कांकेर।प्रदेश में बारिश का कहर जारी है और नदी नाले उफान पर है। ऐसे में छत्तीसगढ़ में सियासत के उफान होने के आसार नजर आ रहे हैं। 22 अगस्त से प्रदेश के अधिकारी कर्मचारी हड़ताल पर जाने वाले हैं। जिसकी वजह से छत्तीसगढ़ के आम लोगों को कई समस्याओं से गुजारना पड़ सकता है।अगले 4 दिन यानी 16 से 19 तक जो भी महत्वपूर्ण सरकारी काम है निपटा लें।गांव की पंचायत और तहसील से लेकर सभी सरकारी विभागों में हड़ताल का असर दिखाई दे सकता है। अपने कामों को लेकर आम और खास सभी को भटकना पड़ सकता है।
सरकारी फाइलें फिर से एक बार जाम की स्थिति में आ सकती है।सरकार की योजनाओं पर फर्क पड़ सकता है। हड़ताल से सरकार को राजस्व का कुछ नुकसान भी हो सकता है। योजनाओं का क्रियान्वयन कराने में विलंब हो सकता है।स्कूलों की पढ़ाई लिखाई फिर से एक बार प्रभावित हो सकती है।प्रदेश में अधिकारी कर्मचारी प्रमोशन अपने 2 सूत्रीय मांगों को लेकर 22 अगस्त से अनिश्चितकालीन आंदोलन में जाने वाला है।14 अगस्त को फेडरेशन के प्रतिनिधि मंडल से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस मुलाकात में कोई बात नहीं बनी प्रदर्शन के पदाधिकारियों ने बताया है कि मुख्यमंत्री ने 6% महंगाई भत्ता बढ़ाने के संकेत दिए हैं।राज्य की आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए भविष्य में केंद्र के समान महंगाई भत्ता व एचआरए देने का आश्वासन दिया है।
हालांकि बातचीत से हड़ताल टालने की गुंजाइश ही बची हुई है। अब देखना होगा,इस सरकार कौन सा सिपहसालार इस नीति के तहत इस हड़ताल को ताल में कामयाब होता है।चलते-चलते बता दे की महंगाई भत्ता और गृह भाड़ा बढ़ाने की मांग को लेकर छत्तीसगढ़ के करीब साढ़े लाख सरकारी कर्मचारी अधिकारी 22 जुलाई से हड़ताल पर थे हड़ताल पांच दिन की थी,लेकिन शनिवार और रविवार के कारण हड़ताल नौ दिन की हो गई थी।
छत्तीसगढ़ कर्मचारी-अधिकारी फेडरेशन की हड़ताल की वजह से प्रदेश के सभी सरकारी कार्याल्य बंद थे आबकारी, कलेक्टेरेट, तहसील कार्यालयों, स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा, लोक निर्माण विभाग, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, नगर निगम जैसे कई महत्वपूर्ण विभाग में तालीबंदी रही। इसका सीधा असर सरकार के राजस्व आदम पर पड़ा है। हड़ताल के दौरान राज्य शासन को लाखों रुपये के राजस्व की हानि हुई है।
जिस के आंकड़े सरकार की ओर से जारी नहीं किए गए हैं अब एक बार फिर हड़ताल होती है ऐसे में पीड़ित आम आदमी को ही होना चाहिए सरकारी कर्मचारी अधिकारियों को विरोध का कोई दूसरा रास्ता निकालना चाहिए। हड़ताल से किसी को कुछ नहीं मिलना उल्टा राज्य का विकास और आर्थिक स्थिति किसी लोकल पैसेंजर ट्रेन के जैसे हो सकती है।समय पर सरकार को लाभ के द्वार पर नहीं पहुंचा सकते हैं।
नजर डालते है कि महंगाई भत्ता क्या होता है जिसकी माँग राज्य के कर्मचारी कर रहे है।केन्द्र या राज्य सरकार अपने कर्मचारियों और पेंशनर्स को महंगाई की मार से बचाने के लिए भत्ता देती है. सरकारी कर्मचारियों में पब्लिक सेक्टर यूनिट इंप्लॉइज भी शामिल हैं क्योंकि उन्हें भी सरकारी कर्मचारियों में ही गिना जाता है. महंगाई भत्ते का मतलब है कि सरकार, महंगाई के प्रभाव को संतुलित करने के लिए कर्मचारी के मूल वेतन के एक निश्चित प्रतिशत के रूप में अपने पेंशनभोगियों, कर्मचारियों आदि को भुगतान करती है. साल में इसे दो बार यानी जनवरी और जुलाई में कैलकुलेट किया जाता है. शहरी, अर्द्धशहरी और ग्रामीण इलाकों के हिसाब से डीए अलग-अलग होता है. बढ़ती महंगाई की वजह से इसे बढ़ाना पड़ता है. बढ़ती कीमतें बाजार पर निर्भर हैं और मुद्रास्फीति की दर को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सरकारी उपायों के बावजूद ,उच्च जीवन लागत की भरपाई के लिए डीए समायोजन की जरूरत है।
महंगाई भत्ते का इतिहास कुछ इस तरह है कि दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान हुई महंगाई भत्ता देने की शुरुआत हुई थी उस वक्त सैनिकों को खाने और दूसरी सुविधाओं के लिए तनख्वाह से अलग यह पैसा दिया जाता था. उस वक्त इसे खाद्य महंगाई भत्ता या डियरनेस फूड अलाउंस (Dearness food allowance) कहा जाता था. भारत में मुंबई से 1972 में सबसे पहले महंगाई भत्ते देने की शुरुआत हुई थी. इसके बाद केंद्र सरकार के सभी सरकारी कर्मचारियों को महंगाई भत्ता दिया जाने लगा। और इसकी महंगाई भत्ते के चलते आम लोगों को समस्याओं से जूझना पड़ सकता है।