(रूद्र अवस्थी)यह खबर किसी को अच्छी लगी होगी और किसी को अच्छी नहीं भी लगी होगी…। लेकिन यह खबर चर्चा में है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी Raipur के विवादित Skywalk की जांच अब ACB और ईओडब्ल्यू करेगी। 77 करोड़ के प्रोजेक्ट में गड़बड़ी मिलने को लेकर राज्य सरकार ने यह फैसला किया है। खबर के मुताबिक 2015 में स्काईवॉक की योजना बनी थी।जानबूझकर इसमें दो बार स्टीमेट तैयार किया गया और 49 करोड़ के बजट से शुरू हुई स्काईवॉक योजना 77 करोड़ में पहुंच गई। इस योजना में करीब 35 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। लेकिन इसका कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है । इस खबर को देखकर Bilaspur वालों को रश्क हो सकता है कि विकास के नाम पर तो राजधानी को पिछले 22 साल से अहमियत दी जा रही है। लेकिन अधूरी योजनाओं की जांच पड़ताल के नाम पर भी सरकार की प्राथमिकता में अब भी राजधानी ही सबसे ऊपर है। राजधानी की इस खबर को देखकर न्याय धानी बिलासपुर में बैठे किसी भी आदमी के दिमाग में यह सवाल उठ सकता है कि रायपुर के Skywalk की जांच पड़ताल करने वालों को क्या Bilaspur के अंडरग्राउंड सीवरेज प्रोजेक्ट की याद नहीं आती है।
हालांकि Bilaspur का अंडरग्राउंड सीवरेज प्रोजेक्ट जमीन के नीचे- नीचे कई किलोमीटर तक फैला है और यह जमींदोज हो चुका है। अपने नाम के अनुरूप़ राजधानी का Skywalk प्रोजेक्ट हवा में आसमान की ओर उठा हुआ है। न्यायधानी और राज़धानी के बीच फ़र्क का अहसास कराते हुए बिलासपुर का सीवरेज़ प्रोजेक्ट ज़मीन के नीचे घुस गया है। उपयोगिता और लागत के मामले में इन दोनों प्रोजेक्ट के बीच हो सकता है कि कोई मेल दिख़ाई ना दे । लेकिन दोनों प्रोजेक्ट बरसों बरस काम चलने के बावजूद अधूरे हैं… और लोगों के किसी काम नहीं आ रहे हैं यह समानता तो कोई भी महसूस कर सकता है।
Bilaspur के सीवरेज प्रोजेक्ट की शुरुआत भी 2008 में हुई थी । उस समय इसकी लागत करीब 180 करोड़ थी। तब कहा गया था कि यह प्रोजेक्ट 24 महीने में तैयार हो जाएगा। लेकिन 14 साल बाद भी यह प्रोजेक्ट अधूरा है। इसकी लागत भी करीब 500 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। अब तक करीब 400 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। इतना ही नहीं सीवरेज प्रोजेक्ट बनाने के नाम पर सड़कों की खुदाई की वजह से बरसों बरस से लोग दिक्कतों का सामना करते आ रहे हैं। इस वजह से जान भी जा चुकी है। वरिष्ठ पत्रकार शशीकांत कोन्हेर ने हाल ही में लिखा था कि – बन गया तो सीवरेज… और नहीं बना तो दुनिया का सबसे महंगा साढ़े चार सौ करोड़ का जनाजा…। वे यह भी लिखते हैं की इस प्रोजेक्ट का हाल उस बंदरिया की तरह है जो अपने मरे हुए बच्चे को सीने से लगाए लगाए रहती है। मरने के बाद भी उसे नहीं छोड़ती….।ऐसे ही एक मरा हुआ प्रोजेक्ट आज़ भी शहर के सीने में चिपटा हुआ है।
राजधानी और न्यायधानी की इन दोनों तस्वीरों को सामने रखने के बाद यह सवाल भी किसी के मन में उठ सकता है कि दोनों प्रोजेक्ट में कम से कम इतनी तो समानता है कि सरकारी खजाने से करोड़ों रुपए खर्चने के बाद भी इसका कोई इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है । जो सरकारी पैसे की बर्बादी भी है और लोगों की परेशानी का शबब़ भी बन रही है। जाहिर सी बात है कि ऐसी कोई भी परियोजना शहर के लोगों को सहूलियत मुहैया कराने के लिए ही तैयार की जाती है और बजट से रुपया दिया जाता है। लेकिन तयशुदा वक्त पर…. या कई गुना अधिक समय लेने के बाद भी अगर प्रोजेक्ट पूरा ना हो तो यह पूछा जाना ही चाहिए कि ऐसा प्रोजेक्ट आखिर किसके दिमाग की उपज है……?
अच्छे मकसद से शुरू किया गया प्रोजेक्ट तयशुदा वक्त पर पूरा नहीं हो पा रहा है तो उसके लिए जिम्मेदार कौन है….? आम आदमी भी इस बात को जानता है कि अगर वह अपना आशियाना बनाने की सोचता है तो वह समय पर अपना घर बना कर उसमें रहने का सुख भी पाना चाहता है । लेकिन शहर वालों की सहूलियत के लिए बढ़िया योजना बनाकर उसे पूरा करने की मंशा किसी के मन में नजर नहीं आती… तो क्या ऐसे में उन लोगों की ओर नजर नहीं जानी चाहिए जो इसके लिए जिम्मेदार है…..? “अंडरग्राउंड” प्रोजेक्ट की अधूरी कहानी के ऐसे किरदार भी “अंडरग्राउंड” है…?
राजधानी में आकाश की ओर मुंह करके खड़े हुए स्काईवॉक प्रोजेक्ट और न्यायधानी में जमींदोज हो चुके सीवरेज प्रोजेक्ट को लेकर व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों का यह दोहरा रवैया एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर रहा है कि क्या तरक्की के नाम पर जिस तरह अब तक सिर्फ एक शहर को ही पूरा प्रदेश मान लिया जाता रहा है….। क्या तरक्की में आ रही रुकावट की जांच पड़ताल में भी ऐसा ही रवैया अख्तियार किया जा रहा है। शहर का हरएक शख़्स इस बात से वाक़िफ़ है कि छत्तीसगढ़ बनने के बाद पिछले 22 साल में बिलासपुर शहर की क्या स्थिति है। यह शहर अविभाजित मध्यप्रदेश में भी तबके छत्तीसगढ़ इलाके में दूसरे नंबर का सबसे बड़ा शहर माना जाता रहा है। लेकिन अपना राज्य बनने के बाद भी इस शहर की तस्वीर बहुत अधिक नहीं बदली। तरक्की के नाम पर यह शहर बहुत पीछे हो गया है। शहर के लोग रोज देख रहे हैं कि उनकी सहूलियतों के लिए कितने काम हुए हैं और जो काम होते भी हैं वे कैसे रो-धोकर पूरे किए जाते हैं।
बिलासपुर के लोग हवाई सुविधा की मांग को लेकर महीनों से आंदोलन कर रहे हैं। लेकिन हवाई सेवा शुरू भी की गई है तो अधूरी ही कही जाएगी। चकरभाटा हवाई अड्डे पर नाइट लैंडिंग की सुविधा नहीं मिल पा रही है। ऐसी कितनी कहानियां हैं, जिन्हे लिखना शुरू करें तो हज़ारों शब्द कम पड़ जाएंगे…। लेकिन ये ऐसी जरूरतें हैं… जिसे पूरा किए बिना बिलासपुर शहर को बेहतर स्थान मिलना नामुमकिन है। बिलासपुर का सीवरेज प्रोजेक्ट इस मामले में एक ऐतिहासिक गवाह की तरह शहर के लोगों के सीने में चुभता रहा है। यह प्रोजेक्ट कब पूरा होगा इस बारे में बताने वाला कोई नहीं है। लेकिन अगर इसकी अधूरी कहानी के पीछे का सच सामने लाने के लिए भी जांच – पड़ताल के मामले में दुआभेदी नजर आने लगे तो यह सवाल उठेगा ही कि – क्या बिलासपुर की अधूरी हसरतें इसी तरह कब़्रगाह में दफ़न हो जाएगी … चूँकि ज़मीन के भीतर ( अंडरग्राउंड ) कोई झाँकना नहीं चाहता …..। और राजधानी में जाँच – पड़ताल होगी… चूँकि वहां भीतर झांकने की जरूरत नहीं है…. सब कुछ ज़मीन के ऊपर आकाश ( SKY) की ऊंचाई में साफ़ नज़र आ रहा है….।