध्या में ही उचित स्थान पर पांच एकड़ भूमि देने का निर्णय सुनाया।प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि विवादित भूमि श्रीराम जन्मभूमि न्यास को दी जायेगी तथा सुन्नी वक्फ को बोर्ड अयोध्या में ही पांच एकड़ वैकल्पिक जमीन उपलब्ध करायी जाये। सीजीवालडॉटकॉम के व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करे

गर्भगृह और मंदिर परिसर का बाहरी इलाका राम जन्मभूमि न्यास को सौंपा जाये।
पीठ ने कहा है कि विवादित स्थल पर रामलला के जन्म के पर्याप्त साक्ष्य हैं और अयोध्या में भगवान राम का जन्म हिन्दुओं की आस्था का मामला है और इस पर कोई विवाद नहीं है।

1859: ब्रिटिश शासकों ने विवादित स्थल पर बाड़ लगा दी थी और परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिन्दुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दे दी।
1885: निर्मोही अखाड़े के महंत रघुबर दास ने राम चबूतरे पर मंदिर निर्माण की अनुमति के लिए मुक़दमा किया था और अदालत से मांग की थी कि चबूतरे पर मंदिर बनाने की इजाजत दी जाये। यह मांग खारिज हो गई थी।
1946: मस्जिद शियाओं की या सुन्नियों की, इसे लेकर विवाद उठा। बाद में यह फैसला हुआ कि बाबर सुन्नी था, इसलिए मस्जिद सुन्नियों की है।
1949: जुलाई में प्रदेश सरकार ने मस्जिद के बाहर राम चबूतरे पर राम मंदिर बनाने की कवायद शुरू की, लेकिन यह भी नाकाम रही। 22-23 दिसम्बर 1949 की मध्य रात्रि को मस्जिद में राम सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां रख दी गईं। उसके बाद 29 दिसंबर को यह विवादित संपत्ति कुर्क कर ली गयी और वहां रिसीवर बिठा दिया गया।
1950: गोपाल दास विशारत ने 16 जनवरी को अदालत का दरवाजा खटखटाया। उनकी दलील थी कि मूर्तियां वहां से न हटें और पूजा बेरोकटोक हो। निचली अदालत ने कहा था कि मूर्तियां नहीं हटेंगी, लेकिन ताला बंद रहेगा और पूजा सिर्फ पुजारी करेगा। जनता बाहर से दर्शन करेगी।
1959: निर्मोही अखाड़ा अदालत पहुंचा और सेवादार के नाते विवादित जमीन पर अपना दावा पेश किया।
1961: सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने अदालत में मस्जिद पर दावा पेश किया।
1986: एक फरवरी को फैजाबाद के जिला जज ने जन्मभूमि का ताला खुलवाकर पूजा की अनुमति दे दी।
1986: कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बनाने का फैसला हुआ।
1989: विश्व हिन्दू परिषद नेता देवकीनंदन अग्रवाल ने रामलला की तरफ से मंदिर के दावे का मुकदमा किया।
1989: नवंबर में मस्जिद से थोड़ी दूर पर राम मंदिर का शिलान्यास किया गया।
25 सितंबर 1990: भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा शुरू की। इससे अयोध्या में राम मंदिर बनवाने को लेकर एक जुनून पैदा किया गया, जिसके परिणाम स्वरूप गुजरात, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में दंगे भड़क गये। कई इलाके कर्फ्यू की चपेट में आ गए, लेकिन श्री आडवाणी को 23 अक्टूबर को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने गिरफ्तार करवा दिया।
30 अक्टूबर 1990: अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन के लिए पहली कारसेवा हुई थी। कारसेवकों ने मस्जिद पर चढ़कर झंडा फहराया था, इसके बाद दंगे भड़क गये।
1991: जून में आम चुनाव हुए और उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बन गयी।
1992: 30-31 अक्टूबर को धर्म संसद में कारसेवा की घोषणा हुई।
1992: नवंबर में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अदालत में मस्जिद की हिफाजत करने का हलफनामा दिया।
06 दिसंबर 1992: लाखों कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद ढहा दी। कारसेवक 11 बजकर 50 मिनट पर मस्जिद के गुम्बद पर चढ़े। करीब 4.30 बजे मस्जिद का तीसरा गुम्बद भी गिर गया जिसकी वजह से देश भर में हिंदू और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे।
जनवरी 2002: अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अयोध्या समिति का गठन किया। वरिष्ठ अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को हिन्दू और मुसलमान नेताओं के साथ बातचीत के लिए नियुक्त किया गया। विश्व हिन्दू परिषद ने 15 मार्च से राम मंदिर निर्माण कार्य शुरू करने की घोषणा कर दी।
2003: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2003 में झगड़े वाली जगह पर खुदाई करवाई ताकि पता चल सके कि क्या वहां पर कोई राम मंदिर था। जून महीने तक खुदाई चलने के बाद आई रिपोर्ट में कहा गया है कि उसमें मंदिर से मिलते-जुलते अवशेष मिले हैं।
मई 2003: सीबीआई ने 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराये जाने के मामले में उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी सहित आठ लोगों के खिलाफ पूरक आरोपपत्र दाखिल किए।
अप्रैल 2004: श्री आडवाणी ने अयोध्या में अस्थायी राममंदिर में पूजा की और कहा कि मंदिर का निर्माण जरूर किया जाएगा।
जनवरी 2005: लालकृष्ण आडवाणी को अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस में उनकी कथित भूमिका के मामले में अदालत में तलब किया गया। इसी साल अयोध्या के राम जन्मभूमि परिसर में आतंकी हमले हुए, जिसमें पांचों आतंकियों सहित छह लोग मारे गए।
20 अप्रैल 2006: कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने लिब्रहान आयोग के समक्ष लिखित बयान में आरोप लगाया कि बाबरी मस्जिद को ढहाया जाना सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा था और इसमें भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बजरंग दल और शिवसेना की मिलीभगत थी। तत्कालीन सरकार ने अयोध्या में विवादित स्थल पर बने अस्थायी राम मंदिर की सुरक्षा के लिए बुलेटप्रूफ कांच का घेरा बनाए जाने का प्रस्ताव किया। इस प्रस्ताव का मुस्लिम समुदाय ने यह कहते हुए विरोध किया कि ऐसा करना अदालत के उस आदेश के खिलाफ है जिसमें यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिये गये थे।
30 जून 2009: बाबरी मस्जिद ढहाये जाने के मामले की जांच के लिए गठित लिब्रहान आयोग ने 17 वर्षों के बाद अपनी रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी।
24 नवम्बर, 2009: लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में पेश। आयोग ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मीडिया को दोषी ठहराया तथा पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव को क्लीन चिट दी।
26 जुलाई, 2010: रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर सुनवाई पूरी हुई।
30 सितंबर 2010: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अयोध्या में विवादित जमीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बांटने का फैसला किया, जिसके खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 विशेष अनुमति याचिकाएं दायर की गयीं।
09 मई 2011: उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के फैसले पर रोक लगाई।
21 मार्च 2017 : राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता की पेशकश की । तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने कहा था कि अगर दोनों पक्ष राजी हो तो वह कोर्ट के बाहर मध्यस्थता करने को तैयार हैं।
11 अगस्त 2017: उच्चतम न्यायालय में मामले की सुनवाई शुरू।
आठ फरवरी 2018 : मुख्य पक्षकारों को पहले सुने जाने का फैसला।
27 सितंबर, 2018: तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 2:1 के बहुमत से 1994 के एक फैसले में की गयी टिप्पणी पांच न्यायाधीशों की पीठ के पास नये सिरे से विचार के लिए भेजने से इन्कार कर दिया था। इस मामले में विचार का मुद्दा था कि ‘नमाज के लिए मस्जिद अनिवार्य या नहीं’ इसे संविधान पीठ के पास भेजा जाये या नहीं।
26 फरवरी 2019: उच्चतम न्यायालय ने मामले में मध्यस्थता के जरिये विवाद सुलझाने की सलाह दी और कहा कि अगर आपसी सुलह की एक फीसदी भी संभावना है तो मध्यस्थता होनी चाहिए।
06 मार्च 2019: मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता के लिए तैयार हुआ। हिंदू महासभा और रामलला पक्ष ने आपत्ति दर्ज करवाई।
08 मार्च 2019: उच्चतम न्यायालय ने अपने सेवानिवृत्त न्यायाधीश एफएम आई कलीफुल्ला की अध्यक्षता में मध्यस्थता समिति गठित की, जिसमें आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और मध्यस्थता मामलों के जाने माने वकील श्रीराम पंचू भी सदस्य थे।
02 अगस्त 2019: मध्यस्थता समिति ने रिपोर्ट सौंपी और कहा कि मध्यस्थता बेनतीजा रही है। इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने छह अगस्त से रोजमर्रा के आधार पर मामले की सुनवाई का निर्णय लिया।
06 अगस्त 2019: उच्चतम न्यायालय में अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई शुरू हुई।
16 अक्टूबर 2019: चालीस दिनों तक चली सुनवाई के बाद उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
09 नवम्बर 2019: फैसले का ऐतिहासिक पल आया।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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