छत्तीसगढ़ में “पूरे घर के बदलने” में तुली भाजपा

Shri Mi
11 Min Read

(कही सुनी)रवि भोई।लगता है छत्तीसगढ़ में भाजपा ‘पूरे घर के बदल डालूंगा’ की तर्ज पर काम कर रही है। प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष के बाद अब प्रदेश प्रभारी को भी बदल दिया गया। पार्टी ने दग्गुबती पुरंदेश्वरी की जगह ओमप्रकाश माथुर को प्रदेश प्रभारी बनाया है। मूलतः राजस्थान के रहने वाले श्री माथुर खांटी संघी नेता हैं और जनसंघ के जमाने के हैं। हाल ही में उन्हें केन्द्रीय चुनाव समिति में शामिल किया गया है,उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी नेता माना जाता है। अब प्रदेश भाजपा में संघ से जुड़े नेताओं का पूरी तरह दबदबा हो गया है।

Join Our WhatsApp Group Join Now

राष्ट्रीय सह-संगठन महामंत्री शिवप्रकाश और क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल सीधे संघ से जुड़े हैं। प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव भी संघ की पृष्ठभूमि वाले हैं। ओमप्रकाश माथुर छत्तीसगढ़ में पार्टी को कैसे दुरुस्त करते हैं और सत्ता में वापसी करवाते है, यह देखना होगा ? लेकिन उत्तरप्रदेश के प्रभारी के तौर पर उनका काम और डंडा अभी से प्रदेश के भाजपा नेता और कार्यकर्ताओं को कपाने लगा है। कहते हैं अभी श्री माथुर का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। स्वस्थ होने के बाद छत्तीसगढ़ आएंगे। संगठन में बदलाव की प्रक्रिया और गति देखकर लोग अंदाज लगाने लगे हैं कि 2023 के विधानसभा चुनाव में 2019 के लोकसभा चुनाव का फार्मूला लागू होगा। 2019 में सिटिंग सांसदों का टिकट काटकर नए चेहरों को उतारा गया था। इस फार्मूले में सफलता मिली थी। अभी राज्य में भाजपा के 14 विधायक हैं, ऐसे में 76 चेहरे में पार्टी को दिक्कत नहीं आने वाली है। 14 में से भी कई अपने आप कट जाएंगे , ऐसे में 2023 में भाजपा कहीं सभी सीटों पर नया चेहरा न उतार दे।

छत्तीसगढ़ में जिलों के बढ़ते कदम

भूपेश बघेल की सरकार ने सितंबर महीने में छत्तीसगढ़ में पांच नए जिले धरातल पर ला दिए। राज्य में भूपेश बघेल की सरकार बनने के बाद गोरेला-पेंड्रा-मरवाही जिला बना था। कांग्रेस राज में कुल छह नए जिले अस्तित्व में आ गए हैं। डॉ. रमन सिंह के राज में भी खूब जिले बने थे। विधानसभा चुनाव से पहले तीन और नए जिले बनने की चर्चा है। कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में 36 जिलों की अवधारणा चल रही है। नए जिलों से भले प्रशासनिक बोझ बढ़ता है, लेकिन प्रशासन की छोटी ईकाई से जनता गदगद हो जाती है और नए जिले बनने से क्लर्क-सिपाही से लेकर अफसर तक के प्रमोशन के द्वार खुल जाते हैं। कई आईएएस को कलेक्टर और आईपीएस को एसपी बनने का मौका मिल जाता है। क्लर्क भी साहब की कुर्सी तक पहुँच जाता है और सिपाही का स्टार बढ़ता जाता है। छत्तीसगढ़ बनने से कई नेता -अफसरों को ऊँची कुर्सी मिल गई।

एक मेयर के पीछे ईडी

चर्चा है कि छत्तीसगढ़ के एक मेयर के पीछे ईडी ( प्रवर्तन निदेशालय ) ने अपने जासूस छोड़ दिए हैं। कहते हैं कि उनके काम-धंधे और राजनीतिक संबंधों के बारे में सबूत जुटाए जा रहे हैं। खबर है कि मेयर साहब के बारे में बहुत कुछ जानकारी ईडी ने जुटा लिया है। मेयर साहब कांग्रेस के कई नेताओं के साथ काम कर चुके हैं और उनके ख़ास भी रहे हैं। मेयर साहब की राजनीतिक आकांक्षाएं भी ऊँची है। पिछली बार विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन समीकरण बैठ नहीं पाया था। अबकी बार तीर निशाने पर लगाने के लिए सारे जतन और मेहनत कर रहे हैं। जनता और जमीन से जुड़ने के लिए कई कार्यक्रम भी करवा रहे हैं। अब ईडी का भूत उनके बने-बनाए खेल को कहीं बिगाड़ न दे। देखते हैं आगे-आगे होता है क्या ?

आईजी ने दुत्कारा एएसपी को

चर्चा है कि राजधानी से लगे एक रेंज के आईजी साहब ने सेवा-पानी लेकर पहुंचे एक एडिशनल एसपी को अपने बंगले से बाहर का रास्ता दिखा दिया। एएसपी साहब बहुत दिन से एक ही जिले में जमे हैं और कई आईजी आयाराम-गयाराम हो गए। हर किसी को एक तुला में तौलने के फेर में एएसपी साहब झटका खा गए। खबर है कि आईजी साहब ने एडिशनल एसपी को बंगले की सीढ़ी नहीं चढने तक की हिदायत दे दी। अब आईजी साहब के त्याग की चर्चा हो रही है, तो एडिशनल एसपी की हरकत के चटखारे महकमे के लोग ही नहीं, आम लोग भी ले रहे हैं।

कांग्रेसी बने सुकुमार

कहते हैं महंगाई के खिलाफ हल्ला बोल आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए चार सितंबर को छत्तीसगढ़ से कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता बड़ी संख्या में दिल्ली पहुंचे थे। आंदोलन स्थल पर पहुंचे और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और बड़े नेताओं को चेहरा दिखाकर वहां से कन्नी काट गए। खबर है कि राज्य के कई कांग्रेसी नेता दिल्ली की धूप और आंदोलन स्थल पर भीड़ से बेहाल हो गए। चर्चा है कि 15 साल के संघर्ष के बाद सत्ता सुख का आनंद उठा रहे कांग्रेस के नेता और कार्यकर्त्ता सुकुमार बन गए हैं, यही वजह है कि उन्हें धूप चुभने और भीड़ काटने लगी है।

हवा-हवाई नेताओं के बीच नड्डा

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा नौ सितंबर को कुछ हवा-हवाई नेताओं के बीच प्रदेश कार्यालय कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में घिरे दिखे तो जमीनी और कर्मठ नेता-कार्यकर्ता जलभुन गए, लेकिन मज़बूरी में उन्हें मनमसोस कर रह जाना पड़ा। कहते हैं कि पार्षद का चुनाव भी नहीं जीत पाने वाले एक नेता राष्ट्रीय अध्यक्ष के इर्द-गिर्द दिखते रहे। शब्दों को नहीं बूझ पाने वाले एक नेता भी नड्डा के करीब रहे। कहा जाता है पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं को नड्डा से मिलने के लिए समय लेना पड़ता है, पर इस नेता की डायरेक्ट इंट्री है। नेताओं को एयरपोर्ट छोड़ने और लेने जाने वाले एक नेता के साथ जगतप्रकाश नड्डा की तस्वीर भी चर्चा में है। भाजपा में नेताओं की परिक्रमा की राजनीति को लेकर भले ही ज्ञान की बात की जाए, पर भगवान् को खुश करने के लिए तो मंदिर में भी परिक्रमा की जाती है।

पुरंदेश्वरी कैबिनेट में जाएगी ?

पितृ पक्ष खत्म होने के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल की खबर है। चर्चा है कि इस फेरबदल में छत्तीसगढ़ की भाजपा प्रभारी रही दग्गुबती पुरंदेश्वरी को केंद्र में मंत्री बनाया जा सकता है। पुरंदेश्वरी मनमोहन कैबिनेट में राज्य मंत्री रह चुकी हैं। पुरंदेश्वरी अभी किसी भी सदन की सदस्य नहीं हैं, लेकिन कहीं से राज्यसभा में उन्हें भेजा जा सकता है। भाजपा में अभी आंध्रप्रदेश में कोई बड़ा नेता नहीं है। पुरंदेश्वरी को पार्टी आंध्रप्रदेश में चेहरा के रूप में प्रोजेक्ट कर सकती है। आंध्रप्रदेश में 2024 में विधानसभा चुनाव होने हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल में छत्तीसगढ़ के एक सांसद को जगह मिलने की चर्चा है। अभी गुहारम अजगले और संतोष पांडे का नाम है। कहा जा रहा है कि भले भाषाई दिक्कतों के चलते पुरंदेश्वरी विवादों में रही, लेकिन भाजपा में बदलाव की नींव तो रख गई।

होम किए बिना हाथ जले भाजपा नेताओं के

व्यक्ति को जब पद और पावर मिलता है,तो अपनी सीमा को भूल जाता है, ऐसा ही कुछ छत्तीसगढ़ के दो भाजपा नेता सीमा से परे जाकर अल्पसंख्यक समुदाय के एक नेता को राज्यसभा में मनोनीत करने की सिफारिश कर दी। इसके लिए जो औपचारिकता पूरी की जानी चाहिए थी, वह भी पूरी नहीं की और न ही बड़े नेताओं से सहमति ली। कहते हैं छत्तीसगढ़ के बड़े नेताओं को जब इसकी भनक लगी, तो उन्होंने इस पर आपत्ति की। चर्चा है कि छत्तीसगढ़ की प्रभारी के नाते पुरंदेश्वरी ने तो एक नेता को भारी फटकार भी लगाई। सिफारिश करने वाले एक नेता की तो पद से विदाई हो गई, दूसरे को भी हटाने की कयासबाजी चल रही है। अल्पसंख्यक समुदाय के नेता का राज्यसभा में मनोनयन हुआ नहीं, पर बदनाम जरूर हो गए और उनके आका पर भी गाज गिर गई।

विरोधियों पर भारी पड़े भाजपाई

कभी-कभी अति उत्साह के चलते व्यक्ति को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है। ऐसा ही कुछ बसना के पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष संपत अग्रवाल के साथ घट गया। आठ सितंबर को भाजपा प्रवेश की खबर उडी। भाजपा प्रवेश के पहले ही संपत अग्रवाल ने भारी तामझाम कर रखा था। समर्थक भी आ गए थे और होर्डिंग भी लग गए थे , लेकिन भाजपा प्रवेश हुआ ही नहीं। माना जा रहा है कि विरोधी उन पर भारी पड़ गए। एक फार्मूले के तहत 2018 में बागी हुए लोगों का भाजपा प्रवेश होना था। संपत अग्रवाल के साथ रायगढ़ के विजय अग्रवाल का भी भाजपा प्रवेश होना था, पर हुआ नहीं। खबर थी कि जोगी कांग्रेस के विधायक धर्मजीत सिंह भी भाजपा ज्वाइन करेंगे। कहते हैं 2023 में टिकट की गारंटी नहीं मिलने पर फिलहाल धर्मजीत सिंह का मामला गड़बड़ा गया। पर एक बात तो साफ़ है कि 2023 फतह के लिए भाजपा कोई भी रणनीति अपना सकती है। तब बागी लोगों के साथ दूसरे दल के लोग भी भाजपा का दामन पकड़ सकते हैं।

( लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं )

By Shri Mi
Follow:
पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
close