बिलासपुर।छत्तीसगढ़ में विधानसभा के उपचुनावों का इतिहास दिलचस्प रहा है। अविभाज़ित मध्यप्रदेश के समय से लेकर छत्तीसगढ़ बनने के बाद भी छत्तीसगढ़ की विधानसभा सीटों पर कई ऐसे उपचुनाव हुए हैं, जिनमें मुख्यमंत्रियों की किस्मत का फैसला भी हुआ है। कई ऐसे चुनाव हैं, जिसमें सत्तापक्ष के उम्मीदवार को भी हार का सामना करना पड़ा था । इस सीरीज़ में हम छत्तीसगढ़ के चुनावी इतिहास को खंगालते हुए ऐसे कुछ ख़ास – दिलचस्प उपचनावों की चर्चा कर रहे हैं…।
खरसिया उपचुनावःआज भी याद है…अर्ज़ुन सिंह और जूदेव के बीच काँटे का मुक़ाबला——छत्तीसगढ़ में रायगढ़ ज़िले के ख़रसिया विधानसभा सीट का चुनाव भी प्रदेश के अब तक के सबसे दिलचस्प उपचुनावों में गिना ज़ाता है। यह चुनाव 1988 में हुआ था । उस समय कांग्रेस के कद्दावर नेता अर्ज़ुन सिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए थे । इसके पहले तब के प्रधानमत्री राज़ीव गाँधी ने उन्हे पंजाब का राज्यपाल बनाकर भेजा था । राज्यपाल के रूप में कामयाबी हासिल करने के बाद अर्ज़ुन सिंह को 1988 में फ़िर से एमपी का मुख़्यमंत्री बनाया गया था । सीएम बनने के बाद उन्हे विधानसभा का सदस्य बनना ज़रूरी था ।
उस समय ख़रसिया के कांग्रेस विधायक लक्ष्मीनारायण पटेल ने इस्तीफ़ा देकर अर्जुन सिंह के लिए अपनी सीट छोड़ी थी और उपचुनाव कराया गया था । खरसिया विधानसभा सीट के साथ यह ख़ासियत आज भी जुड़ी हुई है कि वहां से अब तक कांग्रेस को कभी भी किसी चुनाव में पराजय का सामना नहीं करना पड़ा है। कोई दूसरी पार्टी आज तक यहां चुनाव नहीं जीत सकी है। सीएम अर्जुन सिंह के लिए सबसे सुरक्षित मानकर ही खरसिया को चुना गया था । माना ज़ा रहा था कि इस सीट से आसानी से उन्हे ज़ीत मिल ज़ाएगी। लेकिन उस समय बीज़ेपी के वरिष्ठ नेता लखीराम अग्रवाल की रणनीति के तहत तेज़तर्राऱ नेता दिलीप सिंह ज़ूदेव को ख़रसिया से चुनाव मैदान में उतारा गया ।
यह एक तरह से दिलीप सिंह ज़ूदेव की लाँचिंग थी । ज़िसमें उन्होने माहौल बना दिया और ख़रसिया चुनाव दिलचस्प हो गया । कहाँ तो यह माना जा रहा था कि मुख़्यमंत्री की हैसियत से चुनाव मैदान में उतरे अर्ज़ुन सिंह हल्के पाँव चलते हुए ज़ीत हासिल कर लेंगे। पार्टी के लोग भी मानकर चल रहे थे कि अर्ज़ुन सिंह केवल अपना पार्चा दाख़िल करने के लिए ख़रसिया आएंगे। फ़िर उनकी टीम मोर्चा संभाल लेगी और चुनाव में ज़ीत हासिल हो ज़ाएगी । लेकिन दिलीप सिंह जूदेव ने मुक़ाबले को इस तरह बना दिया क़ि अर्जुन सिंह को पूरे चुनाव में ख़रसिया में ही रुक़ना पड़ा और वे मतगणना के बाद ही वापस लौटे।
1988 मे यह वहीं दौर था , ज़ब देश की राजनीति में वी.पी. सिंह नए हीरों के रूप में उभरे थे . तब कांग्रेस पार्टी और राज़ीव गाँधी के ख़िलाफ़ मुहिम तेज़ हुई थी । ऐसे समय में बीज़ेपी ने ख़रसिया उपचुनाव में ज़ोरदार माहौल बनाया । हालांकि कड़ी टक्कर के बीच अर्ज़ुन सिंह करीब आठ हज़ार वोट के फ़ासले से चुनाव ज़ीत गए। लेकिन बीज़ेपी के नाम एक बड़ी उपलब्धि यह रही कि वह दिलीप सिंह ज़ूदेव के रूप में एक बड़े नेता को पेश करने में क़ामयाब़ रही ।
जो 1989 में जाँज़गीर लोकसभा सीट से बीजेपी की टिकट पर मैदान में उतरे और सांसद चुने गए । इसके बाद वे राज्यसभा के भी सदस्य रहे और केन्द्र सरकार में मंत्री भी बनाए गए। इस तरह 1988 के ख़रसिया उपचुनाव ने जहां अर्ज़ुन सिंह के रूप में एक मुख्यमंत्री को विधायक चुनकर भेजा, वहीं दिलीप सिंह जूदेव के रूप में भावी मुख़्यमंत्री के दावेदार को भी सियासी परदे पर जगह दी थी । लिहाज़ा यह उपचुनाव आज़ भी लोगों को याद है….।