मध्यप्रदेश के शिक्षाकर्मी समस्त अधिकार प्राप्त करने जाएगे उच्च न्यायालय जबलपुर की शरण में

Shri Mi
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मध्यप्रदेश शासन की असंवेदनशीलता से परेशान 10 हजार से अधिक शिक्षाकर्मी न्याय मांगने उच्च न्यायालय जबलपुर की शरण मे जाने वाले है। जानकारी देते हुए अध्यापक संघर्ष समिति म•प्र के प्रांतीय कार्यकारी संयोजक एवं प्रांतीय सचिव NMOPS/ MP के शिक्षक नेता रमेश पाटिल ने बताया कि कर्मचारियो की सबसे बडी चिंता सेवानिवृत्ति उपरांत अपने भविष्य को लेकर है। शिक्षाकर्मी अपने नैसर्गिक अधिकार को खोना नही चाहता इसलिए स्वप्रेरणा से वह उच्च न्यायालय से पुरानी पेंशन और समस्त अधिकार प्राप्त करने की तैयारी कर चुका है।निकट भविष्य में लगभग 10 हजार से अधिक व्यक्तिगत याचिकाए उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत हो जाएगी।

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रमेश पाटिल का कहना है कि केन्द्र सरकार ने 1 जनवरी 2004 से एवं मध्यप्रदेश सरकार ने 1 जनवरी 2005 से पुरानी पेंशन बंद कर रखी है।इसके स्थान पर केन्द्र सरकार नेशनल पेंशन स्कीम और मध्यप्रदेश सरकार ने अंशदायी पेंशन योजना लागू कर रखी है। जिसमें कर्मचारी और सरकार का बराबर का अंश प्रतिमाह जमा कर nsdl के माध्यम से शेयर बाजार के हवाले कर दिया जाता है।शेयर बाजार में उतार-चढाव आते रहते है अर्थात शेयर बाजार में कर्मचारियो की पूंजी का निवेश सेवानिवृत्ति उपरांत सुरक्षित भविष्य के लिए बहुत बडा खतरा साबित हो रहा है।

रमेश बताते है कि नेशनल पेंशन स्कीम और अंशदायी पेंशन योजना जिन कर्मचारियो पर लागू है वे केन्द्र और राज्य सरकारो के कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके है उन्हे कुल जमा में से 60% राशि सेवानिवृत दिनांक के बाद नगद देय होगी और शासन के पास जमा शेष 40% राशि पर मिलने वाला प्रतिमाह का ब्याज ही नवीन योजना के अंतर्गत पेंशन कहलायेगी।जो केन्द्र और राज्य के कर्मचारी सेवानिवृत हो चुके है उन्हे इस योजना से इतनी कम पेंशन की राशि प्राप्त हो रही है कि अधिकांश अवसरो पर यह राशि वृद्धावस्था राशि से भी कम हो जाती है।ऐसे कर्मचारियो को अपना सेवानिवृत्त भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है।उसे स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि शासन की 30-40 साल सेवा करने के बावजूद उसका सेवानिवृत भविष्य सुरक्षित नही है।उसे निश्चित तौर से सेवानिवृत भविष्य अपमानजनक ढंग से दूसरो पर निर्भर होकर गुजारना होगा।कर्मचारियो का स्पष्ट मत है कि सेवानिवृत्त कर्मचारियो के सामाजिक सुरक्षा का दायित्व केन्द्र और राज्य सरकारो का है और इससे वह मुंह मोड रही है।कर्मचारियो का दुःख तब और बढ जाता है जब पेंशन के नये नियमो के अनुसार सेवानिवृत्त कर्मचारी की मृत्यु उपरांत उसकी पत्नि या पति को इस योजना के अनुसार अल्प पेंशन तो मिलती रहेगी लेकिन उनके मृत्यु उपरांत कर्मचारी की शासन के पास जमा 40% राशि शासन “राजसात” कर लेगी।कर्मचारी के किसी वारसान को यह राशि देय नही होगी।

कर्मचारी नेताओ का मानना है कि हमे विधायक-सांसदो को मिलने वाली पेंशन से कोई मतलब नही है लेकिन न्याय का पलडा सबके लिए बराबर होना चाहिए।जब देश का संविधान एक है तो विधान भी बराबर होना चाहिए।हमारी मांग सिर्फ इतनी सी है कि 1 जनवरी 2004 के बाद नियुक्त केन्द्र सरकार के कर्मचारियो को 1972 के पेंशन नियम के अनुसार और 1 जनवरी 2005 के बाद नियुक्त मध्यप्रदेश सरकार के कर्मचारियो को 1976 के नियमानुसार पेंशन मिलनी चाहिए ताकि कर्मचारियो का सेवानिवृत्त भविष्य आत्मनिर्भर, सम्मानजनक और गरिमामय ढंग से व्यतीत हो सके।इस प्राकृतिक सत्य से कोई इंकार नही कर सकता की सेवानिवृति की आयु में कर्मचारी शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो जाता है।वह आर्थिक उपार्जन के लिए किसी नए व्यवसाय में लगभग अक्षम हो जाता है।

मध्यप्रदेश में 1997 में नियुक्त गुरूजी, 1998-99 में नियुक्त शिक्षाकर्मी और 2001, 2003-04 में नियुक्त संविदा शाला शिक्षक में नियुक्त कर्मचारियो का दर्द सबसे निराला है।मध्यप्रदेश में मध्यप्रदेश सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1976 लागू है जो 1 जनवरी 2005 के बाद नियुक्त कर्मचारी को यह नियम लागू नही होता लेकिन 1 जनवरी 2005 के पूर्व नियुक्ति होने के बावजूद पुरानी पेंशन से शिक्षाकर्मी, संविदा शाला शिक्षक, गुरूजी वंचित है।

रमेश ने बताया कि 1998-99 में नियुक्त शिक्षाकर्मियो ने प्रदेश भर में लगभग छः माह से एक अभियान चलाया हुआ है जिसके अनुसार पुरानी पेंशन बहाली हेतु शासन के विभिन्न अधिकारियो, मंत्रियों, मुख्यमंत्री और राज्यपाल को शिक्षाकर्मियो ने हजारो की संख्या में पुरानी पेंशन बहाली एवं सुविधाओ को प्राप्त करने हेतु अभ्यावेदन भेजे।शासन स्तर से पुरानी पेंशन बहाली की मांग को खारिज कर दिया गया।जिससे शिक्षाकर्मियो की नाराजगी और अधिक बढ गई।अब शिक्षाकर्मियो के पास पुरानी पेंशन का न्याय प्राप्त करने का एक ही रास्ता बचा है वह है उच्च न्यायालय से न्याय की मांग करना।यह स्मरण कराना जरूरी होगा की 1998-99 में नियुक्त शिक्षाकर्मी और 2001, 2003-04 में नियुक्त संविदा शाला शिक्षक को षडयंत्र के तहत मध्यप्रदेश शासन ने एक नए संवर्ग “अध्यापक संवर्ग” में 01 अप्रैल 2007 से जबरन धकेल दिया था ताकि ये कभी पुरानी पेंशन बहाली की मांग ही न कर पाए और पात्रता से वंचित हो जाए।

रमेश पाटिल ने बताया कि मध्यप्रदेश शासन को संवेदनशीलता का परिचय देते हुए 1 जनवरी 2005 के पूर्व नियुक्त शैक्षणिक कर्मचारी शिक्षाकर्मी, गुरूजी और संविदा शाला शिक्षक को पुरानी पेंशन 1976 के नियमानुसार प्रथम चरण में लागू कर देनी चाहिए।द्वितीय चरण में 1 जनवरी 2005 के बाद नियुक्त प्रदेश के समस्त कर्मचारियो को भी पुरानी पेंशन बहाल की जानी चाहिए क्योंकि यह निर्णय लेने में राज्य सरकारो को स्वतंत्र अधिकार है।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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