वेबीनार में प्रमुख सचिव के शब्दों के विरोध में उतरे शिक्षक संघ, प्रमुख सचिव से ही कई सवाल पूछ डालें

Shri Mi
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रायपुर। शिक्षा विभाग के राज्य स्तरीय वेबीनार जिसमें कि 20000 से अधिक शिक्षा जुड़े थे उसमें प्रिंसिपल सेक्रेट्री शिक्षा डॉ आलोक शुक्ला के द्वारा निकम्मा शब्द कहने पर शिक्षकों ने नाराजगी जाहिर की है। साथ ही कई शिक्षक संघ ने इस मुद्दे पर आपत्ति भी जताई है। शिक्षा विभाग के अफसरों से प्रश्न किया है की उपलब्धियों के लिए शिक्षा विभाग के सचिव वाहवाही लेते हैं और कमियों के लिए शिक्षकों को निकम्मा क्यों कहा जा रहा है।CG News update के लिए हमारे व्हाट्सएप्प ग्रुप से जुड़े,यहां क्लिक करे

             
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छत्तीसगढ़ शालेय शिक्षक संघ-गत दिवस वेबिनार में शिक्षा सचिव आलोक शुक्ला द्वारा शिक्षकों को निकम्मा कहकर कमजोर गुणवत्ता के लिए शिक्षकों को दोषी ठहराने का मुद्दा अब गरमाने लगा है।प्रदेश के शिक्षकों व छत्तीसगढ़ शालेय शिक्षक संघ के प्रांताध्यक्ष वीरेंद्र दुबे ने उनके इस बयान को गैर जिम्मेदाराना ठहराते हुए कड़ी निंदा की है और इसके लिए दोषी अफसरशाही को ही बताया है जिन्होंने AC कमरे में बैठकर नित प्रतिदिन एक नया प्रयोग स्कूलों में करके स्कूलों को एक प्रयोगशाला बना दिया है और बच्चों को प्रायोगिक सामग्री। शिक्षकों से दिन रात इतने गैर शैक्षणिक कार्य कराए जाते है कि शिक्षक को अध्यापन के लिए समय ही नही मिल पाता। रोज नए विधियों के अधकचरे ज्ञान से ही स्कूलों की गुणवत्ता बिगड़ रही है,उस पर कक्षा आठवी तक कक्षोंन्नति देना भी बच्चों की गुणवत्ता को कमजोर बनाना है।

शालेय शिक्षक संघ के महासचिव धर्मेश शर्मा और प्रदेश मीडिया प्रभारी जितेंद्र शर्मा ने कहा कि प्रमुख शिक्षा सचिव महोदय शिक्षकों को धमकाने के बजाय शिक्षा व्यवस्था की समीक्षा करके सुधार की बात करे और अनावश्यक प्रयोग बंद करे।कमजोर गुणवत्ता के लिए शिक्षकों को दोषी ठहराना पूर्णतः गलत है और गैरजिम्मेदाराना भी। शिक्षक अपना दायित्व भली भांति जानते और समझते है तभी शिक्षा विभाग के अधिकारी लगातार छत्तीसगढ़ की शिक्षा को लेकर पुरस्कृत होते रहे हैं, वाह वाह खुद बटोरना और मेहनत करने वाले के हिस्से केवल आलोचना बर्दाश्त नही की जावेगी। प्रदेश के समस्त शिक्षकों ने इस तरह के बयानों की कड़ी निंदा की है और मुख्यमंत्री से मांग की है ऐसे बेलगाम अफसरों पर लगाम लगाकर शिक्षकों की गरिमा बनाये रखें।

छत्तीसगढ़ टीचर एसोसिएशन-छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष संजय शर्मा ने कहा है कि राष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ की शिक्षा को सराहने पर शिक्षको को कोई लाभ नही दिया गया, तब अधिकारियों ने वाहवाही लूटी, अब निम्न स्तरीय शिक्षा पर सजा की बात विभाग कैसे कर सकता है,? उत्कृष्ट शिक्षा पर अन्य विभाग जैसे आउट ऑफ टर्न प्रमोशन व भत्ता क्यो नही दिया गया,? शिक्षको का प्रतिनिधित्व शिक्षक कर्मचारी संघ करते है, उनसे सुझाव लेकर शिक्षा का क्रियान्वयन क्यो नही किया जाता,? विभाग को दिए गए सुझाव पर कभी अमल क्यो नही किया शिक्षा विभाग ने,?

ऐसे ही कई विषय है जिस पर शिक्षा विभाग को चर्चा करना चाहिए,?

30 जून को आयोजित राज्य स्तरीय वेबिनार में शिक्षा सचिव महोदय के द्वारा शिक्षा की गुणवत्ता पर चिंता व्यक्त करते हुए पूरा दोषारोपण शिक्षको पर ही कर दिया गया, जो कि आपत्तिजनक है। साथ ही शिक्षकों के लिए शिक्षा सचिव महोदय के द्वारा प्रयुक्त भाषा एवं शैली स्तरहीन है।

शिक्षा को प्रभावित करने वाले बहुत से उत्तरदायी कारण है जिन पर गहन चिंतन होना चाहिए। केवल शिक्षक को दोषी ठहरा कर शिक्षा सचिव महोदय द्वारा केवल ठीकरा फोड़ने का कार्य किया जा रहा है। इससे गुणवत्ता सुधार कार्य में न तो समाधान मिले सकेगा और न ही ये उच्चाधिकारी अपने उत्तरदायित्वों से बच पाएंगे ।

शिक्षकों का शिक्षा सचिव से सवाल है –

(1) जब विभाग के द्वारा शिक्षक चयन की प्रक्रिया इतनी जटिल और पैनी बनाई है। हायर सेकंडरी, स्नातक, स्नातकोत्तर, डीएल एड, बी एड, फिर शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद अभियर्थी शिक्षक बनने के काबिल होता है। कई स्तरों की पात्रता एवं योग्यता हासिल करने के पश्चात अभ्यर्थी कड़े कंपीटिशन की परीक्षा (व्यापम ) के बाद अभ्यर्थी लाखो के बीच से चुन कर शिक्षक बनता है। इसके बाद भी शिक्षकों को शिक्षा सचिव महोदय के द्वारा निकम्मा कहना निंदनीय है।

(2) शिक्षा विभाग के द्वारा स्कूलों नित नए प्रयोग कर कर के प्रयोगशाला बना कर एनजीओ की चारागाह बना दी गई है। हर वर्ष शिक्षा में नए नए प्रयोग कर रहे है, किसी भी योजना में स्थायित्व नही है, शिक्षक और विद्यार्थी वर्ष भर भ्रमित रहता है कि उसे करना क्या है ? इसका दोषी कौन है शिक्षक या शिक्षा विभाग के आला अधिकारी?

(3) शिक्षा की गुणवत्ता की औऱ प्राप्त दोष को दूर करने के लिए कितने कुशल और वरिष्ठ अधिकारियो नियुक्त किया गया है, जो शिक्षकों के साथ सामंजस्य बनाकर बाधाओं को दूर किया जा सके। शिक्षकों को अधिकारियों के द्वारा हतोत्साहित कर कैसे उच्च परिणाम की अपेक्षा की जा सकती है।

(4) जब शिक्षा गुणवत्ता पर केंद्र से शिक्षा विभाग को पुरस्कार मिलता है तब अधिकारी वाहवाही लुटती है, परन्तु जब रैंकिंग में छग पिछड़ी नजर आती है तो दोषी केवल शिक्षक को बनाया जाता है, क्यों?

(5) प्रदेश भर के प्राथमिक से लेकर उच्चतर माध्यमिक तक के स्कूलों में 50 से अधिक एनजीओ को तैनात कर तरह तरह के हथकंडे अपनाया जा रहा है। केवल विभाग के उच्चाधिकारियों के द्वारा आपसी समन्वय बनाकर (सेटिंग) एनजीओ को स्कूलों में लगा दिया जाता है। इससे गुणवत्ता सुधरने के बजाय और बिगड़ती जा रही है। क्योंकि अलग अलग एनजीओ के अनुसार अध्यापन और कार्य करने का तरीका अलग अलग होता है, जो कि शिक्षक और विद्यार्थी के मन मे कन्फ्यूजन पैदा करती है।

(6) स्कूलों में 70 से अधिक अभियान/ योजना/ गतिविधियां संचालित है। रोज कोई न कोई दिवस और पखवाड़ा मनाने हेतु निर्देश वाट्सअप से भेज दिया जाता है। चाहे वह स्कूलों से संबंधित हो या पंचायत से।

(7) क्या कभी किसी शिक्षक या विद्यार्थियों से अभिमत लेकर स्कूलों में लागू किये जाने वाली कार्यक्रमो/योजना/अभियान को तैयार किया जाता है। शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों के द्वारा बंद एयरकंडीशनर कमरों में यह तैयार किया जाता है। इसी लिए अधिकांश कार्यक्रम/योजनाएं/अभियान असफल होते है। भौगोलिक परिस्थितियां भी अलग अलग होती है। क्योंकि जो कार्यक्रम/योजनाएं/अभियान रायपुर और दुर्ग जिले में सफल हो सकती है वो बस्तर, बीजापुर, भोपालपट्टनम, सरगुजा में नही।

(8) क्या कभी विभाग के द्वारा कभी ऐसा सर्वे कराया गया है कि कितने शिक्षक वर्ष भर में गैर शिक्षकीय कार्य मे विभाग द्वारा संलग्न किये गए है। बीएलओ, टीकाकरण, जनगणना, पंचायत सर्वे आदि कार्यो में महीनों शिक्षकों को गैर शिक्षकीय कार्य मे झोंक दिया जाता है। उसके बाद गुणवत्ता कैसे आ सकती है।

(9) शिक्षको को मिलने वाली समयबद्ध पदोन्नती तथा अन्य हितलाभों को क्या विभाग ने प्रदान किया है ? बिल्कुल नहीं, आज प्रदेश में लगभग 2500 प्राचार्यो के पद रिक्त है, 18 हजार प्रधान पाठक के पद रिक्त है, बहुत ही कनिष्ठ प्रभारियों के भरोसे विद्यालय संचालित है, लगभग 80 प्रतिशत प्राथमिक विद्यालय बिना संस्था प्रमुख के संचालित है। क्या इससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित नही होती है। शिक्षा का मनोविज्ञान हमेशा साथ साथ चलता है,पदोन्नति यदि समय पर होती है तो शिक्षक बेहतर कार्य के लिए प्रेरित व प्रोत्साहित होता।

(10) प्राथमिक शिक्षा 1 से 8 में शिक्षा के अधिकार कानून के तहत यह उपबन्ध यद्धपि उचित था कि बच्चे को किसी कक्षा में न रोका जाए, उसे न्यूनतम स्तर तक लेकर कक्षोंन्ति दे दी जाए, लेकिन आज इसका विपरीत प्रभाव देखने को मिल रहा है, बच्चे और अभिभावक शिक्षा के प्रति उदासीन हो गए है और लापरवाह भी। जिसका परिणाम शिक्षा का गिरता हुआ स्तर दिखाई दे रहा है, पुनः परीक्षा की व्यवस्था एवं पूर्व की भांति कमजोर बच्चों को रोकने की व्यवस्था पर भी पुनर्विचार होना चाहिए ।

शिक्षक उत्कृष्ट शिक्षा के लिए कटिबद्ध है, पर विभाग शिक्षको के सुझाव को लागू तो करे।

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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