“चप्पल” को हैडिंग बनाकर… ख़बर लिखने की नौबत क्यों..? क्या मुंगेली की नेतृत्व शून्यता की वज़ह से बदल रहे हालात…?

Chief Editor
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मुंगेली जिला पंचायत की महिला सभापति और सीईओ के बीच विवाद की खबर इन दिनों सुर्खियों में है। सीधे तौर पर इस घटना के बाद जिला पंचायत की महिला सभापति को ट्रोल कर दिया गया और माहौल बना दिया गया है कि जनप्रतिनिधियों के इस तरह के रवैये की वजह से सरकारी सिस्टम को काम करने में दिक्कत हो रही है। लेकिन इसके साथ ही कई सवाल भी तैर रहे हैं। जिसमें एक अहम सवाल यह भी है कि लगातार अनदेखा किए जाने के बावजूद क्या एक महिला जनप्रतिनिधि के सर पर ही सब कुछ थोपा जा सकता है…? एक सवाल यह भी है कि क्या  मुंगेली जिले में कांग्रेस की नेतृत्व हीनता की वजह से तो इस तरह के हालात नहीं बन रहे हैं….?

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जिला पंचायत की महिला सभापति और सीईओ के बीच जो कुछ विवाद हुआ है उस पर कमेंट की दरकार नहीं है। सिस्टम अपना काम कर रहा है…। ख़बर है कि रिपोर्ट पर पुलिस ने मामला दर्ज़ कर लिया है।जहां तक  आरोप-प्रत्यारोप की बात है …तो आज के दौर में यह भी व्यवस्था का एक हिस्सा मात्र है। लेकिन अगर तरह-तरह की चर्चाओं के बीच मुंगेली जिले में बन रहे हालात पर गौर करें तो नौकरशाही परस्त मीडिया में प्रसारित हो रही बातों के अलावा और भी कई ऐसी बातों पर नजर पड़ सकती है,  जिस पर सोचने- समझने की दरक़ार जरूर महसूस की ज़ा रही है। मसलन यह मुद्दा एक अनोख़े अंदाज़ में सियासत से भी जुड़ा हुआ नज़र आता है। हालात यह भी संकेत कर रहे हैं कि सत्ता और विपक्ष की सियासत की बजाय इसे सत्ता और नौकरशाही के बीच चल रही खींचतान का नमूना माना जा सकता है। जिला पंचायत लोकतांत्रिक व्यवस्था की ऐसी संस्था है , जो लोकतंत्र की बुनियाद य़ानी पंचायत के पंच- सरपंच- जनपद सदस्य- जनपद अध्यक्ष और जिला पंचायत सदस्य -अध्यक्ष से जुड़ी सबसे बड़ी संस्था है। पंचायत राज के इस सिस्टम में जिला स्तर से ऊपर और कोई बड़ी संस्था नहीं होती। सीधे और सरल तरीके से कहा जाए तो जिला पंचायत ही पंचायत प्रतिनिधियों को संरक्षण- मार्गदर्शन और उन्हें अधिकार संपन्न बनाने वाली सबसे बड़ी संस्था है। इस संस्था में ही एक अनुसूचित जाति की महिला जिला पंचायत सभापति को इस नाम पर ट्रोल होना पड़ रहा है कि उसने सीईओ  के साथ विवाद किया । इस घटना से समझा ज़ा सकता है कि ज़िस संस्था को संरक्षक- पैरेंट की भूमिका में होना चाहिए ,वह ख़ुद शिकायतकर्ता का क़िरद़ार निभा रहा है….। लोकशाही की बुनियाद और इलाक़े का भला चाहने वालों को ज़रूर इस बात पर भी ग़ौर करने की ज़रूरत है।  इस मामले का एक स्याह पहलू यह भी है कि जितने भी वीडियो वायरल हुए हैं …उनमें कहीं भी जिला पंचायत सभापति को चप्पल लेकर दौड़ते हुए नहीं देखा गया है। ( ऐसा कोई वीडियो किसी पक्ष के पास हो तो अलग बात है..)।  लेकिन इसके बाद भी जिला पंचायत सदस्य ने सीईओ को चप्पल मारने के लिए दौड़ाया…. जैसी हेडिंग के साथ खबर खबरें वायरल हो गई।

मुंगेली जिले में इस तरह के हालात क्यों बने हैं..?  इसकी तह में जाने की कोशिश में जब लोगों से बात की गई तो पता चला कि इस ज़िले में जनप्रतिनिधियों और नौकरशाही के बीच लकीर सी खिंची हुई है। जो दिन-ब-दिन गहरी होती जा रही है। जिला पंचायत के जो सीईओ मीडिया से भी बात नहीं करना चाहते। कभी उनका फोन नहीं उठता…. तो कभी फोन बंद मिलता है। ऐसे में समझा जा सकता है कि जिला पंचायत जैसी बड़ी संस्था के सरकारी मुखिया के कामकाज का अंदाज कैसा होगा..? उनके बारे में आपस की बातचीत में भी लोग कहते हैं कि पंचायत प्रतिनिधियों के साथ मेल- मुलाकात और दूसरे जनप्रतिनिधियों से भी मिलने- जुलने में उन्हें दिलचस्पी नहीं होती। एक पंचायत प्रतिनिधि ने बताया कि लोगों में भी अब ज़िला पंचायत आने – जाने में कोई दिलचस्पी नहीं है।  ऐसे में फीडबैक  लिए बिना वे किस तरह काम करते होंगे ….समझा जा सकता है। जिला पंचायत की सभापति के साथ ताजा विवाद के मामले में जानकारी यह भी मिली कि पूरा मामला 15 वें वित्त आयोग की राशि से होने वाले विकास कार्यों से जुड़ा हुआ है। केंद्र सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक यह राशि स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि और लाइवलीहुड के कामों में खर्च की जाती है। इससे जुड़े कामों का प्रस्ताव जिला पंचायत के सदस्य सामान्य सभा में रखते हैं। सभी सदस्यों की ओर से रखे गए प्रस्ताव को बहुमत के आधार पर मंजूरी दी जाती है। मुंगेली जिला पंचायत में 30 जून को सामान्य सभा की बैठक में 15 वें वित्त आयोग की राशि के तहत कामों को मंजूरी दी गई। इसके बाद से अब तक जिला पंचायत के 12 में से 11 जिला पंचायत सदस्यों के क्षेत्र में वर्क आर्डर ज़ारी हो चुके हैं। लेकिन महिला जिला पंचायत सभापति को अपने कामों के लिए अब तक भटकना पड़ रहा है। बताया तो यह भी गया है कि उन्हें जिला पंचायत की ओर से अब तक लिखित में यह जानकारी नहीं दी गई है कि उनके काम के प्रस्तावों में क्या खामियां हैं या क्या नियम के विपरीत है…। लेकिन फिर भी कई महीने तक लगातार उन्हें प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा है। इस बात को लेकर मुंगेली के जनप्रतिनिधि वहां के कलेक्टर -प्रभारी मंत्री और यहां तक कि मुख्यमंत्री से भी बात कर चुके हैं। फिर भी मामला अटका हुआ है। वैसे तो यह बात भी सामने आई है कि जिला पंचायत सामान्य सभा की हर मीटिंग की वीडियो रिकॉर्डिंग कराई जाती है। उसमें भी देखा जा सकता है कि महिला सभापति ने किस अंदाज में अपनी बात रखी है। समझा जा सकता है कि लगातार उपेक्षा की वजह से आपसी खींचातानी के हालात बन रहे हैं। जिसमें महिला जनप्रतिनिधि पर चप्पल उतारने तक का आरोप लग गया। लेकिन जनप्रतिनिधियों से लेकर नौकरशाहों तक किसी ने भी अब तक इस बात को संजीदगी से नहीं लिया है कि ऐसी हालत क्यों बन रही है।अलबत्ता एक महिला के ऊपर ठीक़रा फ़ोड़कर तमाम लोग इसे अपनी ज़ीत के परचम की तरह लहरा रहे हैं…। इसे भी विडंबना ही कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में यह सब उस पार्टी की सरकार के रहते हो रहा है, जो यूपी के चुनाव में ” लड़की हूँ- लड़ सकती हूँ ” नारे के साथ मैदान में उतर रही है..।

अब इस मामले के एक और पहलू पर गौर करते हैं। जिससे लगता है कि मुंगेली जिले में बन रहे इस तरह के हालात के पीछे सियासी वजह क्या हो सकती है …?  लोगों से बातचीत करने पर यह बात सामने आती है कि वहां खींचतान सत्ता और विपक्ष की पार्टी के बीच नहीं है। अलबत्ता जनप्रतिनिधियों और सरकारी सिस्टम के बीच खींचतान का मामला लगता है। जिसके पीछे एक बड़ी वजह यह भी हो सकती है कि मुंगेली जिले के ताजा राजनीतिक माहौल में सत्ता पक्ष यानी कांग्रेस का कोई मजबूत नेतृत्व  नहीं है। गौर करने की बात है कि मुंगेली जब जिला भी नहीं बना था तब भी वहां का नेतृत्व कद्दावर रहा है । कांग्रेस की बात हो या जनसंघ- भाजपा की बात हो… दोनों ही पार्टियों के बड़े नेता मुंगेली से आते रहे हैं। कांग्रेस में किसी जमाने में पंडित राम गोपाल तिवारी, गणेशराम अनंत ,बशीर खान,डॉ.  खेलन राम जांगड़े, डॉ. प्रभात मिश्रा जैसे बड़े नाम रहे। उसी तरह जनसंघ – भाजपा में निरंजन केशरवानी, डॉ. भानु गुप्ता , पुन्नूलाल मोहले जैसे बड़े नाम हैं। बिलासपुर लोकसभा के मौजूदा सांसद अरुण साव का भी रिश्ता मुंगेली से है। किसी जमाने में कांग्रेस के डॉ प्रभात मिश्रा और डॉ. खेलन राम जांगड़े एक ही समय में सांसद रहे। जो मुंगेली इलाके से आते रहे। ऐसे बहुत से नाम गिनाए जा सकते हैं जो इस बात का सबूत है कि मुंगेली का सियासी कद कैसा रहा है। लेकिन आज के दौर को देखें तो नया जिला बनने के बाद मुंगेली जिले में मुंगेली ,लोरमी और पथरिया तीन  ब्लॉक हैं। यहां मुंगेली, लोरमी और बिल्हा विधानसभा क्षेत्र का एक हिस्सा आता है। इनमें से मुंगेली से भाजपा के पुन्नूलाल मोहले, बिल्हा से भाजपा के धरम लाल कौशिक ( नेता प्रतिपक्ष ) और लोरमी से जोगी कांग्रेस के धर्मजीत सिंह विधायक हैं। कांग्रेस से कोई भी विधायक नहीं है। सांसद भी बीजेपी के हैं। मुंगेली जिले की सियासत को समझने वालों का कहना है कि इस राजनीतिक समीकरण से मुंगेली जिले में एक तरह से नेतृत्व शून्यता की स्थिति बन रही है। जाहिर सी बात है कि इससे सरकारी सिस्टम और नौकरशाही बेलगाम होने का मौक़ा मिलेगा ही। जिसके चलते जिले में इस तरह के हालात बन रहे हैं । जनता के बीच से चुनकर और खासकर पंचायतों में प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों को लगातार अनदेखा किया जा रहा है। जिसे लेकर कोई बात कहने पर सरकारी सिस्टम के लोग हावी होने की कोशिश करते हैं। जिला पंचायत में कांग्रेस के लोगों का बहुमत है। फिर भी एक महिला प्रतिनिधि  को उपेक्षित किया जा रहा है और उसे अपने ही इलाके के विकास कार्यों को लेकर दर-दर भटकना पड़ रहा है। यह भी मुंगेली जिले में नेतृत्व शून्यता का ही उदाहरण है।

  • लेकिन इस तरह के विवाद आगे भी खड़े होते रहे और कोई एक “लॉबी” अपनी ताक़त का इस्तेमाल कर दबाव बनाती रही….. जनता के बीच से चुने हुए नुमाइंदे उपेक्षित औऱ प्रताड़ित होते रहे तो मुंगेली ज़िले की तरक़्की पर ब्रेक़ लगना लाज़िमी है। ऐसे में काम करने का माहौल भी नहीं बन पाएगा। व्यवस्था के ज़िम्मेदार लोगों को इसकी वज़ह भी तलाश लेना चाहिए और समझने की कोशिश करना चाहिए कि चप्पल को हैडिंग बनाकर ख़बर लिखने की नौबत़ क्यूं आ रही है…? 

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