Chhattisgarh

Dussehra 2024- साल में सिर्फ दशहरा के दिन खुलता है माता कंकाली का मंदिर, जानें इससे जुड़ी मान्यताएं

Dussehra 2024-छत्तीसगढ़ के रायपुर में आदिशक्ति कंकाली माता का मंदिर साल में केवल एक दिन के लिए खुलता है। यहां केवल एक दिन ही देवी की पूजा होती है।

Dussehra 2024-यह मंदिर कंकाली मठ नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर में वर्ष में एकबार पूजा होने की रीति यहां प्राचीन काल से है। मंदिर का पट केवल एक दिन नवरात्रि के दसवें दिन यानी विजयादशमी को खुलता है। इसी दौरान विधि-विधान से शस्त्र-पूजन के साथ कंकाली माता की पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि विजयादशमी के दिन शस्त्रों की पूजा करने के बाद कंकाली माता स्वयं प्रकट होती है और लोगों की मनोकामना को पूर्ण करती हैं।

Dussehra 2024-कंकाली माता का दर्शन-पूजन करने के लिए लोग बड़ी संख्या में पंहुचते हैं। इसकी स्थापना के पीछे जुड़ी कई कहानियां हैं। शहर के बुजुर्गों के मुताबिक कंकाली मठ में 13वीं से 17वीं शताब्दी तक मां कंकाली की पूजा अर्चना की जाती थी। इस मठ में देवी कंकाली की पूजा अर्चना केवल नागा साधु करते थे। बताया ये भी जाता है कि नागा साधुओं ने ये मठ और देवी की स्थापना विशेष तंत्र साधना के लिए ही की थी।

Dussehra 2024-आगे चलकर 17वीं शताब्दी में मां कंकाली के भव्य मंदिर का निर्माण हुआ, जिसके बाद कंकाली माता की प्रतिमा को मंदिर में स्थापित किया गया। मंदिर में देवी मां के और नागा साधुओं के हजारों साल पुराने अस्त्र-शस्त्र भी रखे हैं। यहां रखे गए शस्त्रों में तलवार, फरसा, भाला, ढाल, चाकू, तीर-कमान है, जो हजारों साल पुराने हैं।

Dussehra 2024-कंकाली मठ के पुजारियों ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि शारदीय नवरात्रि में मां कंकाली असुरों का संहार करने और अपने भक्तों को विभिन्न स्वरूपों में दर्शन देती हैं। दसवें दिन यानी नवमी की देर रात से ही वे कंकाली मठ में पहुंचकर विश्राम करती हैं। इस लिहाज से भी केवल विजयादशमी के दिन ही कंकाली मठ के दरवाजे सभी भक्तों के लिए खोले जाते हैं।

Dussehra 2024-मंदिर के पुजारी सच्चिदानंद पाठक ने कहा कि, पहले माता कंकाली यहीं विराजमान थी। संन्यासी लोग उनके पुजारी थे और यही माता जगदंबा संन्यासियों के बीच में रहती थी। एक दिन ऐसे कुछ घटना हुई कि माता संन्यासियों से रुष्ट हो गई। यहां से वो भाग गयी। पीछे-पीछे संन्यासी गए और माता को मनाने लगे। माता जी से चलने के लिए प्रार्थना करने लगे। माता बोली मैं यहां से नहीं जाऊंगी, यहीं मेरा मंदिर बनाओ। संन्यासी लोग बोले हम तो नागा हैं, हमारे पास कुछ नहीं है। माता बोली कि तालाब खुदवाओ। संन्यासियों के द्वारा तालाब खुदवाया गया। तभी सुंदर कौड़ी निकला। 700 साल पहले कौड़ी द्रव्य के रूप में था। जिसके बाद माता का मंदिर बनाया गया। मां जगदंबा को वहां विराजमान किया गया।

संन्यासी फिर भी नहीं माने और कहा कि मां आपका पूर्व स्थान तो वो मठ है। पहले आप वहां विराजमान थी। क्या वो सूना रहेगा। आप कृपा करके वहां आईए। तब माता ने बोला कि मैं हमेशा के लिए वहां नहीं जाऊंगी। दशहरे के दिन पूरे तेज के साथ अस्त्र-शस्त्र के साथ मैं वहां आऊंगी और मेरी वहां विशेष पूजा करना। वहां जो भी भक्त आएंगे, उनकी हर मनोकामना मैं पूरी करूंग।

कहा जाता है कि दशहरे के दिन मां जगदंबा पूर्ण तेज में आती हैं। यहां के मंहत भूषण हरिभूषण गिरी जी महाराज हैं। विजयादशमी पर माता का दूध, दही से अभिषेक किया जाता है। पूर्ण रूप से विशेष पूजा की जाती है और बलि देने की परंपरा रही है। माता की कृपा से संतान प्राप्ति होती है। जो संतान की इच्छा लेकर आते हैं, माता उनको संतान प्रदान करती हैं।

CGWALL NEWS

पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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