“बड़ी परीक्षा” से पहले “छोटा टेस्ट”.! कांग्रेस–बीजेपी दोनों के लिए क्यों अहम् है भानुप्रतापपुर की जीत.?

Shri Mi
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कैलेण्डर पर साल बदल गया है…. तारीख़ बदल गई है…। लेकिन महीना वही दिसंबर का है….। अब़ से ठीक चार साल पहले … जब 2018 में छत्तीसगढ़ विधानसभा के चुनाव हुए तो उस साल के दिसंबर महीने की ग्यारह तारीख़ को वोट गिने गए थे …. और नतीज़े सामने आए थे। इस साल भी दिसंब़र के ही महीने में जब कैलेण्डर पर 8 तारीख़ दर्ज़ होगी तो एक और चुनाव के वोट गिने जाएंगे और जब छत्तीसगढ़ की भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट के नतीज़ों का एलान होगा तो पूरा ना सही , थोड़ा – बहुत तो इस बात का अँदाज़ा लग ही जाएगा कि एक साल बाद जब हम समय की इसी दहलीज़ पर होंगे तो छत्तीसगढ़ की सियासी तस्वीर कैसी होगी…? साल – महीने और तारीख़ के इस हिसाब को निशाने पर रख़कर ही साल भर बाद की तस्वीर को अपने मन माफ़िक बनाने की गरज़ से छत्तीसगढ़ की प्रमुख राजनीतिक पार्टी कांग्रेस और बीजेपी ने उपचुनाव में पूरी ताक़त झ़ोक दी है। इस मायने में भानुप्रतापपुर सीट का यह उपचुनाव दोनों ही पार्टियों के लिए अहम् हो गया है।

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2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के साल भर पहले रायशुमारी के नज़रिए से देखे जा रहे इस उपचुनाव की तरफ़ आगे बढ़ने से पहले फ्लैशबैक़ पर चलकर चार साल पहले के घटनाक्रम पर नज़र डालते हैं। 2018 में नवंबर महीने में दो चरणों में छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव हुए थे । पहले चरण के लिए 12 नवंबर को वोट डाले गए थे और 20 नवंबर को दूसरे चरण के वोट पड़े थे । वोटों की गिनती 11 दिसंबर को हुई थी और नतीज़े सामने आए थे। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद यह पहला ऐसा चुनाव था , जिसमें कांग्रेस पार्टी ने एकतरफ़ा चुनाव जीता। कांग्रेस को 90 में से 68 सीटों पर जीत हासिल हुई और 15 साल तक सूब़े में सराकार चला रही बीजेपी महज़ 15 सीटों पर सिमट गई थी। 5 सीटें जोगी कांग्रेस को मिलीं और दो सीट बसपा की झोली में गईं थी। हालांकि इसके कुछ महीने के भीतर हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस विधानसभा चुनाव के नतीज़ों को दोहरा नहीं पाई। लेकिन प्रदेश और विधानसभा की राजनीति में कांग्रेस ने लगातार अपना दबदबा बनाए रखा औऱ चार साल में हुए उपचुनावों में कांग्रेस अपनी सीटें बढ़ाने में भी कामयाब हुई है। पिछले चार साल में हुए दंतेवाड़ा,चित्रकोट,मरवाही और खैरागढ़ विधानसभा सीटों पर हुए सभी उपचुनावों में कांग्रेस ने ही फ़तह हासिल की ।

कांग्रेस विधायक मनोज मंडावी के निधन से ख़ाली हुई भानुप्रतापपुर सीट के उपचुनाव में कांग्रेस और बीजेपी फ़िर से आमने – सामने हैं। दोनों के लिए ही यह चुनाव अहम् है और दोनों इस मुक़ाब़ले को ज़ीतने के लिए अपनी पूरी ताक़त लगा रहे हैँ। ज़ाहिर सी बात है कि मौज़ूदा सरकार के कार्यकाल के दौरान अब तक के अपने सभी उपचुनाव में मैदान मार चुकी कांग्रेस भानुप्रतापपुर में अपना क़ब़्ज़ा ब़रकरार रखने के लिए मैदान में है। कांग्रेस ने मनोज मंडावी की पत्नी श्रीमती सावित्री मंडावी को अपना उम्मीदवार बनाया है। भूपेश बघेल सरकार के कामकाज़ को लेकर पार्टी मतदाताओं के बीच जा रही है। सियासत के ज़ानकार मानते हैं कि 2018 में मिली जबरदस्त कामयाबी को बरकरार रखने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दूर की सोच के साथ सधे हुए कदम आगे बढ़ाते हुए छत्तीसगढ़ की सियासत के मुद्दे भी बदल दिए हैं। और एक तरह से प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी को भी अपनी ही पिच पर खेलने के लिए मज़ब़ूर कर दिया है। नजीजतन गाँव, किसान,खेत- खलिहान,छत्तीसगढ़ी कल्चर, रामवन गमन पथ,गाय-गोठान जैसे मुद्दों के बिना अब सूब़े की सियासत पर चर्चा अधूरी रहती है। छत्तीसगढ़ी पहचान की राजनीति के बीच छत्तीसगढ़ के समीकरण अलग नज़र आने लगे हैं। लेकिन हाल ही में आदिवासियों के आरक्षण का मुद्दा जिस तरह गरमाया है, उसके जवाब के लिए भी लोग कांग्रेस की ओर देख रहे हैं।

यह उपचुनाव बीजेपी के लिए भी ख़ुद को साबित करने का एक मौक़ा है। पिछले कोई चार साल से अपने आप को मज़ब़ूत विपक्ष के रूप में पेश करने के लिए जद्दोजहत कर रही बीजेपी ने अपने अँदर बदलाव के लिए कई नुस्ख़े आज़माए हैं। जिसके ज़रिए वह यह समझने औऱ समझाने की कोशिश करती रही है कि पन्द्रह साल तक सरकार चलाने के बाद पार्टी पन्द्रह सीटों पर क्यों सिमट कर रह गई। बीजेपी नें प्रदेश प्रभारी बदले ….। और फ़िर पार्टी की कमान नए हाथों में सौंप दी । इसी कड़ी में बिलासपुर के सांसद अरुण साव को बीजेपी का नया प्रदेश अध्यक्ष और नारायण चंदेल को नया नेता प्रतिपक्ष बनाया। नए चेहरे सामने लाने के प्रयोग का कुछ असर भी नज़र आया है। बीजेपी इस बदलाव का अहसास कराने में भी जुटी हुई है। पहले रायपुर में नौज़वानों की रैली और फ़िर बिलासपुर में महिलाओं की हुंकार रैली के ज़रिए बदलाव को ज़मीन पर उतारने की भी क़वायद सड़क पर नज़र आई । भूपेश सरकार को घेरने के लिए भी पार्टी लगातार कोशिश करती नज़र आ रही है। उपचुनाव के मैदान पर बीजेपी के लिए यही सबसे बड़ी चुनौती दिखाई दे रही है कि उसे नए चेहरों के साथ बदलाव को भी साबित करना है। उपचुनाव के नतीज़ों के ज़रिए यह भी दिखाना है कि छत्तीसगढ़ के लोगों ने चुनाव के नज़रिए से भी बीज़ेपी के इस बदलाव पर अपनी मुहर लगा दी है।

उपचुनाव के नतीज़ों से सूब़े के मतदाताओं के बीच यह मैसेज़ जाएगा कि 2023 के चुनाव में बीजेपी कितनी बड़ी चुनौती पेश कर सकती है। बदलाव ने पार्टी को कितनी ताक़त दी है…. और क्या बड़ी चुनौती पेश करने के लिए अभी और कुछ करना बाक़ी है….? इस तरह के सवालों का ज़वाब़ भी उपचुनाव के नतीज़ों से मिल सकता है। सियासी हलकों में माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी की कमान संभालने वाले पुराने और नए चेहरों के सामने दोहरी चुनौती है। एक तो उन्हे प्रदेश के मतदाताओं का भरोसा हासिल करना है …. । और अपनी ही पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व की कसौटी पर भी ख़रा उतरना है। इस नज़रिए से यह चुनाव बीजेपी के लिए काफ़ी अहम् हो गया है।
कुल मिलाकर 2023 में होने वाली बड़ी परीक्षा ( पंच वार्षिक परीक्षा ) के पहले कांग्रेस – बीज़ेपी दोनों के लिए भानुप्रतापपुर का उपचुनाव प्रीलिमरी टेस्ट… अर्धवार्षिक परीक्षा … या आंतरिक मूल्यांकन की तरह नज़र आ रहा है। इस छोटी परीक्षा की अँकसूची आने वाले साल की बड़ी परीक्षा की तैयारी में बड़ी अहमियत रखती है।तभी तो सबकी नज़र इस मार्कशीट पर अभी से टिक़ी हुई है।

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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