( रुद्र अवस्थी ) बीते बरस 2021 में छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सियासत पार्टी को रिचार्ज़ करने की कोशिशों के बीच गुजरी। जिसके चलते अलग-अलग स्तर पर बदलाव भी नजर आते रहे। पार्टी ने पिछले साल की शुरुआत के समय से ही अपना प्रदेश प्रभारी बदला और इस ब़दलाब के बाद छत्तीसगढ़ में बीजेपी को जिस सांचे में ढालने की कोशिश शुरू हुई उसकी झलक भी समय- समय पर मिलती रही। साल भर की सियासत पर नजर डालें तो बीजेपी में एक बार फिर इस बात को लेकर मंथन के संकेत मिलते रहे की 15 साल तक लगातार सत्ता में रहने के बाद भी 2018 के चुनाव में बीजेपी 15 सीट पर क्यों सिमट गई.. ? छत्तीसगढ़ की राजधानी से लेकर देश की राजधानी तक इस सवाल पर चल रहे मंथन के बीच यह सवाल भी उभरा की क्या 15 साल तक छाए रहे… 15 चेहरों की वजह से बीजेपी की यह गत हुई है। लिहाजा पार्टी में नए चेहरों के तलाश की भी सुगबुगाहट देखने को मिली। संकेत मिल रहे हैं कि बीजेपी छत्तीसगढ़ में मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के जवाब के तौर पर ओबीसी तबके से किसी नए चेहरे को सामने लाएगी। इस मामले में बिलासपुर के सांसद अरुण साव का नाम भी तेजी से उभरा है। 2021 के साल जिस तरह उन्हें लोकसभा में अपनी बात रखने का मौका मिला और प्रदेश में जिम्मेदारी सौंपी गई, उससे भी यही इशारा मिल रहा है कि आने वाले दिनों में अरुण साव बीज़ेपी के ओबीसी फ़ेस बन सकते हैं..।ऐसा होता है तो छत्तीसगढ़ की सियसात में बिलासपुर का भी कद बढ़ेगा।
2021 में पूरे साल छत्तीसगढ़ बीजेपी में चले राजनीतिक घटनाक्रम पर सिलसिलेवार नज़र डालें तो नटसेल में यही बात कही जा सकती है कि भाजपा अब प्रदेश में अपने उन चेहरों से बाहर आने की कोशिश कर रही है… जो नया राज्य बनने के बाद से छत्तीसगढ़ बीज़ेपी में छाए रहे हैं। क्योंकि जोड़- गुणा -भाग के उत्तर में यही सवाल फिर सामने खड़ा हो जाता है कि आखिर 15 साल सरकार चलाने के बाद पार्टी को ऐसी हार का मुंह क्यों देखना पड़ा था…? लिहाजा बीजेपी के इन चेहरों में भी बदलाव के संकेत मिलते रहे हैं। भाजपा की राजनीतिक शैली को नजदीक से देखने वाले लोगों को यह बेहतर मालूम है कि चुनाव में जीत हासिल करने के लिए पार्टी कोई भी जोखिम उठाने से भी परहेज़ नहीं करती। पहले दिल्ली के निकाय चुनाव में इस तरह का प्रयोग किया जा चुका है। 2019 के लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में भी इस तरह का नुस्खा आजमाया गया। जब पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के बेटे राजनांदगांव सांसद अभिषेक सिंह और उस समय के केंद्रीय मंत्री / रायगढ़ के सांसद विष्णु साय सहित तब के सभी सांसदों की टिकट काटकर नए चेहरों को सामने लाया गया। जिसमें पार्टी को अच्छी कामयाबी भी मिली।
कुछ चेहरे तो ऐसे थे ,जो बहुत अधिक चर्चा में भी कभी नहीं रहे। फिर भी उन्हे चुनाव मैदान में उतार कर बीजेपी ने अपने नुस्ख़े को कामयाब साब़ित कर दिया । 2021 में बीजेपी ने जिस तरह गुजरात में मुख्यमंत्री सहित पूरे कैबिनेट को बदलने का फैसला किया, उसे भी आने वाले चुनाव के पहले की सर्जरी के रूप में देखा गया। कहने का मतलब यह है कि बीजेपी में जब भी बदलाव की बात आती है तो ऐसे फैसले भी कर लिए जाते हैं , ज़िसमें कोई भी निपट ज़ाता है और कोई भी उभर ज़ाता है । राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव में आजमाया जा चुका नुस्खा अब आने वाले विधानसभा चुनाव में भी इस्तेमाल हो सकता है । जिससे खबरें तो यहां तक हैं कि आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी में 35 से 45 साल उमर वाले चेहरों की तलाश शुरू हो गई है। जिन्हें मैदान में उतार कर पार्टी छत्तीसगढ़ के मतदाताओं का भरोसा जीत सके।
बदलाव की इस कवायद के बीच भीतर खाने से इस तरह की भी सुगबुगाहट सुनाई दे रही है कि ओबीसी तबके से आने वाले छत्तीसगढ़ के मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की काट के रूप में बी जे पी भी ओबीसी तबके का लीडर सामने ला सकती है। ओबीसी में भी नए चेहरे को सामने लाकर छत्तीसगढ़ के मतदाताओं का भरोसा हासिल किया जा सकता है। हालांकि 2021 के दौर में बीजेपी की ओर से साफ-साफ तौर पर यह संकेत दिया जा चुका है कि पार्टी अगले विधानसभा चुनाव में किसी नेत़ा को सीएम के चेहरे के बतौर पेश नहीं करेगी। अलबत्ता मुद्दों के आधार पर चुनाव मैदान में उतरेगी। फिर भी आने वाले कल को देख़ते हुए ओबीसी तबके से सक्षम और भरोसेमंद नेतृत्व की तलाश के भी अपने मायने हैं।
इस मामले में बिलासपुर के मौजूदा सांसद अरुण साव का नाम भी 2021 के साल तेजी से उभरा है। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि वकालत के क्षेत्र से जुड़े अरुण साव को 2019 में तब के सांसद लखन लाल साहू के बदले बिलासपुर लोकसभा सीट से मैदान में उतारा गया था। जिसमें जीत दर्ज कर उन्होंने अपनी एक पहचान बनाई। पार्टी लाइन के मामले में अरुण साव का बैकग्राउंड भी काफी पुख्ता और मजबूत है। उनके पिता अभय साव भी मुंगेली इलाके में जनसंघ और भाजपा के आधार स्तंभ रहे हैं। बीजेपी की विचारधारा से अरुण साव का जुड़ाव भी बुनियाद से शिख़र की ओर रहा है। उन्होंने संघ और भाजपा के बाल मंदिर यानी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से काम करना शुरू किया। इसके बाद भारतीय जनता युवा मोर्चा और मुख्य संगठन में रहकर भी काम किया। पूरी परख के साथ पार्टी में वे जिस तरह की सीढ़ियां चढ़ते रहे हैं उसकी वजह से अरुण साव एक प्रखर वक्ता भी बन गए। पार्टी लाइन पर चलकर अपनी बात बेहतर और प्रभावी ढंग से रखने में उन्हें महारत हासिल है। यही वज़ह है कि सदन में भी बीजेपी ने उन्हें मौका दिया। मार्च 2021 में लोकसभा के बजट सत्र के दौरान अरुण साव को रेलवे की अनुदान मांगों पर बोलने की जिम्मेदारी दी गई थी। इसमें उन्होंने भारतीय रेलवे में चल रहे कामकाज पर सरकार का पक्ष बेहतर ढंग से रखा। और यह मौका मिलने पर उन्होंने छत्तीसगढ़ और बिलासपुर में रेलवे की जरूरतों को लेकर भी दमदार तरीक़े से अपनी बात रखी। उन्होंने छत्तीसगढ़ के बेरोजगारों के लिए रोजगार के बेहतर अवसर मुहैया कराने बिलासपुर रेलवे जोन में कोच फैक्ट्री बनाने की मांग भी की और छत्तीसगढ़ में रेल परियोजनाओं के काम में तेजी लाने पर भी जोर दिया। अरुण साव एनटीपीसी सीपत के विस्थापितों को नौकरी का मुद्दा भी बेहतर ढंग से लोकसभा में रख चुके हैं। हाल में उन्होंने सहारा इंडिया के निवेशकों का मुद्दा उठाकर इसके शीघ्र निराकरण की मांग की है। लोकसभा में उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की मांग रखी है। लोकसभा सांसद के रूप में उनकी गतिविधियां बताती हैं कि वे आम लोगों से कितना जुड़ाव रख़ते हैं।। बिलासपुर एयरपोर्ट को सर्व सुविधा युक्त बनाने के लिए उन्होंने नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से भी मुलाकात की। साथ ही रेलवे से जुड़े मुद्दों को लेकर रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव से भी मिले। छत्तीसगढ़ में नए ओबीसी चेहरे के रूप में अरुण साव को संगठन में भी जिम्मेदारियां दीं जा रहीं हैं। उन्हें पार्टी के की कोर कमेटी में भी जगह दी गई है। हाल ही में छत्तीसगढ़ में हुए नगरीय निकाय चुनाव के दौरान भी अरुण साव को कई नगरीय निकायों में प्रचार प्रसार की कमान सौंपी गई ।कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ बीज़ेपी की राजनीति में 2021 क़ा साल अरुण साव का रहा। जिसमें पहले से स्थापित बीजेपी के ओबीसी नेताओं की लक़ीर छोटी हुई हो न हुई हो… लेकिन अरुण साव की लक़ीर जरूर लम्बी हुई है।
2021 का साल बीजेपी में अरुण साव़ क़ो एक सक्षम और काब़िल लीडर के रूप में नई पहचान दे गया। आने वाला वक्त बताएगा की इस नई पहचान को अब कितनी चमक मिलती है और आने वाला समय उन्हें कितना ताकतवर बनाता है। उनके साथ बिलासपुर इलाके की भी पहचान जुड़ी हुई है। क्योंकि बिलासपुर इलाके से आने वाले किसी नेता को बीजेपी बड़ी जिम्मेदारी सौंपती है तो इससे इस इलाके का भी सियासी कद ऊंचा होगा।