तब तो प्रदीप आर्य को सिस्टम ने मार डाला…? अपनी आख़िरी सांस रहते तक सच को उजागर करने वाले पत्रकार की मौत पर कुछ तो करिए “सरकार..”

Shri Mi
16 Min Read

(गिरिज़ेय) छत्तीसगढ़ के दूसरे सबसे बड़े शहर बिलासपुर में एक जनर्लिस्ट के रूप में समाज को हमेशा संवेदनशील नजरों से देखने वाले और एक सिद्धहस्त कार्टूनिस्ट के रूप में समाज की पूरी व्यवस्था को बारीक नजरों से समझने – बूझ़ने वाले हमारे साथी प्रदीप आर्य को शायद कभी इस बात का अंदाज नहीं रहा होगा कि वह खुद भी कभी इसी सिस्टम का शिकार हो जाएंगे …….। और जब तक वह खुद और उनका परिवार सिस्टम की बेरहमी, इसकी संवेदनहीता – बेहयाई की हद तक पहुंच चुकी लापरवाही को बारीकी से समझ पाएंगे तब तक काफी देर हो चुकी होगी …।  और इसका शिकार होकर एक दिन असमय ही उन्हें दुनिया को अलविदा कहना पड़ेगा……। एक हंसमुख मिलनसार और हमेशा अपनी जिम्मेदारी को लेकर सजग रहने वाले पत्रकार साथी प्रदीप आर्य के असामयिक निधन से सभी दुखी हैं। लेकिन उनके इस तरह हम सब से हमेशा के लिए बिछड़ जाने के पीछे जो वजह सामने आ रही है उसे सुनकर जानकर और समझ कर अब मन में गुस्सा भी खूब आ रहा है ।  गुस्सा इस बात का है की सिस्टम ने एक साथी को हमसे हमेशा के लिए छीन लिया। और गुस्सा इस बात का भी है कि किसी निर्दोष की जान लेने वाले सिस्टम का हम क्या बिगाड़ लेंगे और बेशर्म हो चुके इस व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों को क्या हम इस बात के लिए मजबूर कर पाएंगे कि वह इस आपराधिक लापरवाही के लिए जिम्मेदार लोगों को कटघरे में खड़ा करें और न्यायप्रणाली के दायरे में उनके खिलाफ कड़ी – से-कड़ी  कार्यवाही करें……. ?

Join Our WhatsApp Group Join Now

इन अहम सवालों पर कुछ सोचने से पहले कृपया वरिष्ठ पत्रकार राजेश अग्रवाल का लिखा यह पढ़ लीजिए। उन्होंने प्रदीप आर्य के निधन के बाद उनकी बिटिया से बात करते हुए उनकी जानकारी में जो बातें सामने आई उन्हें शब्दसः लिखा है। पहले राजेश अग्रवाल का लिखा हम यहां जस का तस पेश कर रहे हैं…….!

तो इस तरह से जान ली गई हमारे प्रदीप भाई की…+++=======+++“अंकल, तीन चार दिन से पापा को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। हमने उनको प्रेस जाने से मना कर दिया था। मैं ऑक्सीजन का छोटा यूनिट लेकर घर आ गई। पर डर था, कब कैपिसिटी खत्म हो जाये। ““सिम्स लेकर आये। ऑक्सीजन सिलेंडर में लिया गया। कुछ देर बाद पता चला कि सिलेंडर का लेवल गिर रहा है। डॉक्टर आयें तो बात करें। बात कोई सुनने वाला नहीं था। फिर पता किया, किसी प्राइवेट अस्पताल में कोई ऑक्सीजन बेड खाली नहीं है। एक स्टाफ ने बताया, आरबी हॉस्पिटल में अभी-अभी एक ऑक्सीजन बेड खाली हुआ है, ले जाओ। ”“दूसरा ऑक्सीजन इक्विपमेंट वहां था ही नहीं। नीचे एम्बुलेंस खड़ी थी। मैं घर से जो पोर्टेबल ऑक्सीजन कंसंट्रेटर ले आई थी, उसे तीसरे माले से पापा पर लगाकर नीचे उतरी। पापा बुरी तरह हांफ रहे थे। बस उम्मीद थी, जल्दी से जल्दी एम्बुलेंस आरबी हॉस्पिटल पहुंचें, ऑक्सीजन मिले और पापा को बचा लें।”“आर बी में एम्बुलेंस रुकते ही व्हील चेयर आ गई। ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ। मैंने अपनी यूनिट हटाई। उन्होंने अपनी ऑक्सीजन यूनिट लगाई। पर, उनका हांफना बंद नहीं हुआ। स्टाफ से पूछा तो बताया कि बस दो चार मिनट में काम करने लगेगा। पापा को ऑक्सीजन मिलने लगेगा।“ “उसी हाल में पापा को आर बी के ऊपर बने कोविड हॉस्पिटल में मैं खुद रोते-रोते ले गई। आईसीयू में पापा पहुंच गये। आईसीयू में पहुंच गये थे, पर बस दो चार मिनट तक राहत महसूस कर सकी। उनका तड़पना बंद नहीं हुआ, बल्कि और बढ़ गया। मैं भागे-भागे नीचे आई। जिन नर्सों ने एम्बुलेंस अटैंड किया था, उनसे बात बताना चाह रही थी। मगर उन तीन में से दो मोबाइल फोन पर व्यस्त थीं। तीसरी मेरी ओर बड़ी उपेक्षा से देख रही थी।“ “मुझे समझ में आ गया कि इन्हें किसी के जान की परवाह बिल्कुल नहीं है। मुझे करंट सा लगा- जब एक ब्वाय ने बताया कि जो ऑक्सीजन सिलेंडर आपके पापा को यहां आने पर लगाया गया उसमें ऑक्सीजन तो था ही नहीं। वह तो खाली है। ये नौटंकी तो आपको संतुष्ट करने के लिये की गई।“ “मैं ऊपर भागी, अपने साथ लाये हुए आक्सीजन कंस्ट्रेटर को लेकर। दरवाजे पर पहुंची। रोका गया। बताया गया………..तुम्हारे पापा अब नहीं रहे।“ “अंकल, मेरी ही गलती थी। न तो उनको अस्पताल ले जाती, न उनकी मौत होती।“

राजेश अग्रवाल पत्रकारिता में हमारे हमसफर हैं और वरिष्ठ होने के साथ ही काफी संवेदनशील और जिम्मेदार भी हैं ।  उनके बारे में मुझे यह भी पता है कि एक ही अखबार में काम करते हुए प्रदीप आर्य के साथ राजेश अग्रवाल के भी बहुत क़रीब के संबंध रहे हैं। उनके बारे में यह भी मालूम है कि प्रदीप आर्य की आंखों के ऑपरेशन के दौरान जब कभी चेनन्ई या चंडीगढ़ ज़ाने की जरूरत पड़ती थी तो राजेश अग्रवाल को अपनी पूरी तनख्वाह उनके हाथ पर थमा देने में भी हिचक नहीं होती थी। एक संवेदनशील पत्रकार के नाते उनका यह रिश्ता काफी प्रेमपूर्ण था। हम सब की तरह राजेश अग्रवाल भी प्रदीप आर्य के आकस्मिक निधन से बहुत दुखी और शोक संतप्त है। लेकिन प्रदीप आर्य के निधन के बाद उन्होंने जो कुछ भी लिखा है…. वह भावना में बहकर लिखे गए शब्द नहीं है। अलबत्ता उनके शब्दों के जरिए प्रदीप आर्य के आकस्मिक निधन से जुड़ी सच्चाई सामने आ गई है। बिटिया ने जो बातें बताई हैं ……उस घटनाक्रम को पढ़ते – सुनते हुए किसी की भी आंखें डबडबा जाएंगी ।  लेकिन आंखों पर गुस्सा भी उभर आएगा । क्योंकि पूरा घटनाक्रम सामने आने के बाद इस सवाल ने भी अपनी जगह बना ली है….. क्या प्रदीप आर्य  का असमय निधन नहीं हुआ है बल्कि गैरज़िम्मेदेर सिस्टम ने उन्हें मार दिया  है…. ?

अगर सांस लेने में तकलीफ की वजह से सिम्स लाए जाने के बाद प्रदीप आर्य को जरूरत के हिसाब से इलाज की सुविधा नहीं मिल पाती है तो फिर जिले से लेकर प्रदेश स्तर तक बैठे व्यवस्था की जिम्मेदार लोग किस मुंह से यह दावा कर सकेंगे कि आम आदमी को इमरजेंसी के समय इलाज के लिए सिम्स जैसे संस्थान पर भरोसा करना चाहिए। आम आदमी के इलाज को लेकर सरकारी सिस्टम की यह कहानी पता नहीं कितनी बार दोहराई जाती रही है। जिसे प्रदीप आर्य और उनके साथी पत्रकार समय-समय पर सिस्टम के सामने लाते भी रहे हैं। लेकिन यह दोगला सिस्टम कभी इस बात की गारंटी नहीं देता कि वह इसकी खामियों को उजागर करने वालों पर भी रहम करेगा और  वक्त पड़ने पर उन्हें भी सिस्टम की बेरहमी का  शिकार होने से बचा लेगा।

प्रदीप आर्य जब अपने जिंदगी की आखिरी जंग लड़ रहे थे तब आम आदमी के इस संस्थान ने उन्हें अपनी हकीकत दिखाकर किसी और रास्ते की ओर रुखसत करने पर मजबूर कर दिया। आखिर प्रदीप आर्य को भी अपनी अंतिम सांसों की हिफाजत के लिए प्राइवेट अस्पताल की चौखट को पार करना पड़ा। इस चौखट के भीतर क्या होता है …..यह जानकर किसी की भी रूह कांप उठेगी। जब उनकी बिटिया यह बताती है कि प्राइवेट हॉस्पिटल में पहुंचते ही तुरंत व्हीलचेयर भी मिल गई और ऑक्सीजन सिलेंडर भी उनकी नाक के सहारे उनके जिस्म से जुड़ गया। व्हीलचेयर का पहिया तो घुमा और प्रदीप आर्य को आईसीयू तक ले भी गया। जिससे अस्पताल  के भीतर दाखिल होने में कोई दिक्कत नहीं हुई। लेकिन जो ऑक्सीजन सिलेंडर उन्हें जिंदगी की आखरी सांसों को उखड़ने से रोकने के लिए जोड़ा गया था….. वह खाली निकला। अस्पताल के भीतर दाखिल होने के लिए जिस पहिए की जरूरत थी वह अपनी धुरी पर घूम रहा था और असली भी था। लेकिन प्रदीप आर्य को अपनी जिंदगी बचाने के लिए जिस हवा की जरूरत थी वह असली नहीं थी। इस पहिए के बिना प्रदीप आर्य की जिंदगी का सफर जहां का तहां थम गया ….।

मीडिया की दुनिया में लंबे समय तक अपनी सक्रिय हिस्सेदारी निभाने वाले प्रदीप आर्य ने अपने पेशे के जरिए पता नहीं कितने लोगों को इंसाफ दिलाने में ऑक्सीजन की भूमिका निभाई होगी। लेकिन उन्हें कभी इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि उनके साथ कभी ऐसी नाइंसाफी भी होगी के सांसो की हिफाजत के नाम पर खाली सिलेंडर मौत का कारण बन जाएगा । और उन्हे अपनी ज़िंदगी को बचाने के लिए भी ऑक्सीज़न नहीं मिल पाएगा……। राजेश अग्रवाल ने बिटिया से हुई बातचीत के आधार पर जो कुछ लिखा है …….उसे पढ़कर कोई भी समझ सकता है कि उन आखिरी लम्हों में प्रदीप आर्य और उनकी बिटिया पर क्या गुजरी होगी…….। यह सच जानने के बाद लगता है कि जिस तरह मोर्चे पर सिपाही अपनी अंतिम सांस तक लड़ता है और अपनी ड्यूटी पूरी करने के लिए जो कुछ भी कर सकता है ,उसे पूरा करने में अपनी ओर से कोई कसर बाकी नहीं रखता। ठीक उसी तरह प्रदीप आर्य ने भी जाते- जाते पूरे सिस्टम का सच उजागर कर दिया है। और एक पत्रकार के नाते समाज को आईना दिखा गए। यह बात अक्सर कही जाती है कि आईना कमजोर जरूर होता है ।लेकिन सच दिखाने से डरता नहीं। उसी तरह अपनी कमजोर पड़ रही सांसो के बावजूद प्रदीप आर्य समाज को एक भयानक सच से रूबरू करा गए। अब अगर सिस्टम में बैठे अंधे लोगों को यह सच्चाई नजर ना आए तो कोई क्या कर सकता है …… ?  हालांकि हर कार्टूनिस्ट कोरे कागज पर ऐसी रेखाएं खींचने में माहिर होता है ,जो रेखाएं…..देखने – पढ़ने वाले के  चेहरे पर मुस्कान लाकर सच की ओर इशारा कर देतीं हैं। लेकिन प्रदीप आर्य के साथ आखरी समय में जो कुछ गुजरा उससे कागज पर खींची रेखाओं ने चेहरे पर मुस्कान की बजाए गुस्सा भर दिया है और इस भयानक सच के पीछे जिम्मेदार लोगों पर सभी की भौंहे तन गई हैं। गुस्सा इस बात का है कि इस शहर और सूबे का कोई भी बड़ा अफ़सर – जनप्रतिनिधि या और कोई भी ज़िम्मेदार शख्स ऐसा नहीं हैं…… जिसने सामने आकर प्रदीप आर्य़ के दुखद निधन पर दो शब्द कहने की भी ज़हमत उठाई हो….. । क्या हमारा पूरा सिस्टम ही इतना बेरहम और संवेदनहीन हो गया है…..। और क्या पत्रकार इतना अक़ेला हो गया है….. कि समाज़ भी ख़ामोश रहकर सिस्टम की इस बेरहमी और बेशरमी को नज़ायज़ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। कोई इन सवालों से बच नहीं सकता ….. वक़्त सभी से इन सवालों का ज़वाब ज़रूर मांगेगा।

गुस्सा इस बात को लेकर है की महामारी के इस भयानक दौर में क्या पूरा सिस्टम ही चौपट हो गया है…….  ? जब किसी को सरकारी से लेकर प्राइवेट तक कहीं भी राहत की उम्मीद नहीं है। लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करने की छूट किसने दी है….. ?  शासन का सिस्टम क्या केवल वाहवाही लूटने और अपनी ड्यूटी पूरी करने के नाम पर पुरस्कार का दावा करने तक ही सीमित है ।  एक पत्रकार के साथ जब इस तरह की घटना हो रही है तो आम आदमी के साथ हो रहे सलूक का अंदाज कोई भी लगा सकता है। प्रदीप आर्य के साथ जो कुछ भी हुआ है उसकी बिना किसी तरफदारी के साफ-सुथरी जांच तो होनी ही चाहिए ।  समय पर जांच कर समय पर नतीजा भी सामने आना चाहिए। अगर मौत के जिम्मेदार लोगों तक हाथ पहुंच जाएं तो उन पर न्याय प्रणाली के अनुरूप कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। क्योंकि यह मामला इस तरह का नजर आ रहा है कि प्रदीप आर्य का असमय निधन नहीं हुआ है। बल्कि उन्हें मार दिया गया है और उनकी मौत के लिए सिस्टम जिम्मेदार है। ऐसी घटना के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज होना चाहिए। अगर यह सब देख सुनकर भी व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों की आंख नहीं खुल रही है और उनके कानों में कुछ सुनाई नहीं दे रहा है । तो उन्हें जगा कर इस बात का एहसास कराना होगा कि लापरवाही अगर जुर्म के दायरे तक पहुंच जाए तो कड़े कदम उठाना ही पड़ेगा। वैसे भी महामारी ने पूरे सिस्टम की पोल खोल कर रख दी है। प्रदीप आर्य और उनके परिवार के साथ जो कुछ घटा वह किसी रूप में सामने आ गया । लेकिन पता नहीं ऐसे कितने मामले होंगे ज़िनका सच सामने नहीं आ पाता और प्राणवायु के नाम पर खाली सिलेंडर मौत़ का कारण बन रहा है। एक पत्रकार ने दुनिया को अलविदा कहते –कहते जो ,सच सामने ला दिया है…. उसे संज्ञान में लेकर अगर अस्पताल के नाम पर “जेबचीर घर” चला रहे सपेदपोश लोगों तक प्रशासन ने अपनी पहुंच बना ली और इस जवाबदेही के लिए उन्हे सज़ा मिलती है तो एक पत्रकार की मौत की कीमत आगे और भी लोग इस निरंकुश सिस्टम का शिक़ार होने से बचा जाएंगे…..।

प्रदीप आर्य एक जनरलिस्ट  की हैसियत से व्यवस्था का केवल सच लिख सकते थे और एक कार्टून के किरदार में सच को दिखा सकते थे। यह हुनर रखने के बावजूद उनकी अपनी सीमाएं थी। हमारी भी अपनी सीमाएं हैं। हम इस सच को खुर्दबीन की तरह बारीक से और बड़ा दिखाकर व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों से यही उम्मीद कर सकते हैं कि वे भी इस सिस्टम में झांककर उसका सच देखने की जहमत भी उठाएं ।  यही करते-करते हमारा एक साथी हमसे हमेशा के लिए बिछड़ गया। लेकिन वह जो आइना दिखा गया है ……उसमें व्यवस्था के  जिम्मेदार लोगों को भी अपने चेहरे को  एक बार देख लेना चाहिए। अगर ऐसा कुछ हो सकता तो यही प्रदीप आर्य जैसे कर्मठ ,जिम्मेदार ,पत्रकार के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

 अलविदा प्रदीप आर्य……

Share This Article
By Shri Mi
Follow:
पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
close