DEO की चिट्ठी में भी गल्तियां…!फ़िर क्यों बनाया एक शिक्षक की गल्ती का मज़ाक… ?

Chief Editor
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कबीरधाम । शिक्षक का वीडियो जारी कर सुर्खियां बटोरने वाले कवर्धा जिला शिक्षा अधिकारी अब एक बार फिर शिक्षकों के निशाने पर हैं और शिक्षकों ने भी ऐसा तरीका आजमाया है की चाह कर भी जिला शिक्षा अधिकारी यह नहीं कह सकते कि उन्हें जबरन टारगेट किया जा रहा है । क्योंकि जिस हिंदी वर्तनी को लेकर उन्होंने सहायक शिक्षक का पूरे देश में मजाक उड़ाया । वही हिंदी भाषा अब जिला शिक्षा अधिकारी के गले की फांस बन गई है और शिक्षक उनके द्वारा जारी किए गए हर आदेश की बारीकी से जांच कर रहे हैं । मजेदार बात यह है कि जिला शिक्षा अधिकारी ने पूर्व में जारी पत्र में …. असमर्थता को …. असर्मथता लिखा था । जिस पर वे शिक्षकों के निशाने पर आ गए थे । ट्रोल होने के बाद अधिकारी ने पत्र में लिपिकीय त्रुटि बताते हुए जो संशोधित आदेश जारी किया है उसमें लिपिकीय शब्द ही गलत लिखा गया है, पत्र में लिपिकीय …. को लिपकीय लिखा गया है….। इस तरह एक बार फिर ये अधिकारी शिक्षकों के निशाने पर हैं।

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अधिकारी के हस्ताक्षर से जारी पत्र में बार – बार हो रही गल्तियां यह सवाल खड़ा करती है कि जब जिला शिक्षा अधिकारी को स्वयं मातृभाषा का ज्ञान नहीं है तो वह आखिर जिले में शिक्षा की व्यवस्था को कैसे सुधारेंगे और फिर क्या हिंदी भाषा को लेकर किया गया उनका धमाका महज आडंबर था । क्योंकि अंत्येष्टि न लिख पाने वाले शिक्षक को उन्होंने न केवल पूरे देश में शर्मसार किया । बल्कि लगातार वीडियो जारी करके खूब सुर्खियां भी बटोरीं । लेकिन जब उन्हीं के कार्यालय से जो पत्र टाइप होकर जारी हो रहा है उस पर गलतियों का अंबार है।

लोगं के बीच इस बात की चर्चा है कि लिपिकीय त्रुटि से जुडे आदेश में खुद शिक्षा अधिकारी के हस्ताक्षर भी हैं ..! मतलब वह खुद के कार्यालय की गलतियों को नहीं पकड़ पा रहे हैं और खुद भी लगातार गलती कर रहे हैं । ऐसे में अब सोशल मीडिया में शिक्षक सरकार से यह सवाल पूछ रहे हैं कि ऐसे अधिकारी पर आखिर कार्रवाई की गाज कब गिरेगी । जो महज दिखावे के लिए पूरे प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को निशाने पर ला रहे थे ।

लब्बोलुआब यह है कि ब्लैक बोर्ड पर लिखे हुए एक दो शब्द की मात्रात्मक त्रुटि से शिक्षक के शैक्षणिक चरित्र का मूल्यांकन नही किया जा सकता है। इसे सामान्य ढ़ंग से लेने की बजाय प्रोपेगैंडा करने और शिक्षक की वेतनवृद्धि रोकने का आदेश देने पर खुद के कार्यप्रणाली पर सवाल तो उठना लाज़मी है । जिला शिक्षा अधिकारी की जिम्मेदारी महज दौरा करने की है या सिर्फ गुणवत्ता सुधारने की ही नही है। अपनी टीम को सतत सुधार और शासन के दिशा निर्देशों का पालन कराने में लीडर की भूमिका निभाने की बनती है। अब खुद की गलतियां सुधारने में भी खुद उन्हें भाषा का ज्ञान नहीं दिखाई दे रहा है। पर देखा जाए तो यह भी एक मात्रात्मक त्रुटि ही है।

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