छत्तीसगढ़ बनने के बाद पहली बार सरकारी कर्मचारी / अधिकारी उठा रहे यह कदम…..! सोमवार से 9 दिन लगातार ठप रहेगा कामकाज …क्या बेख़बर है सरकार.. ?

Chief Editor
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रायपुर । छत्तीसगढ़ सरकार के कर्मचारी / अधिकारी सोमवार से हड़ताल पर जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ कर्मचारी / अधिकारी फ़ेडरेशन ने इसका एलान किया है। मंहगाई भत्ता ( डीए ) और गृहभाड़ा भत्ता ( एचआरए) की मांगो को लेकर यह हड़ताल हो रही है। छत्तीसगढ़ बनने के बाद से ऐसा पहली बार हो रहा है कि तृतीय- चतुर्थ वर्ग कर्मचारी से लेकर राजपत्रित अधिकारी तक सभी 25 से 29 जुलाई तक लगातार पाँच दिन तक सामूहिक अवकाश लेकर अपना काम बंद रख़ेगे। ज़ाहिर सी बात है कि अपने तरह की पहली हड़ताल से सरकारी सिस्टम का पूरा काम ठप हो जाएगा । शिक्षकों के शामिल होने से स्कूलों में भी ताले बंद हो जाएंगे। लेकिन अभी तक़ कर्मचारियो/अधिकारियों की मांगों को लेकर बातचीत के लिए सरकार के स्तर पर किसी पहल की ख़बर नहीं आई है।
छत्तीसगढ़ में कर्मचारी-अधिकारी फेडरेशन ने हड़ताल का ऐलान किया है। केंद्रीय कर्मचारियों के समान महंगाई भत्ता व गृह भाड़ा भत्ता के साथ ही स्थानांतरण के लिए मंत्रिमंडलीय उप समिति के गठन के विरोध में कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन हड़ताल करेगा। 25 से 29 जुलाई तक घोषित हड़ताल में प्रदेश के शिक्षक भी सहभागिता निभा रहे है, जिसके चलते स्कूलों में भी ताले लटकेंगे। 23 औऱ 24 जुलाई को शनिवार का अवकाश जिसके बाद 30 व 31 जुलाई को फिर से शनिवार व रविवार का अवकाश पड़ने के कारण लगातार 9 दिनों तक शासकीय कार्य प्रभावित होंगे। ऐसे में आने वाले दिनों में आम आदमी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।कैबिनेट की बैठक में विधायकों के वेतन भत्ते तो बढ़ाये गए पर कर्मचारियों अधिकारियों के वेतन भत्ते नही बढ़ाये गए हैं। जिससे आक्रोशित होकर केंद्रीय कर्मचारियों के समान महंगाई भत्ता व गृह भाड़ा भत्ता की मांग को लेकर प्रदेश के सभी विभाग के अधिकारी कर्मचारी हड़ताल पर रहेंगे।
छत्तीसगढ़ अधिकारी कर्मचारी फेडरेशन के पदाधिकारियों ने बताया कि यदि मौजूदा दौर में महंगाई भत्ता और भाड़ा भत्ता लागू कर दिया जाए तो हर कर्मचारी को 5000 से 15 हजार अधिक मिलेंगे। हर महीने सरकारी दफ्तर में काम करने वाले हर कर्मचारी का 5000 से 15 हजार रुपए महीने का नुकसान हो रहा है। प्रदेश के अलग-अलग विभागों में लगभग 5 लाख कर्मचारी काम करते हैं इस आंदोलन में सभी कर्मचारी संगठन एक साथ काम कर रहे हैं।
25 जुलाई से 29 जुलाई तक चलने वाले काम बंद कलम बंद आंदोलन में कोई सरकारी काम नहीं होगा । प्रवक्ता विजय झा का दावा है कि छत्तीसगढ़ के स्कूलों में काम करने वाले टीचर भी स्कूल नहीं जाएंगे, ऐसे में स्कूलों को बंद रखने की नौबत भी सामने आ रही है। पूरे छत्तीसगढ़ के सभी कर्मचारी और अधिकारियों ने बाक़ायदा अपनी पाँच दिन की छुट्टी का आवेदन अपने – अपने दफ़्तरों में ज़मा कर दिया है। इस आँदोलन को लेकर सभी कर्मचारी / अधिकारी एकजुट हैं। जिससे आंदोलन की सफ़लता सुनिश्चित है और उम्मीद की जा रही है कि सोमवार से ही इसका असर दिखाई देने लगेगा।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है कि सरकार के सभी स्तर के कर्मचारी / अधिकारी एक साथ हड़ताल पर जा रहे हैं। जिसमें तृतीय – चतुर्थ वर्ग के कर्मचारियों के साथ ही राजपत्रित अधिकारी भी शामिल हैं। यह ट्रेड यूनियन के क्षेत्र में एक बड़ी घटना है। छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ कर्मचारी नेता और मध्यप्रदेश के समय से ही ट्रेड यूनियन की गतिविधियों में सक्रिय रूप से हिस्सेदार रहे पी. आर. यादव बताते हैं कि 1979 में जब अविभाजित मध्यप्रदेश में विरेन्द्र कुमार सखलेचा मुख्य मंत्री थे , उस समय 14 दिन लम्बी हड़ताल चली थी । छत्तीसगढ़ बनने के बाद यह पहला मौक़ा है। जब कर्मचारी और अधिकारी एक साथ पाँच दिन सामूहिक अवकाश लेकर हड़ताल पर जा रहे हैं। उनका यह भी कहना है कि कर्मचारियों/ अधिकारियों की अलग से कोई मांग नहीं है। वे तो डीए और एचआरए की मांग कर रहे हैं। जो उनका हक है। केन्द्र सरकार डीए दे रही है और कई राज्य सरकारों ने भी अपने कर्मचारियों को केन्द्र के बराबर डीए देना शुरू कर दिया है। सरकारी कर्मचारी भी सरकारी सिस्टम के अंग हैं। हैरत की बात है कि सरकार की ओर से बातचीत के लिए अब तक़ कोई पहल नहीं की गई है। जबकि फेडरेशन की ओर से पिछले काफ़ी समय से चरणबद्ध ढंग से आंदोलन किया जा रहा है और ज्ञापनों के ज़रिए सरकार को इस बारे में सूचना भी दी जा रही है। इस बीच विधायकों के भत्ते बढ़ा दिए गए। ऐसे में कर्मचारी और अधिकारियों की मांगों की ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए और बातचीत की पहल की जानी चाहिए। इस मामले में सरकार की चुप्पी आश्चर्यजनक है। यदि व्यस्तता अधिक है तो सामान्य प्रशासन और वित्त विभाग के अधिकारी भी संगठन से चर्चा कर कोई हल निकाल सकते हैं।
ज़ाहिर सी बात है कि कर्मचारियों और अधिकारियों के इस क़दम से लगातार कई दिनों तक सरकारी कामकाज ठप्प हो सकता है। लेकिन सियासी उठापटक में उलझी सरकार अपने ही सिस्टम के भीतर से उठ रही आवाजों से बेख़बर नज़र आ रही है। कर्मचारी संगठन के लोगों के बीच इस बात को लेकर भी चर्चा है कि कर्मचारी न तो सरकार के विरोधी है और न ही सरकार से उनकी अदावत है। वे तो अपनी ज़ायज़ मांग सामने रख रहे हैं। जिस मांग को राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने भी पूरा कर दिया है। लेकिन छत्तीसगढ़ में सरकार को दिक़्कत क्यों आ रही है। समझ से परे है…। और उससे भी अधिक गौर करने वाली बात यह है कि संगठनों को भरोसे में लेकर उनसे संवाद करने की भी ज़रूरत अब तक महसूस नहीं की गई है। जिससे उपजे असंतोष को समझा जा सकता है। निश्चित रूप से इस असंतोष का इज़हार हड़ताल के दौरान होगा और प्रदेश के आम लोगों तक भी इसका असर होगा। आंदोलन के दौरान धरना- प्रदर्शन और भाषणों में सरकार की ही आलोचना सार्वजनिक रूप से होगी । मांगो पर चर्चा और निराकरण की दिशा में कदम उठाकर इसे टाला जा सकता है।

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