जंगल-पहाड़ काटकर क्रेशर से तोड़ी जा रही गिट्टी..मिलीभगत से चल रहा खुला खेल

Shri Mi
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तखतपुर(दिलीप तोलानी)संरक्षित क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों को दोहन धडल्ले से किया जा रहा है इससे एक ओर जहां प्रकृति प्रदूषित हो रही है वहीं दूसरी ओर यहां पर रहने वाले ग्रामीणों को भारी मुसिबतों का सामना करना पड रहा है इन दोहन करने वाले के भय के कारण वे लोग कुछ भी शिकायत करने से डर रहे है। और यह सब अधिकारीयों की मिली भगत से चल रहा है।सरकार ने पर्यावरण का संरक्षित सुरक्षित और प्रदूषण मुक्त रखने के लिए तमाम उपाय कर रही है लेकिन ये सभी नियम कायदे और उपाए क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर सुरम्य पहाडी क्षेत्रों से आच्छादित बांसाझाल और तेंदुआ के जंगलों में शायद लागू नही है तभी धडल्ले से इन क्षेत्रों में पहाडों एवं जंगलों को काटकर दोहन किया जा रहा है इन क्षेत्रों में क्रेशर मशीन लगाकर पत्थर तोडकर निर्वाध रूप से गिट्टी निकालकर धडल्ले से परिवहन कर जहां स्वयं लाभ अर्जित कर रहे है वहीं शासन को राजस्व की हानि तो हो रही है प्रकृतिक का भी दोहन किया जा रहा है। इन क्षेत्र के तेंदुआ बांसाझाल क्षेत्र में चार हेक्टेयर से भी अधिक पहाडी और वनीय क्षेत्र में काटकर गिट्टी बनाकर बेचा जा रहा है।

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यह संरक्षित क्षेत्र होने के बावजूद उद्योग बना और कुछ लोगों के कमाई का जरिया बन गया है। कहने को चार हेक्टेयर पर यह उद्योग है लेकिन इसका प्रभाव आसपास के सैकडों हेक्टेयर पर पड रहा है। चल रहे इस खनन के चलते वन संरक्षित एवं जनजाति संरक्षित इस क्षेत्र में निवास के साथ साथ खेती एवं बागवानी सभी प्रभावित है निवासी संतु लाल गोंड का कहना है कि क्रेशर मशीन के प्रभाव एवं पहाडों को तोडने के लिए इस्तमाल करने वाले बारूद से जो आवाज और कम्पन्न होता है इससे सभी भयभीत होते है कम्पन्न इतनी जोर से होती है

इसके कारण यहां से इंसान एवं वन्यजीव दूर हो गए है इस क्षेत्र में बडी गाडीयों के परिवहन से कोई आसपास आना नही चाहता। खनिज उत्खनन का क्षेत्र बेहद वृहद एवं रसूखदारों के प्रभाव क्षेत्र का होने के कारण आसपास के लोग कुछ कह नही पाते लेकिन अपनी व्यथा आपस में जरूर कहते है जानकार सूत्रों के अनुसार इस क्षेत्र के प्रभावशाली लोगों ने अपने प्रभाव से क्षेत्र में खनिज उत्खनन के नियमों को अपने अनुसार तैयार करा लिए थे जो परंतु वर्तमान समय में लोगों के लिए परेशानी बन गया है।

कभी सुरम्य पहाडीयों एवं वनों से घिरा यह क्षेत्र इन दिनों विरान एवं उजाड नजर आता है। पहाड मैदान एवं गढ्ढों में बदल गए है क्षेत्र के नागरिकों का कहना है कि समय एवं सरकार बदलने के साथ आवश्यकता है तो संरक्षित क्षेत्र बचाने की एवं बचे हुए पहाड वन एवं उससे जुडे जीव जन्तुओं को बचाने की। शासन से अपील की है कि जिसने भी जिस तरके से इस क्षेत्र के विनाश का अधिकार प्राप्त किया है उसे निरस्त कर इस क्षेत्र को फिर से प्राकृतिक रूप से संरक्षित किया जाए।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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