VIDEO- बिलासपुर के सियासत की पूरी कहानी…देखिए-अधूरे तिफरा फ्लाईओवर में कहां लिखी है.?

Shri Mi
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बिलासपुर(सीजीवालडॉटकॉम)हम सब बचपन से ही कछुआ की कहानी पढ़ते – सुनते आ रहे हैं। खरगोश और कछुआ की कहानी….।बड़ी सुंदर कहानी है। जो ज़िंदगी में कामयाबी  के लिए प्रेरणा देती है। । इस कहानी की सबसे बड़ी प्रेरणा य़ही है कि अपनी धीमी रफ़्तार के बाद भी कछुआ रेस में ख़रगोश से ज़ीत जाता है। आज़ के बिलासपुर में खड़े होकर कोई इस क़हानी के बारे में सोचे तो लगता है कि ज़िन लोगों पर अब तक शहर की तरक़्की की ज़िम्मेदारी रही है, उन लोगों ने इस कहानी से ख़ूब प्रेरणा ली है और इसके अलावा किसी भी प्रेरक – नीति कथा को पढ़ने की ज़रूरत महसूस नहीं की। इतना ही नहीं….. इस कहानी में उन्होने दो बातों पर सबसे अधिक ग़ौर किया है। एक तो कछुआ की धीमी चाल और रेस में उसकी ज़ीत। तभी तो शहर की तरक़्क़ी की रफ़्तार कछुआ चाल से चल रही है और इसे चलाने वाले हर बार जीत ही जाते हैं।

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हमारे रहनुमाओँ की इस प्रेरणा को समझने के लिए बहुत अधिक रिसर्च की ज़रूरत नहीं पड़ेगी । कोई भी अपने मोहल्ले में अपने आस-पास ही इसे कभी भी देख सकता है। और पिछले कई बरसों से देखता आ रहा है कि तरक़्क़ी की रफ़्तार कैसी है और ज़ीत किसे हासिल हो रही है। शहर की तरक़्क़ी के लिए रुपया खरगोश की स्पीड से आता है और काम कछुआ की चाल से होता रहता है। जो कई बार तो अपने मुक़ाम तक भी नहीं पहुंचता और कभी मुक़ाम तक पहुंचते – पहुंचते इतनी देर हो जाती है कि काम पूरा होने या न होने का कोई मतलब ही नहीं रह ज़ाता………। लगता तो यह भी है कि कछुए की यह क़हानी हमारे नुमाइंदों के मन में इतने भीतर तक समा गई है कि चाहे आप पार्टी बदलकर देख लीज़िए या चेहरा बदल दीज़िए….. रफ़्तार में कोई बदलाव नज़र नहीं आएगा। आप किसी भी समय न्यायधानी को राज़धानी से ज़ोड़ने वाली सड़क ….

यानी तिफ़रा ओवरब्रिज़ के सामने खड़े होकर कछुए की इस कथा  को महसूस कर सकते हैं। लगता है अब तो शहर के लोग भी इस कछुए को ही अपना आदर्श मानने लगे हैं। तभी तो यह सब देखकर भी मन में उठने वाला गुस्सा भी कछुए की तरह सुप्त सा हो ज़ाता है……मन का गुस्सा भी कछुए की तरह अपने आप को खोल के भीतर समेट लेता है …. और धीरे से ग़ुम भी हो ज़ाता है। हम सब भी इसके आद़ी हो गए हैं। जब से हमारे नुमाइंदों ने कछुए को अपना आदर्श माना है और इस आदर्श को अपनाकर जीतते भी चले गए हैं, तब से यह शहर ख़रगोश की रफ़्तार से पीछे होता चला गया है। दूर बैठे लोग भी हम पर हँस सकते हैं कि अविभाज़ित मध्यप्रदेश के ज़माने में हम कहाँ थे और आज़ कहां पर हैं….।

भूमिक़ा कुछ अधिक ही लम्बी हो गई । लेकिन हमारी इस रिपोर्ट को देख़कर आगे आप ख़ुद ही समझ़ ज़ाएंगे कि बिलासपुर में कछुआ कहां पर बैठा है….। इस मामले में बिलासपुर के सिवरेज प्रोज़ेक्ट ने तो पहले ही अपना डंका बज़ा दिया है …. और शहर के लोग तो अब यह भी भूल चुके हैं कि सिवरेज़ का क़ाम कब से शुरू हुआ था …. और इसे कब़ पूरा हो ज़ाना था …।अब तो दूसरे प्रोज़ेक्ट भी उसके ही नक़्शे- कदम पर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं…। तिफ़रा में बन रहा फ़्लाई ओवर भी इसका नायाब़ नमूना कहा ज़ा सकता है..। जहाँ का काम पिछले कई बरसों से एक प्रयोगशाला…. ज़िसे अँग्रेज़ी में लेबोरेटोरी कहते हैं…. बस उसी ही तर्ज़ पर चल रहा है ….। चल क्या रहा है….  घिसट रहा है..।

दिलचस्प सीन यह भी है कि न्यायधानी को राज़धानी से ज़ोड़ने वाली इस सड़क पर पहले अपनी मानसिक संकीर्णता से रूबरू कराते हुए लोगों ने संकरा सा ओवरब्रिज़ बनवाया । रो-धो कर बन पाए इस ओवरब्रिज़ का काम शुरू करते समय हमारे रहनुमाओँ ने यह भी नहीं सोचा कि ट्रेफ़िक के दबाव की वज़ह से ज़ल्दी ही फ़्लाई ओवर की ज़रूरत पड़ जाएगी । रोज़ – रोज़ के ट्रेफ़िक ज़ाम और तरह –तरह की दिक़्क़तों के बाद 30 अगस्त 2017 यानी आज़ से करीब चार साल पहले वह तारीख़ आई ज़ब ठेका कंपनी को फ़्लाई ओवर का वर्कऑर्डर ज़ारी किया गया । बहुत अधिक टेक्निकल बात तो नहीं करेंगे । लेकिन इतनी बात तो सभी को पता होना चाहिए कि छत्तीसगढ़ के दूसरे सबसे बड़े शहर के सबसे पहले फ़्लाईओवर से ज़ुड़ी बड़ी बातें क्या हैं….। तो ज़ान लीज़िए कि उस समय़ तिफ़रा फ़्लाईओवर की लागत 65 लाख़ रुपए आँकी गई थी ।

निर्माण एज़ेंसी प्रदेश सरकार के नगरीय प्रशासन और विक़ास विभाग के यांत्रिकी प्रकोष्ठ को बनाया गया था । इसका ठेका हरियाणा गुड़गाँव की कंपनी ब्रह्मपुत्र बीकेब़ी को दिया गया था । इस फ़्लाईओवर की लम्बाई 1600 मीटर और चौड़ाई 12 मीटर तय की गई थी ।यह फ़लाईओवर 36 पिलरों के सहारे ख़ड़ा किया जा रहा है। यह तो हुई इस पुल से ज़ुड़ी मोटी-मोटी बातें….। अब उस प्वाइंट पर आतें हैं, ज़िसमें शायद आपको दिलचस्पी अध़िक होगी…..। जी हां….। 2017 में शुरू हुए इस काम को करार के मुताबिक कब तक पूरा हो ज़ाना चाहिए था… ? तो यह भी ज़ान लीज़िए कि ठेका कम्पनी को 29 मार्च 2019 को फ़लाई ओवर का काम पूरा कर देना था …। यह तारीख़ याद रख़िएगा … 29 मार्च 2019…। यानी शानदार अढ़ाई साल… यानी दो साल और छः महीने पहले यह काम पूरा होना था ।इसके बाद से कई बार तारीख़ पर तारीख़ दी गई है…। फ़िर भी काम कहाँ तक पहुंचा है… यह सभी के सामने है…। अभी भी यह बोर्ड स्वागत कर रहा है…. जिसमें लिख़ा है कि सावधान.. आगे ख़तरनाक गढ्ढ़ा है….।   

ज़ाहिर सी बात है कि फ़्लाई ओवर का काम वक़्त पर पूरा नहीं होने से लोगों को दिक़्कतों का सामना करना पड़ रहा है….। और वे तरक्क़ी की लेटलत़ीफ़ी का दंश दो – चार- आठ दिन से नहीं …. बल्कि पिछले चार साल से झेल रहे हैं…। लोगों का आना – ज़ाना मुश्क़िल हो गया है ….. और आसपास के छोटे- छोटे कारोबारियों का धँधा ही चौपट़ हो गया है…।अभी कोई यह नहीं कह सकता कि तिफ़रा फ़्लाई ओवर कब शुरू होगा। लेकिन आसपास के लोगों को यह भी दिखने लगा है कि एप्रोच रोड मे गढ्ढ़े हो गए हैं और कई ज़गह से छड़ें नज़र आने लगी हैं….।

फ़्लाई ओवर बनने से आसपास रहने वालों को कई तरह की दिक़्कतें भी नज़र आ रही हैं। इसकी वज़ह से सड़क के दोनों ओर रहने वाले लोगों को आपस में मिलने के लिए लम्बी दूरी तय करनी पड़ेगी। ब्रिज़ के नीचे से अगर आने – जाने की ज़गह मिल जाए तो आसपास रहने वालों को भी ,हूलियत मिल सकती है। तिफ़रा फ़लाई ओवर पर यह रिपोर्ट तैयार करते समय रिवाज़ के मुताब़िक हमको इस काम में लगे सरकारी विभागों के अफ़सरों और शहर के नुमाइंदों से भी बात करना चाहिए था । लेकिन जानबूझ़कर हमने उन्हे अपनी रिपेर्ट का हिस्सा नहीं बनाया । चूँकि हम ही नहीं… यह पूरा शहर जानता है कि – जवाब क्या मिलेगा…। फ़िर नई तारीख़ की बात होगी और बताया ज़ाएगा कि इसका काम वक्त पर पूरा करने के लिए क्या – क्या किया गया है।

मगर यह सच्चाई सबके सामने है कि कछुए की चाल ने इसे अढ़ाई साल पीछे कर दिया है। वैसे भी बिलासपुर शहर को ज़ो कुछ भी मिलता है, वह इतनी देर मिलता है कि फ़िर उस सुविधा की कोई अहमियत नहीं रह जाती । शहर को लोग भी इस तरह के मामलों में  अपने नुमाइंदों को सवालों के दायरे में नहीं लाना चाहते । शायद उन्हे इस बात का अहसास है कि बेमतलब़ की बातों में आपस में उलझ रहे नुमाइंदों को शहर के लोंगों के ज़ज्बात से कोई मतलब़ नहीं है।और नुमाइंदों को भी इस बात का अहसास हो गया है कि कछुए की कहानी से मिली सीख़ को अपनाकर इसकी ही रफ़तार से चलते रहो… यह शहर हर एक चुनाव में उन्हे जिताता रहेगा ….।

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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