कर्मचारी औऱ सरकार के बीच रिश्ते में कितनी “मिठास”…? मेंहदी लगे हाथों की वायरल तस्वीर कुछ बोलती है…!

Shri Mi
9 Min Read

बिलासपुर (सीजीवाल न्यूज़)।छत्तीसगढ़ में आपसी रिश्तों में मिठास भरने और उन्हे मज़बूती देने वाला सबसे बड़ा तीजा तिहार गुज़र गया…। ठेठरी – ख़ुरमी के मीठेपन के साथ बेटी – माई के साथ परिवार के रिश्ते को फ़िर से एक नई मिठास… एक नई ऊर्जा मिल गई। प्रदेश के पुराने रिवाज के मुताबिक महिलाएं अपने मायके में यह त्यौहार मनाने पहुंची। आस्था के बीच उल्लास और उमंग के माहौल में घर-घर आयोजन हुए। लेकिन इसी दरम्यान एक महिला कर्मचारी के हाथों रची मेहंदी की तस्वीर भी खूब वायरल हुई। जिसमें लिखा था… “न मायके में न ससुराल में… तीजा उपवास हड़ताल में….”।

Join Our WhatsApp Group Join Now

यह तस्वीर बयां कर रही थी कि 22 अगस्त से अपनी डीए और एचआरए की मांग को लेकर कर्मचारी बेमुद्दत हड़ताल पर हैं और इसमें शामिल महिला कर्मचारी इस बार पंडाल पर ही तीजा की रस्म पूरी कर रहीं हैं ।इस तस्वीर के जरिए यह संदेश देने की कोशिश की गई कि एक तरफ छत्तीसगढ़ की परंपरा- संस्कृति को मजबूत करने की कवायद हो रही है। वहीं दूसरी तरफ एक तब़के को पुराना रिवाज तोड़कर एक नई परंपरा की शुरुआत करनी पड़ रही है। नई परंपरा की शुरुआत तो उस दिन भी हो गई थी – जब कोई बोनस… कोई इंसेंटिव.. या कोई और अतिरिक्त सुविधा की बजाए छत्तीसगढ़ के कर्मचारी / अधिकारी डीए और एचआरए की मांग को लेकर पिछले कई महीनों से आंदोलन के रास्ते पर चल पड़े …. ।

पुराने से पुराने लोगों को भी पता है की अब तक के इतिहास में डीए की मांग को लेकर कभी सरकारी कर्मचारियों को इतने लंबे समय तक आंदोलन नहीं करना पड़ा था। दिलचस्प बात है कि उस परंपरा को भी कोई याद नहीं कर रहा है- जिसकी झलक छत्तीसगढ़ में 15 साल लगातार सरकार चलाने वाली पार्टी ने पेश की थी। उनके राज में भी छत्तीसगढ़ के शिक्षा कर्मियों ने संविलियन और “समान काम- समान वेतन” के मुद्दे को लेकर लंबी लड़ाई लड़ी। सरकार ने जाते – जाते शिक्षाकर्मियों का संविलियन तो कर दिया…। लेकिन लंबे समय तक तरसते रहने और झुलाने के बाद दी गई इस सौगात के बदले बीजेपी को कोई राजनीतिक फायदा नहीं मिल सका। और 15 साल तक सरकार चलाने वाली पार्टी 15 सीटों पर सिमट गई थी। लगता है कि यह वाक़्या भी भुला दिया गया है। तभी तो आपसी रिश्तों में मिठास भरने वाले इस त्यौहार के माहौल में लोग सरकार और उसके ही कर्मचारियों के रिश्ते में मिठास की बज़ाय तल्ख़ी का अहसास कर रहे हैं…।

तीजा पर्व छत्तीसगढ़ में आपसी रिश्तो को मजबूत करने वाला त्यौहार है। बहुत पुरानी परंपरा है कि तीजा पर्व में महिलाएं अपने मायके पहुंचती हैं। लोग अपनी बहन बेटियों को ससुराल से सम्मान के साथ मायके लेकर आते हैं और कोई न कोई उपहार भी देते हैं। सबसे बड़ा उपहार तो यही है कि इस दौरान बहन – बिटिया के साथ परिवार का पुराना रिश्ता फिर से मजबूत होता है। शायद यही सोचकर यह परंपरा शुरू की गई होगी कि साल में कम से कम एक बार तीजा के नाम पर बिटिया अपने मायके ज़रूर पहुंचे … और उसेक साथ ख़ुशियों को साझ़ा करने का मौक़ा मिल सके…। इस मायने में यह ऐसी परंपरा है, जिसमें मां-बाप, भाई-बहन,चाचा चाची,बुआ,भतीजा.मामा-भांजा जैसे सभी तरह के रिश्ते में गुरतुर ( मीठे ) पकवान की तरह नया स्वाद ज़ुड़ जाता है…।

लेकिन इस बार तीजा तिहार के ही दौरान सरकार और कर्मचारियों के बीच के रिश्ते में मिठास की बजाय खटास की झलक दिखाई दी। पिछले कई महीनों से ज्ञापन ,धरना, प्रदर्शन, पहले निश्चितकालीन और फिर अनिश्चितकालीन हड़ताल कर रहे कर्मचारी /अधिकारी शायद अपनी ही सरकार और प्रदेश के आम लोगों को यह समझाने में अब तक नाकाम रहे हैं कि वे और कोई अतिरिक्त सुविधा नहीं मांग रहे हैं। तनख्वाह के साथ नियमानुसार मिलने वाला महंगाई भत्ता मांग रहे हैं।

यह भत्ता महंगाई सूचकांक के अनुसार तय होता है। पिछले काफी समय से केंद्र सरकार की ओर से जैसे ही डीए (महंगाई भत्ता ) बढ़ाया जाता है, वैसे ही प्रदेश सरकार के कर्मचारी भी नई दर के मुताबिक महंगाई भत्ता पाने के हकदार हो जाते हैं। इतनी सीधी- सरल बात अगर सरकार नहीं समझ पा रही है और हड़ताल पर बैठे कर्मचारियों के साथ बातचीत की बजाय कहीं वेतन कटौती की चेतावनी…. तो कहीं काम में वापस लौटने पर वेतन नहीं काटने का लालच देकर सरकार भी शायद यही जताने की कोशिश कर रही है कि कर्मचारियों के साथ वह आगे किस तरह का “रिश्ता” निभाना चाह रही है।

आज के दौर में जब छत्तीसगढ़ में पुरानी परंपराओं को सहेजने और संवारने की चर्चा आम है । ऐसे समय में अगर रिश्तों के की मजबूती का संदेश देने वाले सबसे बड़े तीजा तिहार के ठीक समय में अगर रिश्तों में खटास और तल्खी का यह माहौल बन रहा हो तो कई प्रश्न भी घूमने लगते हैं। यह भी निश्चित है कि वह समय भी आएगा जब सरकार और कर्मचारियों के बीच सुलह हो जाएगी। और हड़ताल भी खत्म हो जाएगी। सरकार को भी इन्हीं कर्मचारियों से काम लेना है और इन कर्मचारियों को भी अपना काम करना है। ऐसे में कोई न कोई रास्ता निकलना स्वाभाविक है। आगे चलकर कोई भी परिस्थिति बन सकती है। सरकार अपने 6% डीए देने की घोषणा से कुछ आगे भी बढ़ सकती है। फार्मूला यह भी हो सकता है कि केंद्र सरकार के समान देय तिथि…..यानी 2020 से डीए प्रदान किया जाए और एरियर्स की राशि पीएफ खाते में जमा कर दी जाए।

हो यह भी सकता है कि सरकार 6% डीए की घोषणा पर अडिग रहे। इसमें किसी तरह की बढ़ोतरी हुए बिना कर्मचारी जनहित में अपना आंदोलन वापस ले लें। और इस लम्बी लड़ाई में बिना कुछ हासिल किए ही काम पर वापस लौट जाए। लेकिन ऐसी सूरत में भी क्या सरकार और कर्मचारियों के बीच रिश्ते में मिठास की उम्मीद की जा सकती है.? जाहिर सी बात है कि बिना कुछ हासिल किए हड़ताल समाप्त करने के बाद क्या कर्मचारियों के मन में भरोसा- उम्मीद- सुकून- हौसला बना रहेगा.? क्या आने वाले समय में भी इसका असर नहीं पड़ेगा.? लम्बे समय से सड़क पर संघर्ष कर रहे कर्मचारी इस तरह वापस लौटने के बाद क्या अपने इन दिनों को भुला देंगे…?

जो महिलाएं मायके में तीजा के उत्सव को अपनी यादों में साल भर तक सहेजकर रखतीं हैं, वे पंडाल की तीजा को भुला पाएंगी…? हाथों की मेंहदी में फ़ूल – पत्तियों की ज़गह….” ना मायके में ना ससुराल में इस बार तीजा पंडाल में….” इस तस्वीर को भूल पाएगी….?

इस दौर को भुलाना तो उनके लिए भी कठिन है, जो लम्बे समय से सरकारी दफ़्तरों में काम प्रभावित होने की वज़ह से परेशान हो रहे हैं। औऱ इस सवाल का ज़वाब तलाश रहे हैं कि इस हालात के लिए सरकार जिम्मेदार है .. या कर्मचारी…? दोनों से ही मिलकर सिस्टम बनता है…। लिहाज़ा दोनों को ऐसे रास्ते की दरक़ार है, जिसमें चलते हुए रिश्ते में मिठास भी बनी रहे … और कुछ ऐसा नतीज़ा सामने आए- “ ना तुम जीते… ना हम हारे….”।

By Shri Mi
Follow:
पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
close